कुंभ जैसे विशेष अवसरों पर दिखने वाले नागा साधु कुंभ समाप्त होते ही अचानक कहां गायब हो जाते हैं? यह एक रहस्यमयी प्रश्न है। प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान तीनों अमृत स्नान पूरे हो चुके हैं, और अब अखाड़ों का खाली होना शुरू हो गया है। यह रहस्य बना ही रहता है कि ये साधु कहां से आते हैं और फिर कहां चले जाते हैं। तो आइए जानते हैं कि कुंभ मेले के बाद नागा साधु कहां जाते हैं।
अमृत स्नान नागा साधुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, यह स्नान करने से हजार अश्वमेध यज्ञों के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। प्रयागराज में 144 वर्षों के शुभ संयोग के दौरान महाकुंभ का आयोजन हुआ, जिसमें नागा साधुओं ने तीनों अमृत स्नान कर लिए हैं और अब वे वापस लौटने लगे हैं।
कुछ नागा साधु 12 फरवरी को ही प्रयागराज छोड़ चुके हैं, जबकि कुछ वसंत पंचमी के बाद विदा हुए। कुछ अखाड़ों के नागा साधु और अघोरी काशी विश्वनाथ की ओर प्रस्थान कर चुके हैं। महाशिवरात्रि के अवसर पर सात प्रमुख अखाड़ों के नागा साधु काशी में रुकेंगे, जहां वे 26 फरवरी तक डेरा डालेंगे, शोभायात्रा निकालेंगे, मसान की होली खेलेंगे और गंगा स्नान करेंगे। इसके पश्चात वे अपने-अपने अखाड़ों में लौट जाएंगे। नागा साधु सांसारिक सुख-सुविधाओं से दूर रहकर कठिन तपस्या में लीन रहते हैं और अक्सर जंगलों व पहाड़ों में जाकर साधना करते हैं। जब भी कुंभ या माघ मेला आयोजित होता है, वे वहाँ एकत्र होते हैं। अगला कुंभ 2027 में नासिक में आयोजित होगा, जिसमें पुनः हजारों नागा साधु जुटेंगे।
नागा साधु निर्वस्त्र रहते हैं और अपने शरीर पर भभूत तथा रेत लपेटते हैं। डमरू और ढफली बजाते हुए उनकी जीवनशैली सदैव रहस्यमयी रही है। ये साधु प्रयागराज, वाराणसी, उज्जैन, हरिद्वार और हिमालय की कंदराओं से आते हैं। कुछ संन्यासी वस्त्र धारण कर गुप्त स्थानों पर तपस्या करते हैं, जबकि अन्य निर्वस्त्र रहकर कठिन साधना करते हैं। आमतौर पर नागा संन्यासी अपनी पहचान को गोपनीय रखते हैं।
प्रयागराज में दीक्षा लेने वाले नागा को राजराजेश्वर, उज्जैन में दीक्षा पाने वाले को खूनी नागा, हरिद्वार में दीक्षा लेने वाले को बर्फानी नागा, और नासिक में दीक्षित होने वाले को खिचड़िया नागा कहा जाता है।
नागा साधु सांसारिक जीवन से बहुत दूर रहते हैं। वे भगवान शिव के परम भक्त माने जाते हैं और अपने तप में लीन रहते हैं। कहा जाता है कि जो कोई इनके रहस्यों को जानने की कोशिश करता है, वे अपनी तंत्र विद्या से उसका अहित भी कर सकते हैं। यह भी मान्यता है कि नागा साधु अक्सर श्मशानों के आसपास गुफाएं बनाकर रहते हैं और वहां साधना करते हैं।
राम पे जब जब विपदा आई,
कौन बना रखवाला,
शांति के दूत है हम
शांति के हैं हम पूजारी
रमतो भमतो जाय,
आज माँ नो गरबो रमतो जाय,
रण में आयी देखो काली,
खून से भरने खप्पर खाली,