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पापंकुशा एकादशी 2024: व्रत की विधि और तिथि, किसकी होती है पूजा

पापंकुशा एकादशी 2024: व्रत की विधि और तिथि, किसकी होती है पूजा

पापों से मुक्ति के लिए रखा जाता पापांकुशा एकादशी का व्रत, जानिए व्रत की विधि और तिथि, किसकी होती है पूजा 


पापांकुशा एकादशी हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह त्योहार आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर में पड़ता है। इस साल यानी 2024 की बात करें तो पापांकुशा एकादशी 13 और 14 अक्टूबर को मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी को पापों को नष्ट करने वाली माना जाता है। यह व्रत करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। लेकिन इस दिन व्रत रखने के कुछ नियम भी होते हैं, जिनका पालन करना जरूरी होती है। आईये जानते हैं पापांकुशा एकादशी व्रत कब किया जाएगा, इसका महत्व क्या है, साथ ही जानेंगे शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में....


पापांकुशा एकादशी 2024 तिथि और शुभ मुहूर्त 


  1. पापांकुशा एकादशी रविवार - अक्टूबर 13, 2024
  2. एकादशी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 13, 2024 को सुबह 09:08 बजे 
  3. एकादशी तिथि समाप्त - अक्टूबर 14, 2024 को सुबह 06:41 बजे
  4. पापांकुशा एकादशी 2024 व्रत - 13 अक्टूबर 
  5. वैष्णव संप्रदाय के लोग 14 अक्टूबर को पापांकुशा एकादशी व्रत रखेंगे।
  6. व्रत पारण - 13 अक्टूबर को पापांकुशा एकादशी का व्रत रखने वाले साधक 14 अक्टूबर को दोपहर 01 बजकर 16 मिनट से लेकर 03 बजकर 46 मिनट तक व्रत का पारण कर सकते हैं।
  7. वहीं, 14 अक्टूबर को व्रत रखने वाले लोग 15 अक्टूबर को सुबह 06 बजकर 22 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 40 मिनट व्रत का पारण कर सकते हैं।


पापांकुशा एकादशी का महत्व 


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पापांकुशा एकादशी के दिन भगवान पद्मनाभ की पूजा की जाती है। इस व्रत रखने और विष्णु जी की पूजा-अर्चना से समस्त पापों का नाश होता है। साथ ही श्रीहरि विष्णु जी प्रसन्न होकर साधक को सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य का आशीर्वाद देते हैं। इतना ही नहीं पापांकुशा एकादशी का व्रत रखने से 1000 अश्वमेध यज्ञ और 100 सूर्य यज्ञ के समान शुभ फलों की प्राप्ति होती है।


पापांकुशा एकादशी की पूजा विधि 


  • इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।
  • भगवान विष्णु की पूजा करें और उन्हें फूल, फल और नैवेद्य चढ़ाएं।
  • व्रत के दौरान केवल फल और जल ग्रहण करें।
  • रात में भगवान विष्णु के समक्ष दीप जलाएं और भजन-कीर्तन करें।
  • अगले दिन द्वादशी को व्रत तोड़ें।


एकादशी व्रत पारण से जुड़े नियम 


एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना बहुत जरूरी है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है। एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिये। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिये। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिये सबसे अच्छा समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिये। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिये।


एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिए हो तो क्या करें? 


कभी-कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिये हो जाता है। जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिये। दूसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं। संन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिये। जब-जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब-तब दूजी एकादशी और वैष्णव एकादशी एक ही दिन होती हैं।


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