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बिल्व निमंत्रण 2024: दुर्गा पूजा के पहले देवी मां को आमंत्रित करने के लिए किया जाता है ये अनुष्ठान

बिल्व निमंत्रण 2024: दुर्गा पूजा के पहले देवी मां को आमंत्रित करने के लिए किया जाता है ये अनुष्ठान

शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होने जा रही है। नौ दिन के इस महापर्व में मां दुर्गा के 9 अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। शारदीय नवरात्रि का त्योहार आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से घट स्थापना के साथ शुरू होता है, फिर पांचवे दिन यानी पंचमी तिथि को दुर्गा पूजा की शुरुआत होती है, जिसे "दुर्गोत्सव" के नाम से भी जाना जाता है। इसे बंगाल में बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। 


नवरात्रि से पहले एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान किया जाता है, जिसे बिल्व निमंत्रण कहते हैं। 'निमंत्रण' का अर्थ है विधि विधान से आमंत्रित करना।  इस पर्व में मां दुर्गा को पूरे विधि विधान के साथ निमंत्रित किया जाता है और इसी दिन के बाद से दुर्गा पूजन की शुरुआत होती है, जो पांच दिन यानी षष्ठी तिथि से विजयादशमी तक मनाया जाता है। तो आईये इस लेख में बिल्व निमंत्रण को विस्तार से समझते हैं। 


बिल्व निमंत्रण दुर्गा पूजा उत्सव की शुरूआत


दुर्गा पूजा की शुरुआत बिल्व निमंत्रण से होती है। इसका अर्थ है देवी दुर्गा को आमंत्रित करना, जहां उन्हें बिल्व के पेड़ में बुलाया जाता है और फिर 4 दिनों तक पूजा में आमंत्रित किया जाता है। यह अनुष्ठान दुर्गा पूजा के उत्सव की शुरुआत के लिए आवश्यक है। दुर्गा पूजा के पहले दिन किए जाने वाले अन्य अनुष्ठान कल्परम्भ, बोधन और आदिवास और आमंत्रण है।


बिल्व निमंत्रण के लिए सबसे शुभ समय  


बिल्व निमंत्रण पंचमी तिथि के सायंकाल में मनाया जाता है। हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार, जिस पंचमी तिथि के सायंकाल में षष्ठी तिथि भी आ जाती है वह बिल्व पूजा के लिए सबसे शुभ संयोग माना जाता है। 'बिल्व निमंत्रण' आदर्श रूप से षष्ठी के दिन सायंकाल के दौरान किया जाता है। लेकिन यदि षष्ठी तिथि के दौरान सायंकाल प्रबल नहीं होता है, तो इसे पंचमी तिथि के सांयकाल के दौरान किया जाना चाहिए। 


दुर्गा पूजा की शुरुआत बिल्व निमंत्रण के दिन से होती है। देवी दुर्गा का आह्वान करने का सबसे अच्छा समय सायंकाल है जो सूर्यास्त से लगभग 2 घंटे 24 मिनट पहले होता है। मां दुर्गा को को पूजा से पहले आमंत्रित करने का रिवाज है। इसके बाद ही दुर्गा उत्सव मनाया जाता है।  मुख्य पूजा तीन दिनों तक चलती है - महासप्तमी, महाअष्टमी, महानवमी। इस दौरान मंत्रों का जाप, श्लोकों का पाठ किया जाता है। माता दुर्गा की पूजा की जाती है, इसके बाद बड़े ही धूम-धाम आरती की जाती है और देवी को भोग चढ़ाया जाता है। 


बुराई पर अच्छाई की विजय की प्रतीक दुर्गा पूजा 


मान्यताओं के अनुसार, दैत्य महिषासुर लम्बे समय तक ब्रह्मा जी का पूजन कर, अमर होने का वरदान पा लिया था।  इसके बाद महिषासुर दैत्य को ना ही मनुष्य मार सकता था ना ही भगवान।  महिषासुर ने इसी बात का फायदा उठा कर चारों ओर हाहाकार मचा दिया। दैत्य महिषासुर ने मनुष्यों को मारना शुरू कर दिया और सभी देवी देवताओं के लिए एक खतरा बन गया, तभी सभी देवताओं और भगवान श्री विष्णु, शंकर जी और ब्रह्मा जी  के तेज से मां दुर्गा उत्पन्न हुई।  मां दुर्गा ने दैत्य महिषासुर का वध कर दिया। राक्षस महिषासुर पर मां दुर्गा की जीत का जश्न मनाने के लिए दुर्गा पूजा की जाती है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।


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माघ मेला, कुंभ मेले से कैसे अलग है?

माघ माह का प्रारंभ होने जा रहा है। इस दौरान बड़ी संख्या में कल्पवासी संगम तट पर पहुंचने वाले हैं। पुराणों में भी इस महीने का वर्णन किया गया है। कहा जाता है कि इस महीने में भगवान विष्णु गंगा जल में निवास करते हैं। इसी कारण गंगा स्नान को विशेष धार्मिक महत्व प्राप्त है। धर्म ग्रंथों में इस महीने के दौरान गंगा स्नान के महत्व को विस्तार से बताया गया है।

शाही स्नान के क्या-क्या लाभ हैं

महाकुंभ मेला, जो हर 12 वर्षों में एक बार आयोजित होता है, हिंदू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है। इस मेले में लाखों श्रद्धालु एकत्र होकर संगम स्थलों पर पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। विशेष रूप से शाही स्नान का अत्यधिक महत्व है, जो महाकुंभ के मुख्य आकर्षणों में से एक है।

महाकुंभ में बिछड़ों को कैसे ढूंढे

महाकुंभ, दुनिया के सबसे बड़ा धार्मिक अनुष्ठान है। हर 12 साल में इसका आयोजन किया जाता है। इस दौरान करोड़ों श्रद्धालु एक जगह इकट्ठा होते हैं। प्रयागराज के कुंभ में भी बड़ी संख्या में लोग आने वाले हैं।

शाही स्नान में कितनी डुबकी लगानी चाहिए

महाकुंभ 2025 की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं, और अब साधु-संत तथा श्रद्धालु संगम में शाही स्नान के लिए आतुर हैं। शाही स्नान महाकुंभ या कुंभ मेला का सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र अनुष्ठान होता है, जिसे धार्मिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है।

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