एक समय दालभ्यजी ने प्रजापति ब्रह्माजी के पुत्र पुलस्त्य जी से प्रश्न किया कि प्रभो! क्या कोई ऐसी भी शक्ति या उपाय है कि जिसके करने से ब्रह्महत्या करने इत्यादि के कुटिल कर्मों के पापों से मनुष्य सरलता पूर्वक छूट जाय भगवन् ! यदि सचमुच ही कोई ऐसा उपाय हो तो कृपाकर आप मुझसे कहिये मेरी सुनने की महती इच्छा है।
पुलस्त्य जी ने कहा-हे महाभाग तुम धन्य हो जो संसार के उपकारार्थ इस प्रकार का प्रश्न किये। अस्तु अब मैं भी तुमको अत्यन्त सुन्दर देवताओं को भी दुर्लभ और जो अभी तक प्रकाश में नहीं आयावही पवित्र मनोवांछित फलों को देने वाला यत्न तुम्हारे सामने वर्णन करता हूँ सावधान होकर सुनो। ने पौष मास के प्रारम्भ होते ही नित्य कर्मों से निवृत्त हो स्नानादि कर अपने आपको अत्यन्त शुद्ध पवित्र कर अपने मन और आत्मा को शद्ध कर अपने इन्द्रियों का भी दमन करे और काम क्रोध, अभिमान, ईर्ष्या और पिशुनता इत्यादि को त्याग भगवान् स्मरण करता हुआ पुष्य नक्षत्र में गोमय (गोबर) को एकत्रित कर उसमें तिल एवं कपास मिला कण्डे पाथे और उनसे नित्य प्रति 108 हवन किया करे। इसी प्रकार जब माघ कृष्ण दशमी का दिन आवे पूर्वाषाढ़ नक्षत्र हो अथवा मूल नक्षत्र हो उसमें नियम पूर्वक मन को शुद्ध कर भगवान् का पूजन कर और एकादशी के दिन एकादशी का व्रत कर रात्रि में कृष्ण नाम का कीर्तन करते हुए जागरण करे और दूसरे दिन द्वादशी को भी स्नान कर विधिवत् श्री भगवान् कृष्ण का चन्दन अगरबत्ती, कपूर और फूल-मालाओं द्वारा श्रद्धपूर्वक पूजन कर नैवेद्य में खिचड़ी अर्पण करे आप भी खिचड़ी से व्रत का पारण करे तथा नाम स्तुति करता हुआ तिल, गुड़, कुम्हड़ा, नारियल और सीताफल है इत्यादि कृष्णार्पण कर ब्राह्मणों को देवे एवं उनकी र स्तुति करें।
हे कृष्णा ! आप आरतहरण, अशरण शरणक दीनों का प्रतिपालन करने वाले तथा अधमो का उद्धार करने वाले हैं, हे नाथ! हम संसार-सागर में डूब रहे हैं। हे पुण्डरीकाक्ष ! भगवन् ! भवभय भंजन ! हमारी रक्षा कीजिये। फिर कृष्णार्पण कर ब्राह्मणों को जलन से भरे हुए घड़ों का दान करे, छाता एवं जूता इत्यादि देवे। तिल, स्नान कार्य एवं भोजन में अत्यन्त ही शुद्ध और पवित्र हो तिल दान करने वाले को एक तिल से ब खेत में जितना तिल उत्पन्न होता है उतने वर्ष पर्यन्त स्वर्ग में निवास करने को मिलता है। अस्तु, तिलस्नान, तिल का उबटन, तिल का भोजन और तिल का दान यशाशक्ति अवश्य करना चाहिये।
तब दालभ्य ने कहा-भगवन् ! इस कृष्ण षट्तिला एकादशी के व्रत से कैसा फल मिलता है और कब- कब एवं किस-किस को मिला है इसकी एक आख्यायिका का भी वर्णन करिये पुलस्त्यजी ने कहा-हे ब्रह्मन् ! किसी समय मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी वह सदैव ही धर्म में रत रहा करती थी और अत्यन्त व्रतों में अनुरक्त रहती थी। प्रायः प्रतिदिन ही कोई-न-कोई व्रत रहती थी। मगर दान कभी स्वप्न में भी नहीं दिया था। उसकी ऐसी दशा देख भगवान् कृष्ण ने विचार किया कि इससे कुछ दान कराना चाहिये क्योंकि बिना अन्न दान दिये इसका निस्तार नहीं होगा। यही सब विचार कर उन्होंने स्वयं भिक्षुक का रूप धारण कर उसके द्वार पर भिक्षा माँगी। - ब्राह्मणी तो देना जानती ही न थी तथापि उपहास - करने की मुद्रा में उसने भगवान् की झोली में मृत्पिण्ड डाल दिया। वे उसको ही लेकर चुप-चाप चले आये। कुछ दिनों बाद वह तापसी ब्राह्मणी जब ऐहलौकिक लीला समाप्त कर परलोक सिधारी तो उसी मृत्पिण्ड के प्रभाव से उसे एक सूना भवन रहने को मिला। यह तमाशा देखकर चकराई और दौड़ती हुई भगवान् कृष्ण के समीप गई और कहा, भगवन्! यह क्या व्यापार है कि मैंने जन्म भर व्रत और तप करके आपकी आराधना की और आपकी सेवा में यथासाध्य कोई कसर नहीं होने दी। फिर यह यहाँ पर मेरा गृह सर्व वस्तु विहीन क्यों
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा-तुम अपने घर जाकर किवाड़ बन्द करके बैठो, जब तुम्हें देखने के लिय अप्सरायें और देवांगनायें आवें तो तुम अपना किवाड़ बन्द कर लेना जब वे किवाड़ खोलने को कहें तब तुम उनसे कहना कि यदि आप लोग मुझे षट्तिला एकादशी का विधान, पुण्य और फल कहकर सुनाओ तो मैं गृह-कपाटों को खोल दूँ।
भगवान् कृष्ण के ऐसे वाक्य सुन वह सुन्दरी अपने मकान में आ उसके सब द्वार बन्द कर चिंताकुल होकर बैठ गई। यथा समय देवांगनायें आईं और उससे किवाड़ खोलने के लिये कहा, तब उसने वे ही वाक्य उन लोगों से कहे जो भगवान् कृष्ण ने कहे थे। उसके ऐसे वाक्य सुन एक स्त्री ने षट्तिला एकादशी व्रत विधि कहकर उसके दर्शन किये और उसके अनुपम तेज का अवलोकन किया। उस स्त्री ने भी देवांगनाओं के उपदेशानुसार षट्तिला एकादशी व्रत विधिवत् धारण कर धन धान्यादि से संयुक्त गृह को प्राप्त किया।
इसलिए इस षट्तिला एकादशी व्रत के साथ ही साथ तिल और वस्त्र का दान अवश्य ही करना चाहिए। इस प्रकार षट्तिला एकादशी का व्रत धारण करने वाले के जन्म-जन्मान्तरों के पाप नष्ट हो स्वर्ग में अत्यन्त ही आनन्ददायी सामानों से परिपूर्ण गृह -मिलता है तथा दुर्भाग्यता, दीनता और दरिद्रता का -नाश होता है।
जुलाई 2025 का महीना मीन राशि के जातकों के लिए कई उतार-चढ़ाव भरे अनुभव लेकर आया है।
भारत में पूर्णिमा का बहुत महत्व है और देश के प्रमुख क्षेत्रों में इसे पूर्णिमा कहा जाता है। पूर्णिमा का दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि अधिकांश प्रमुख त्यौहार या वर्षगांठ इसी दिन पड़ती हैं।
साल 2025 का पहला सूर्यग्रहण 29 मार्च, शनिवार को लगने वाला है। यह ग्रहण चैत्र अमावस्या के दिन दोपहर 2:20 बजे शुरू होगा और शाम 6:16 बजे समाप्त होगा।
सनातन धर्म में वैशाख महीने का विशेष महत्व है। वहीं, हिन्दू कैलेंडर के अनुसार वैशाख महीना वर्ष का दूसरा महीना माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह महीना भगवान श्री कृष्ण के लिए अत्यंत प्रिय है। इसके अलावा इस महीने में भगवान विष्णु की पूजा का भी विशेष महत्व है।