जपते रहो सुबह शाम भोलेनाथ,
जग में साँचा तेरा नाम भोलेनाथ,
जपते रहों सुबह शाम भोलेनाथ,
जपते रहों सुबह शाम भोलेनाथ ॥
सांझ सवेरे भोलेनाथ के,
मंत्र का कर लो सुमिरन,
इनके सुमिरन से कटती है,
जीवन की हर उलझन,
कर दो मुश्किल सभी,
आसान भोलेनाथ,
जपते रहों सुबह शाम भोलेनाथ,
जपते रहों सुबह शाम भोलेनाथ ॥
श्रष्टि के कण कण में केवल,
शिव का रूप समाया,
शिव के रूप की महिमा कोई,
जान कभी नहीं पाया,
तीनो लोको में सबसे,
महान भोलेनाथ,
जपते रहों सुबह शाम भोलेनाथ,
जपते रहों सुबह शाम भोलेनाथ ॥
अम्बर जैसी ऊंचाई है और,
सागर सी गहराई,
शिव शंकर के नाम में तो है,
सारी सृष्टि समाई,
सारी सृष्टि का रखते है,
ध्यान भोलेनाथ,
जपते रहों सुबह शाम भोलेनाथ,
जपते रहों सुबह शाम भोलेनाथ ॥
सबके कष्ट मिटाते है ये,
सबके काम बनाते,
उसको कष्ट नहीं आते,
जो इनके नाम को ध्याते,
सदा भक्तो का करते,
कल्याण भोलेनाथ,
जपते रहों सुबह शाम भोलेनाथ,
जपते रहों सुबह शाम भोलेनाथ ॥
जपते रहो सुबह शाम भोलेनाथ,
जग में साँचा तेरा नाम भोलेनाथ,
जपते रहों सुबह शाम भोलेनाथ,
जपते रहों सुबह शाम भोलेनाथ ॥
फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी पर आमलकी एकादशी का व्रत किया जाता है। इस तिथि पर भगवान विष्णु के साथ-साथ आंवले के पेड़ की पूजा का भी विशेष महत्व है।
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी के अलावा आंवला एकादशी के नाम से जाना जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस दिन आंवले पेड़ की उत्तपति हुई थी।
हर साल फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आमलकी एकादशी मनाई जाती है। आमलकी एकादशी का व्रत स्त्री और पुरुष दोनों रखते हैं। इस शुभ अवसर पर साधक व्रत रख भगवान विष्णु की भक्ति भाव से पूजा करते हैं।
नरसिंह द्वादशी सनातनियों का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो भगवान विष्णु के अवतार नरसिंह को समर्पित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, अपने प्रिय भक्त प्रहलाद की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु ने रौद्र रूप में अवतार लिया था, जिन्हें लोग आज नरसिंह भगवान के रूप में पूजते हैं।