सबसे पहला मनावा,
थाने देवा रा सरदार,
रणत भवन सु आप पधारो,
हो रही जय जयकार,
सबसु पहला मनावा,
थाने देवा रा सरदार ॥
शंकर सूत थाने दुनिया है ध्यावे,
गिरजा भवानी थाने लाड़ है लड़ावे,
मूसे चढ़कर आओ,
थारी खूब करा मनुहार,
रणत भवन सु आप पधारो,
हो रही जय जयकार,
सबसु पहला मनावा,
थाने देवा रा सरदार ॥
दुंद दुन्दाला थे हो सूंड सुंडाला,
थारे गले में सोवे मोतियन माला,
पीताम्बर वस्त्रां रो,
थे खूब करो श्रृंगार,
रणत भवन सु आप पधारो,
हो रही जय जयकार,
सबसु पहला मनावा,
थाने देवा रा सरदार ॥
लड्डुवन रो बाबा थाने भोग लगावा,
तिलक लगावा मीठा भजन सुनावा,
दयावन्त वरदायक,
हे विनायक महाराज,
रणत भवन सु आप पधारो,
हो रही जय जयकार,
सबसु पहला मनावा,
थाने देवा रा सरदार ॥
खाता बया में थारो नाम है लिखीजे,
शादी विवाह में थाने प्रथम नुतीजे,
‘विमल’ थारा गुण गावे,
थे खूब भरो भंडार,
रणत भवन सु आप पधारो,
हो रही जय जयकार,
सबसु पहला मनावा,
थाने देवा रा सरदार ॥
सबसे पहला मनावा,
थाने देवा रा सरदार,
रणत भवन सु आप पधारो,
हो रही जय जयकार,
सबसु पहला मनावा,
थाने देवा रा सरदार ॥
देव उठनी एकादशी पर सनातन धर्म में तुलसी विवाह का बहुत महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु का विवाह गन्ने के मंडप में होता है। इसकी भी अलग ही मान्यता है और इससे संबंधित कथाएं भी हैं।
कार्तिक माह की देवउठनी एकादशी के दिन से सभी मंगल कार्य आरंभ करने की परंपरा है। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीने के बाद योग निद्रा से जागते हैं और उनके जागते ही चातुर्मास भी समाप्त होता है।
कार्तिक मास की एकादशी को देव उठनी एकादशी कहा जाता है। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु अपनी निद्रा से जागते हैं और इस दिन से ही शादी-ब्याह जैसे मांगलिक कार्य की भी शुरुआत होती है।
देव उठनी ग्यारस पर भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा से जागकर एक बार फिर संसार के संचालन में लीन हो जाते हैं। इस दिन चातुर्मास भी खत्म होता है और सभी मांगलिक कार्य शुरू होते हैं।