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एकादशी पर गन्ने के मंडप की कथा

एकादशी पर गन्ने के मंडप की कथा

देवउठनी ग्यारस पर क्यों सजाया जाता है गन्ने का मंडप, जानिए क्या है इसका महत्व और पौराणिक मान्यता


देव उठनी एकादशी पर सनातन धर्म में तुलसी विवाह का बहुत महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु का विवाह गन्ने के मंडप में होता है। इसकी भी अलग ही मान्यता है और इससे संबंधित कथाएं भी हैं। पौराणिक काल से लेकर आज तक घर-घर में तुलसी का चंवरा बनाकर, उसमें तुलसी माता जी को सुंदर सजाकर, गन्ने का मंडप बांध कर भगवान शालिग्राम और तुलसी माता का विवाह किया जाता है। 

लेकिन क्या आप जानते है कि इनका विवाह गन्ने के मंडप में ही क्यों किया जाता है? मान्यता है कि गन्ने को शुक्र ग्रह का प्रधान माना गया है और विवाह का संबंध भी शुक्र ग्रह से होता है। इसलिए गन्ने का मंडप शुभ माना जाता है तो आइए जानते है इसकी पूरी कहानी और महत्व।


कथा के अनुसार 


भगवान विष्णु ने देवी तुलसी को वरदान दिया था कि मेरे शालिग्राम अवतार के साथ तुम्हारी पूजा की जाएगी। देवी तुलसी साक्षात देवी लक्ष्मी के रूप में शालिग्राम की अर्धांगनी हैं। मान्यता है कि तुलसी विवाह के मंडप में गन्ने का प्रयोग इसलिए किया जाता है, क्योंकि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्र ग्रह का संबंध गन्ने से है। माना जाता है कि विवाह का संबंध भी शुक्र ग्रह से होता है। मीठी चीजें, विवाह और सुंदरता से संबंध रखने वाली चीजों पर शुक्र ग्रह का नियंत्रण होता है। इस कारण शुभता के प्रतीक के तौर पर इसमें गन्ने के मंडप का प्रयोग किया जाता है।


हमारी धार्मिक परंपराएं हमारे जीवन से जुड़ी हुई हैं इसी क्रम में एक वजह यह भी है कि कार्तिक मास में गन्ने की पहली फसल कटती है। इसलिए तुलसी विवाह में गन्ने का मंडप सजा कर अन्न और फसल के देवता को सम्मान स्वरूप मंडप बनाकर श्रद्धा अर्पित की जाती है। जिससे शुभ फल प्राप्त हो।


मिठास और उल्लास का प्रतीक गन्ना 


हमारे हर तीज-त्यौहार का अलग ही महत्व होता है। यहां हर त्यौहार अपनी अलग पहचान रखता है। ऐसे ही 4 महीने के चातुर्मास के बाद देव उठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम अवतार और देवी तुलसी का विवाह किया जाता है। इस दिन से सनातन धर्म में विवाह और मांगलिक कार्य भी शुरू किए जाते हैं और इस समय गन्ने की फसल भी काटी जाती है इसलिए इस दिन में मिठास और उल्लास के समावेश हेतु भी गन्ने का अधिक महत्व होता हैं। 

परंपरागत रूप से गन्ने की कटाई के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है एकादशी। इसलिए इस दिन पूजा करने से पहले किसानों को खेतों में उगने वाले गन्ने को छूने की भी अनुमति नहीं होती है। ऐसा माना जाता है कि देवताओं को ताजा कटा हुआ गन्ना अर्पित करना शुभ होता है और अच्छी फसल का प्रतीक होता है।

गन्ना शुद्ध मिठास का स्रोत माना जाता है। चातुर्मास के बाद के शुभ समय की शुरुआत गन्ने से करना और भी खास हो जाता है। इसीलिए इस अवसर पर देवताओं को ताजा गन्ना चढ़ाया जाता है और फिर घर-परिवार और समुदाय में इसे प्रसाद के रूप में परोसा जाता है। इस दिन देवताओं को गन्ने से बना गुड़ भी चढ़ाया जाता है। 

गन्ना कई महत्वपूर्ण पोषक तत्वों का भी स्रोत है, जिसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम और आयरन शामिल हैं। इसलिए ऋतु परिवर्तन के दिन गन्ना खाने से स्वास्थ्य संबंधी लाभ भी होते हैं। सर्दियों में हमारे शरीर को गन्ने की जरूरत होती है और इसे खाने की प्रथा देवोत्थान एकादशी के दिन से शुरू होती है। इस तरह यह परंपरा प्रतीक है हमारी धार्मिक मान्यताओं में विज्ञान के समावेश की।


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