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मंत्र के प्रकार

मंत्र के प्रकार

चार प्रकार के होते हैं, मंत्र इनके उच्चारण के लिए भी हैं नियम 



मंत्रों के कई प्रकार होते हैं, जरूरत के हिसाब से इन मंत्रों का उपयोग किया जाता है। मंत्रों के प्रकार और उनके उपयोग से होने लाभों पर नज़र डालें तो आप पाएंगे ये विभिन्न रूपों में हैं। जिनमें से प्रत्येक का अपना अनूठा उद्देश्य और अलग ही ऊर्जा होती है। यहाँ कुछ सबसे आम प्रकारों की एक झलक दी गई है। आइए इस आलेख में विस्तार से मंत्रों, उनके उपयोग और लाभ के बारे में जानते हैं। 

  1. बीज मंत्र: ये एकल: अक्षर वाली ध्वनियाँ हैं और आपको उनमें से कुछ पहले से ही पता होनी चाहिए। “ओम”, “श्रीं”, “ह्रीं” और “क्लिम”। प्रत्येक बीज मंत्र किसी विशिष्ट देवता या ब्रह्मांडीय सिद्धांत से जुड़ा है। ये बिना किसी अर्थ या प्रभाव के कोई अन्य एकल शब्द नहीं हैं। 
  2. वैदिक मंत्र: वैदिक काल में भी मंत्रों की प्रमुखता के बारे में बात कर चुके हैं। ये मंत्र अक्सर प्राचीन वैदिक शास्त्रों में पाए जाते हैं। इन मंत्रों का इस्तेमाल खास तौर पर विशिष्ट देवताओं को बुलाने के लिए किया जाता है। इसलिए, जब आप देवताओं के लिए कोई खास स्तुति सुनते हैं तो आप वैदिक मंत्र सुन रहे होते हैं।
  3. भक्ति मंत्र: भक्ति मंत्र किसी विशिष्ट देवता पर केंद्रित हो तो इसका मतलब यह नहीं है कि वे ऐसा करने वाले एकमात्र मंत्र हैं। ये भक्ति मंत्र किसी विशेष देवता के प्रति प्रेम, भक्ति और समर्पण व्यक्त करते हैं। 
  4. उपचार मंत्र: कुछ मंत्र विशेष रूप से उपचार और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए बनाए गए हैं। उन्हें उपचार मंत्र कहते हैं। इनका उपयोग शारीरिक बीमारियों, भावनात्मक असंतुलन या यहाँ तक कि विशिष्ट आध्यात्मिक रुकावटों को लक्षित करने के लिए किया जाता है। ये जादुई मंत्र विशेष रूप से एक विशिष्ट इरादे से जप किए जाते हैं। जिसमें मन, शरीर और आत्मा में सामंजस्य बहाल करना भी शामिल है।

उच्चारणकर्ता पर पड़ता है प्रभाव 


मंत्रों का एक सीधा प्रभाव उसके उच्चारण से स्वयं उच्चारणकर्ता पर पड़ता है और दूसरा उस पर जिसे निमित्त बनाकर जिसके नाम से संकल्प लिया जाता है। मंत्र चैतन्य व दिव्य ऊर्जा से युक्त होते हैं परंतु गुरु परंपरा से प्राप्त मंत्र ही प्रभावी माने जाते हैं। अतः मंत्रों में जो चमत्कारी शक्ति निहित होती है, उसका पूरा लाभ उठाने के लिए आवश्यक है कि उसे पूरी तरह व सही मायने में जाना जाए। उसके लिए जानने-समझने वाले समर्थ गुरु से दीक्षा सहित मंत्र की जानकारी हासिल करना आवश्यक है। सच्चे गुरु के बिना मंत्रों का सही उच्चारण, लय व जप-विधि के बारे में कुछ भी जानना मुश्किल है। गुरु द्वारा बताए मंत्रों का सही तरीके से नियमपूर्वक व श्रद्धा से जप किया जाए तो उनसे अवश्य लाभ मिलता है। 

मंत्र जाप के नियम 


जाप तो कई लोग करते हैं लेकिन ठीक तरीके से जाप करने के शास्त्रीय नियम हैं। इसके बारे में बेहद कम लोगों को जानकारी रहती है। तो चलिए जानते हैं वे ख़ास नियम  

  • मंत्र जाप के लिए शरीर की शुद्धि आवश्यक है। इसलिए, स्नान करके ही मंत्र जाप करना चाहिए।
  • मन्त्र जाप हमेशा घर में एकांत व शांत स्थान में करना चाहिए। पहले लोग प्राकृतिक परिवेश जैसे कि, पेड़ के नीचे, नदी के किनारे, वन में, साधना स्थल इत्यादि जगहों पर करते थे। इससे एकाग्रता में मदद मिलती है और प्रकृति से भी ऊर्जा मिलती है। 
  • जाप के लिए कुश के आसन पर बैठना चाहिए क्योंकि कुश उष्मा का सुचालक होता है। इससे मंत्रोचार से उत्पन्न उर्जा हमारे शरीर में समाहित होती है।
  • जाप में रीढ़ की हड्डी बिलकुल सीधी रखें, ताकि सुषुम्ना नाड़ी में प्राण का प्रवाह आसानी से हो सके क्योंकि सुषुम्ना नाड़ी से पूरे शरीर में ऊर्जा प्रभावित होती है।
  • जाप में मंत्रोच्चारण की गति समान रहनी चाहिए यानि न बेहद तेज और ना धीमा। अगर संभव हो, तो मानसिक जाप यानि मन में ही मंत्र का जाप करें और मंत्र का शुद्ध उच्चारण करें। गलत उच्चारण से आपको नुकसान हो सकता है या मंत्र का प्रभाव नगण्य हो सकता है।
  • अगर आप साधारण जप कर रहे, तो तुलसी की माला का प्रयोग करें लेकिन कामना सिद्ध करने वाले मंत्र जाप में में चन्दन या रूद्राक्ष की माला प्रयोग करें।

तीन प्रकार से पढ़ सकते हैं मंत्र


  • वाचिक जप– जब बोलकर मंत्र का जाप किया जाता है, तो वह वाचिक जाप की श्रेणी में आता है।
  • उपांशु जप– जब जुबान और ओष्ठ से इस प्रकार मंत्र उच्चारित किया जाए, जिसमें केवल ओष्ठ कंपित होते हुए प्रतीत हो और मंत्र का उच्चारण केवल स्वयं को ही सुनाई दे, तो ऐसा जाप उपांशु जप की श्रेणी में आता है।
  • मानसिक जाप– यह जाप केवल अंतर्मन से यानि मन ही मन किया जाता है।

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