‘मंत्र’ शब्द संस्कृत भाषा से आया है। यहां 'म' का अर्थ है मन और 'त्र' का अर्थ है मुक्ति। मंत्रों का जाप मन की चिंताओं को दूर करने, तनाव और रुकावटों को दूर करने एवं आपको बेहतर तरीके से ध्यान केंद्रित करने में मदद करने का एक सिद्ध तरीका है। मंत्र जाप एक प्रकार का ध्यान है जो जागरूकता और एकाग्रता को बढ़ाने में मदद करता है। यह एक प्राचीन परंपरा है जो मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। सही विधि और नियमित अभ्यास से आप मानसिक शांति, शारीरिक ऊर्जा और आध्यात्मिक प्रगति का अनुभव कर सकते हैं।
मंत्र कई मामलों में व्यक्ति को विभिन्न चिंताओं और बाधाओं से मुक्त करने का एक सशक्त माध्यम है। मंत्र जाप का अभ्यास व्यक्ति के ध्यान और एकाग्रता को बढ़ाने के साथ-साथ उन्हें मानसिक रूप से भी लाभ पहुंचाता है। इसे प्राचीन भारतीय परंपराओं में ऊर्जा और सकारात्मकता का बेहतरीन स्रोत माना गया है।
मंत्र जाप हमारे शरीर और मन पर गहरे स्तर पर प्रभाव डालता है। नियमित रूप से मंत्रों का जाप करने से हमें कई तरह के लाभ मिलते हैं जो इस प्रकार हैं।
मंत्र जाप एक विशिष्ट ध्वनि, शब्द, वाक्यांश या वाक्य का बार-बार दोहराना है। इससे शरीर में उच्च कंपन उत्पन्न होता है। इस कंपन का प्रभाव शरीर और मन पर गहराई से पड़ता है। मंत्र जाप करने से श्वास की लय धीरे-धीरे स्थिर होती है, जिससे मन पहले से शांत होता है। इसके अलावा, जब मंत्र को सही उच्चारण और नियमों के साथ जपा जाता है, तो यह हमारे आभामंडल को भी शुद्ध करता है।
मंत्र कई प्रकार के हो सकते हैं।
मंत्र जाप के दौरान उत्पन्न ध्वनि तरंगे हमारे मस्तिष्क की अल्फा और थीटा तरंगों को सक्रिय करती हैं। ये तरंगें मानसिक शांति और जागरूकता बढ़ाने में सहायक होती हैं। इसके अतिरिक्त, मंत्र जाप से एंडोर्फिन का स्राव बढ़ता है, जो तनाव को कम करता है और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करता है।
माँ फुलारा शक्तिपीठ या अट्टहास शक्तिपीठ सबसे प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है, जहां मां सती का "निचला होंठ" गिरा था।
मां बहुला मंदिर बर्धमान स्थित कटवा से 8 किलोमीटर की दूरी पर केतु ग्राम में अजय नदी के तट पर स्थित है।
पश्चिम बंगाल का बकरेश्वर शक्तिपीठ बीरभूम जिले में पापरा नदी के तट पर स्थित है। यह सिउरी शहर से लगभग 24 किमी दूर है।
कालीघाट शक्तिपीठ या दक्षिण काली कोलकाता में स्थित काली देवी का मंदिर है। इस शक्तिपीठ में स्थित प्रतिमा की प्रतिष्ठा कामदेव ब्रह्मचारी ने की थी। यहां माता सती के दाहिना पैर का अंगूठा का गिरा था।