देव उठनी ग्यारस पर भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा से जागकर एक बार फिर संसार के संचालन में लीन हो जाते हैं। इस दिन चातुर्मास भी खत्म होता है और सभी मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। देव उठनी ग्यारस से जुड़ी हर छोटी बड़ी जानकारी तथ्य, सत्य और पौराणिक प्रमाणों के साथ आप bhakt Vatsal के देव उठनी विशेषांक में पढ़ सकते हैं। इसी क्रम में इस लेख के जरिए हम आपको बताते हैं देव उठनी ग्यारस से संबंधित विभिन्न पौराणिक कथाएं।
देव उठनी एकादशी के संबंध में सबसे अधिक प्रचलित कथा के अनुसार एक बार लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु से कहा था कि आप की दिनचर्या बड़ी अजीब है। संसार के संचालन में व्यस्त होने के कारण आप कभी सोते नहीं और यदि सो गए तो कई वर्षों तक सो जाते हैं। ऐसे में मैं और जीव जगह के अन्य सभी प्राणी भी परेशान रहते हैं। तब विष्णु ने हर साल चार महीने के लिए शयन करने का नियम बनाया। भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी की बात मान ली और हर साल देव शयनी एकादशी पर चार महीने के लिए शयन करने लगें और देव उठनी एकादशी पर जागने लगे। इस संबंध में एक अन्य कथा है कि एक बार वेदों को वापस देवलोक लाने के लिए भगवान विष्णु ने सांख्यायन नामक राक्षस से युद्ध किया था। कहा जाता है कि इस राक्षस को हराने के बाद भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में चले गए थे और फिर देव उठनी एकादशी पर ही जागें थे।
एक राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे। एक दिन एक दूसरे राज्य का व्यक्ति राजा के पास नौकरी मांगने आया। राजा ने उसे एकादशी के दिन अन्न ना खाने की शर्त पर नौकरी दे दी। लेकिन एकादशी के दिन वो व्रत नहीं रख सका और राजा ने उसे अन्न देने का आदेश दिया। राजा के आदेश पर उसे आटा, चावल और दाल दी गई जिसे लेकर वह नदी के तट पर पहुंचकर खाना बनाने लगा। जब खाना बन गया तो उसने भगवान से प्रार्थना की और भोजन ग्रहण करने का अनुग्रह किया।
उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु अपने चतुर्भुज स्वरूप में आएं। उसने भगवान को भोजन परोसा। भगवान विष्णु भोजन करने के बाद अपने लोक लौट गए। वह व्यक्ति फिर अपने काम में लग गया। अगली एकादशी पर उसने राजा से दोगुना अन्न मांगा। जब राजा ने इसका कारण पूछा तो उसने कहा कि पहली एकादशी पर वह भूखा ही रहा क्योंकि उस दिन भगवान ने भी उसके साथ भोजन किया। यह सुनकर राजा को विश्वास नहीं हुआ। राजा ने कहा मैं व्रत रखता हूं, पूजा करता हूं पर भगवान ने मुझे तो कभी दर्शन नहीं दिए। राजा की बात सुनकर वह बोला- महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लें। उसके कहने पर राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया। उस व्यक्ति ने भोजन बनाया और भगवान को बुलाया पर भगवान नहीं आएं। रास्ता देखते देखते शाम हो गई पर भगवान नहीं आए। अंत में उसने कहा- हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर अपने प्राण त्याग दूंगा। फिर भी भगवान नहीं आए, तब वह नदी की तरफ बढ़ा तभी भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे। खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए। यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास के साथ मन का शुद्ध होना सबसे अधिक जरूरी है। फिर राजा मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्गलोक को प्राप्त हुआ।
एक राजा के राज्य में सभी लोग बहुत सुखी थे। उसके नगर में एकादशी पर अन्न बेचना और पकाना वर्जित था क्योंकि इस दिन सभी फलाहार करते थे। एक बार भगवान ने राजा की परीक्षा लेने के इरादे से एक सुंदरी का रूप धारण किया और नगर में एक सड़क पर बैठ गए। राजा उधर से निकला तो उसकी नज़र इस सुंदरी पर पड़ी। उसने पूछा- हे सुंदरी! तुम कौन हो और इस तरह यहां क्यों बैठी हो? तब सुंदर स्त्री बने भगवान ने खुद को निराश्रिता और नगर को अनजान बताया। राजा उसके रूप पर मोहित होकर उसे महल ले जाकर रानी बनाने की बात कहने लगा। सुंदरी राजा को जवाब देते हुए बोली “मैं तुम्हारी बात मानूंगी, पर तुम्हारे राज्य पर पूर्ण अधिकार मेरा होगा। मैं जो भी बनाऊंगी, तुम्हें खाना होगा।” राजा ने उसकी सभी शर्तें मान लीं। वो रानी बन गई। जब एकादशी आई तो रानी ने बाजारों में अन्य दिनों की तरह अन्न बेचने का आदेश दिया। घर में मांस-मछली आदि बनवाकर राजा से खाने के लिए कहा। राजा ने कहा आज एकादशी है और मैं केवल फलाहार ही करूंगा। तब रानी ने शर्त की याद दिलाई और बोली- या तो मेरी बात मानों नहीं तो मैं बड़े राजकुमार का सिर काट दूंगी। राजा क्या करता उसने उस स्त्री की सारी बात बड़ी रानी से बताई तो बड़ी रानी बोली- महाराज! धर्म की रक्षा के लिये बड़े राजकुमार का सिर कलम करने से ना डरें। पुत्र तो फिर मिल जाएगा, पर धर्म नहीं मिलेगा। इसी समय बड़े राजकुमार ने भी सारी बातें सुन ली और बोला पिताजी के धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने को तैयार हूं। राजा दुःखी मन से राजकुमार का सिर देने को तैयार हुआ।
तभी रानी के रूप से भगवान विष्णु प्रकट हुए और सारा वृतांत सुनाया। भगवान बोले राजन् आप इस कठिन परीक्षा में पास हुए। भगवान के आशीर्वाद से राजा इस लोक के सुख भोगने के बाद बैकुंठ के निवासी हुए।
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