हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास वर्ष का तीसरा महीना होता है, जो धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। यह मास सूर्य की प्रचंडता और तपस्या के लिए समर्पित होता है। इस मास में कई व्रत-उपवास और पवित्र पर्व मनाए जाते हैं, जो न केवल धार्मिक भावनाओं को प्रबल करते हैं, बल्कि जीवन में संयम, श्रद्धा और साधना की भावना को भी जगाते हैं।
वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए रखती हैं। इस दिन वट ‘बरगद’ वृक्ष की पूजा कर सावित्री-सत्यवान की कथा सुनी जाती है। इस वर्ष यह 26 मई, सोमवार को मनाया जाएगा।
शनि जयंती भी ज्येष्ठ अमावस्या को मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन शनि देव का जन्म हुआ था। इसलिए श्रद्धालु शनि देव की विशेष पूजा करके शनि दोष और साढ़ेसाती जैसी समस्याओं से मुक्ति की कामना करते हैं। शनि जयंती भी सोमवार, 26 मई को मनाया जाएगा।
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को मां गंगा के पृथ्वी पर अवतरण की स्मृति में यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन गंगा स्नान, दान-पुण्य और जप-तप अत्यंत फलदायी माना जाता है। गंगोत्री, हरिद्वार, प्रयागराज जैसे तीर्थस्थलों पर विशाल मेलों का आयोजन भी होता है। इस वर्ष यह 5 जून को मनाया जाएगा।
निर्जला एकादशी व्रत ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को रखा जाता है और सभी एकादशियों में सबसे पुण्यदायी मानी जाती है। इस दिन बिना जल ग्रहण किए उपवास कर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इसे भीमसेन एकादशी भी कहा जाता है। इस वर्ष यह 6 जून को मनाया जाएगा।
ज्येष्ठ पूर्णिमा शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। यह दान, स्नान और व्रत का विशेष दिन होता है। इस दिन विभिन्न स्थानों पर गायत्री जयंती भी इसी दिन मनाई जाती है। यह 11 जून को मनाया जाएगा।
कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मासिक शिवरात्रि का व्रत रखा जाता है। इस दिन रात्रि में भगवान शिव की विशेष आराधना की जाती है। यह व्रत करने से पापों से मुक्ति मिलती है और मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस वर्ष यह 25 मई को मनाया जाएगा।
अपरा एकादशी ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इसे अचला एकादशी भी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। इस वर्ष यह 23 मई को मनाया जाएगा।
शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को भगवान गणेश की पूजा के रूप में यह व्रत प्रत्येक माह रखा जाता है। इसे संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है। गणेशजी की आराधना से विघ्नों का नाश होता है और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। इस वर्ष ज्येष्ठ मास में यह 13 मई को मनाया जाएगा।
शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मां धूमावती का प्राकट्य दिवस मनाया जाता है। वे दस महाविद्याओं में से एक हैं। यह तांत्रिक उपासकों के लिए विशेष महत्व रखता है। इस वर्ष यह 3 जून को मनाया जाएगा।
शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को राजा महाराणा प्रताप की जयंती मनाई जाती है। यह दिन देशभक्ति, शौर्य और स्वाभिमान की प्रेरणा देता है। राजस्थान सहित कई राज्यों में यह पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस वर्ष यह गुरुवार 29 मई को मनाया जाएगा।
माता भुवनेश्वरी हिंदू धर्म में पूजी जाने वाली एक प्रमुख देवी हैं, जिन्हें ब्रह्मांड की रानी और सृजन की देवी के रूप में जाना जाता है। उनका नाम "भुवनेश्वरी" दो शब्दों से मिलकर बना है - "भुवन" जिसका अर्थ है ब्रह्मांड और "ईश्वरी" जिसका अर्थ है स्वामिनी।
मां ललिता, जिन्हें त्रिपुर सुंदरी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं। वे शक्ति की अधिष्ठात्री देवी हैं और ब्रह्मांड की सर्वोच्च शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं।
मां चंडी जो विशेष रूप से शक्ति, दुर्गा और पार्वती के रूप में पूजी जाती हैं। उनका रूप रौद्र और उग्र होता है, और वे शत्रुओं का नाश करने वाली, बुराई का विनाश करने वाली और संसार को शांति देने वाली देवी के रूप में पूजा जाती हैं।
मां काली को शक्ति, विनाश और परिवर्तन की प्रतीक हैं। उन्हें दुर्गा का एक रूप माना जाता है और वे दस महाविद्याओं में से एक हैं। मां काली का रूप उग्र और भयानक है, लेकिन वे अपने भक्तों के लिए सुरक्षा प्रदान करती हैं।