महाकुंभ 2025 की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं, और अब साधु-संत तथा श्रद्धालु संगम में शाही स्नान के लिए आतुर हैं। शाही स्नान महाकुंभ या कुंभ मेला का सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र अनुष्ठान होता है, जिसे धार्मिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। बिना इस स्नान के महाकुंभ का आयोजन अधूरा माना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शाही स्नान के दौरान कितनी डुबकी लगाना शुभ माना जाता है और इसके क्या नियम होते हैं?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महाकुंभ या कुंभ के दौरान तीन या पांच डुबकी लगाना शुभ माना जाता है। तीन डुबकी ब्रह्मा, विष्णु और महेश (त्रिमूर्ति) को समर्पित होती हैं, जो इन देवताओं की आराधना का प्रतीक मानी जाती है। वहीं, पांच डुबकी लगाना पुण्यकारी फल प्रदान करता है, जिसमें पहले तीन डुबकियां त्रिमूर्ति को समर्पित होती हैं, जबकि दो डुबकी अपने इष्ट देव और पूर्वजों के कल्याण के लिए होती हैं। तीन डुबकी लगाना विशेष रूप से शुभ माना जाता है, और प्रत्येक डुबकी का एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अर्थ होता है:
पहली डुबकी: आत्मा की शुद्धि के लिए।
दूसरी डुबकी: मानसिक शांति और संतुलन के लिए।
तीसरी डुबकी: मोक्ष की प्राप्ति और मुक्ति के लिए।
डुबकी लगाते समय गंगा, यमुना और सरस्वती का ध्यान करते हुए, "ॐ नमः शिवाय" या "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" जैसे पवित्र मंत्रों का उच्चारण करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। यह मंत्र श्रद्धा और भक्ति से किया जाता है, जिससे आत्मिक शुद्धि और पुण्य की प्राप्ति होती है।
शाही स्नान के लिए सबसे शुभ समय सूर्योदय से पहले का होता है। इस समय किया गया स्नान धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है।
शाही स्नान का महाकुंभ के दौरान गहरा आध्यात्मिक महत्व है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि मनुष्य की मानसिक चेतना को जागृत करने और आत्मिक उन्नति का एक पवित्र माध्यम है। शाही स्नान से व्यक्ति के पूर्वजन्म के पाप नष्ट होते हैं और उसे धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है। जो श्रद्धालु विधिपूर्वक संगम के अमृतमयी जल में डुबकी लगाते हैं, वे भगवान शंकर का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और मोक्ष की प्राप्ति की दिशा में कदम बढ़ाते हैं।
मां चंडी जो विशेष रूप से शक्ति, दुर्गा और पार्वती के रूप में पूजी जाती हैं। उनका रूप रौद्र और उग्र होता है, और वे शत्रुओं का नाश करने वाली, बुराई का विनाश करने वाली और संसार को शांति देने वाली देवी के रूप में पूजा जाती हैं।
मां काली को शक्ति, विनाश और परिवर्तन की प्रतीक हैं। उन्हें दुर्गा का एक रूप माना जाता है और वे दस महाविद्याओं में से एक हैं। मां काली का रूप उग्र और भयानक है, लेकिन वे अपने भक्तों के लिए सुरक्षा प्रदान करती हैं।
मत्स्य अवतार भगवान विष्णु के दस अवतारों में से प्रथम है। मत्स्य का अर्थ है मछली। इस अवतार में भगवान विष्णु ने मछली के रूप में आकर पृथ्वी को प्रलय से बचाया था।
देवाधिदेव महादेव के लिए ही प्रदोष व्रत किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि प्रदोष व्रत के दिन महादेव का पूजन किया जाए तो प्रभु प्रसन्न होकर भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं। साथ ही उनके सभी कष्टों का भी निवारण कर देते हैं।