पिंडदान के लिए बुकिंग प्रक्रिया बेहद सरल है। आपको केवल बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम की आधिकारिक वेबसाइट पर जाना है https://pitrapakshagaya.in/Book-E-Package.htm इस वेबसाइट पर आपको विभिन्न ऑनलाइन पिंडदान पैकेज मिलेंगे, जिन्हें आप अपनी सुविधानुसार चुन सकते हैं।
ये है बुकिंग की प्रक्रिया
1. वेबसाइट पर जाएं: वेबसाइट पर जाकर अपने पितरों के नाम और गोत्र की जानकारी भरें।
2. पैकेज का चयन करें: विभिन्न पैकेजों में से उपयुक्त पैकेज का चयन करें, जिसमें पूजा सामग्री, पंडित की सेवाएं, और अन्य संबंधित सेवाएं शामिल हैं।
3. भुगतान करें: बुकिंग के लिए आवश्यक शुल्क का भुगतान करें।
4. अनुष्ठान का विवरण प्राप्त करें: पिंडदान और तर्पण की प्रक्रिया के बाद, आपको वीडियो और चित्रों के माध्यम से अनुष्ठान की जानकारी मिलेगी।
बता दें कि ई-पिंडदान के लिए कुल 23 हजार रुपये का शुल्क निर्धारित किया गया है। इसमें 21,500 रुपये मूल शुल्क होता है, जबकि 1,429 रुपये सेवा शुल्क और 71 रुपये GST शामिल होते हैं। इस शुल्क में निम्नलिखित सेवाएं शामिल हैं:
1.पंडित की सेवाएं: पूजा और तर्पण विधि के लिए पंडित की सेवाएं।
2. पूजा सामग्री: आवश्यक पूजन सामग्री का प्रबंध।
3. गयापाल पुरोहित की सेवाएं: विशेष कर्मकांड और पिंडदान के लिए सेवाएं।
4. वीडियो और चित्र: पिंडदान की प्रक्रिया के वीडियो और चित्र, जो पेन ड्राइव में उपलब्ध कराए जाएंगे।
अगर आप व्यक्तिगत रूप से गया नहीं जा सकते हैं, तो विशेष ऑनलाइन पिंडदान पैकेज का लाभ उठाकर आप घर बैठे ही यह पवित्र कार्य कर सकते हैं। इस पैकेज के अंतर्गत विष्णुपद मंदिर में पूजा, अक्षयवट और मोक्षदायिनी फल्गु नदी के किनारे पिंडदान की पूरी प्रक्रिया विधि विधान के साथ की जाती है।
जान लें कि अब केवल गयाजी में ही नहीं, बल्कि विभिन्न पवित्र नदियों में भी पितरों के लिए तर्पण किया जा सकता है। इससे आपको न केवल पितरों की आत्मा की शांति मिलेगी, बल्कि आप विभिन्न नदियों में भी अपने पितरों के लिए तर्पण कर सकते हैं।
यह ऑनलाइन सेवा उन लोगों के लिए वरदान साबित हो सकती है जो किसी कारणवश पितृपक्ष के दौरान गया नहीं जा सकते। इसे डिजिटल युग में एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा जा सकता है, जो लोगों को अपनी धार्मिक जिम्मेदारियों को निभाने में सहायता प्रदान करता है वो भी बिना भौतिक रूप से यात्रा किए। तो इस पितृपक्ष में, अपने पितरों के लिए घर बैठे पिंडदान और तर्पण कराएं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति की कामना करें। यह सुविधा न केवल आपके समय की बचत करती है, बल्कि आपको धार्मिक कर्तव्यों को निभाने में भी मदद करती है।
हिन्दू धर्म का रामायण और रामचरितमानस दो प्रमुख ग्रंथ है। आपको बता दें कि आदिकवि वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना की है तो वहीं तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना की है।
हिन्दू धर्म में चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाने वाला राम नवमी पर्व एक प्रमुख त्योहार है। इस त्योहार को हिन्दू धर्म के लोग प्रभु श्रीराम की जयंती के रूप में मनाते हैं।
राम नवमी का त्योहार सनातन धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह त्योहार विशेष रूप से भगवान श्री राम की जयंती के रूप में मनाया जाता है।य ह त्योहार प्रत्येक वर्ष चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है।
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाए जाने वाले राम नवमी पर्व का सनातन धर्म में बहुत अधिक महत्व है। पूरे भारत वर्ष में 6 अप्रैल को यह पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा।