Vat Savitri Vrat: क्या है वट सावित्री का रहस्य, जानिए क्यों मनाई जाती है साल में दो बार
भारत की परंपराएं अपनी गहराई और आध्यात्मिकता के लिए जानी जाती हैं। इन्हीं परंपराओं में एक प्रमुख स्थान रखता है ‘वट सावित्री व्रत’, जिसे सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, सुख-शांति और अखंड सौभाग्य की कामना से करती हैं। यह व्रत साल में दो बार मनाया जाता है, एक ज्येष्ठ अमावस्या को और दूसरा ज्येष्ठ पूर्णिमा को। बहुत कम लोग जानते हैं कि इस व्रत को दो तिथियों पर क्यों मनाया जाता है और इसके पीछे क्या रहस्य है। आइए जानते हैं विस्तार से।
ज्येष्ठ अमावस्या 26 मई, सोमवार तिथि को उत्तर भारत में वट सावित्री व्रत के रूप में मनाई जाएगी। साथ ही, दूसरा व्रत ज्येष्ठ पूर्णिमा 10 जून, मंगलवार की तिथि को दक्षिण भारत में अधिक मान्य मानी जाती है।
उत्तर भारत के धर्मशास्त्रों और पुराणों में ज्येष्ठ अमावस्या को इस व्रत के लिए उपयुक्त माना गया है। वहीं, दक्षिण भारत में स्कंद पुराण और नारद पुराण जैसे ग्रंथों के आधार पर इसे ज्येष्ठ पूर्णिमा को मनाने की परंपरा है।
यह असमंजस इसलिए है क्योंकि विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित परंपराएं और मान्यताएं समय के साथ अलग-अलग रूप में विकसित हुई हैं। साथ ही, दोनों तिथियों को शुभ और फलदायी माना गया है, इसलिए महिलाएं अपने-अपने क्षेत्रीय और पारिवारिक परंपराओं के अनुसार किसी एक दिन यह व्रत करती हैं।
हिंदू धर्म में वट वृक्ष को अत्यंत पवित्र और दिव्य माना गया है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है।
इसलिए इसकी पूजा करने से न सिर्फ पति की दीर्घायु मिलती है, बल्कि वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि भी बनी रहती है।
हिंदू धर्म में पौष मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रुक्मिणी अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व भगवान श्री कृष्ण की पत्नी देवी रुक्मिणी को समर्पित है, जिन्हें माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, रुक्मिणी अष्टमी पर ही द्वापर युग में विदर्भ के महाराज भीष्मक के यहां देवी रुक्मिणी जन्मी थीं।
हिंदू पंचांग के अनुसार पौष माह साल का 10 वां, महीना होता है जो मार्गशीर्ष पूर्णिमा के बाद शुरू होता है। वैदिक पंचाग के अनुसार इस साल पौष माह 16 दिसंबर से प्रारंभ हो चुकी है।
हिंदू पंचांग में दसवें माह को पौष कहते हैं। इस बार पौष मास की शुरुआत 16 दिसंबर से हो गई है जो 13 जनवरी तक रहेगी। इस मास में हेमंत ऋतु का प्रभाव रहता है।
पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष के बाद पौष का महीना आता है। ये हिंदू कैलेंडर का 10वां महीना होता है। पौष के महीने में सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है।