पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध करने का बहुत महत्व बताया गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृपक्ष में पितर पृथ्वीलोक पर आते हैं। इस दौरान पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से वे प्रसन्न होते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं। लेकिन कई लोगों के मन में संशय रहता है कि क्या पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध न करने पितृ नाराज हो जाते हैं? साथ ही कई लोगों के पास इतना धन नहीं होता कि वे पितरों का श्राद्ध कर सकें। तो ऐसे में उन्हें क्या करना चाहिए और इनके बारे में गरुड़ पुराण में क्या नियम बताए गए हैं…
गरुड़ पुराण के अनुसार पितृलोक में भी पितरों की योनियां निर्धारित की गई हैं लेकिन आपके पितर किसी भी योनि में क्यों न हों, उनका तर्पण और श्राद्ध कर्म अवश्य किया जाना चाहिए। पितृ अपने पुत्र, पुत्रियों और पौत्रों द्वारा किए गए श्राद्ध कर्म को जरूर स्वीकार करते हैं। जब पितृ दुखी होकर दरवाजे से वापस चले जाते हैं, तो उनके दुखी मन से निकली आह अपनों को लगती है। इस कारण पितृपक्ष में पितरों का तर्पण बहुत आवश्यक है। गरुड़ पुराण के अनुसार पितरों के प्रसन्न होने पर मनुष्यों को खोया हुआ राज-पाट तक वापस मिल जाता है।
धर्म ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध श्रद्धा से जुड़ा हुआ है। श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों के निमित्त किया गया कार्य श्राद्ध होता है। जिन व्यक्तियों के पास अपने पितरों का श्राद्ध करने के लिए धन ना हो तो वह केवल गाय को हरी घास खरीदकर खिला सकते हैं जिससे पितृ प्रसन्न होकर अशुभ फल प्रदान नहीं करेंगे। यदि कोई व्यक्ति गाय को हरी घास भी खरीदकर नहीं खिला सकता है तो वह पितरों के श्राद्ध के दिन स्नान ध्यान करके सूर्य देव को दोनों हाथ उठाकर दिखाते हुए अपने पितरों से कहे की ‘ हे पितरों मेरे पास आपका श्राद्ध करने के लिए केवल मेरा भाव है इसे स्वीकार कीजिए।’ कहा जाता है कि ऐसा करने से आपके पितृ प्रसन्न होते हैं और उनके आशीर्वाद से आपके पास इतना धन आ जाएगा कि आप अपने पितरों का श्राद्ध विधि अनुसार कर सकेंगे। पितरों का श्राद्ध करने के लिए आपके मन में पूर्ण श्रद्धा भक्ति होनी चाहिए। श्राद्ध पक्षों में पूर्ण श्रद्धा और भक्ति मात्र से ही पितृ प्रसन्न हो जाते हैं।
पितरों का निवास चंद्रमा के उर्ध्वभाग में माना गया है। मृत्यु के बाद आत्माएं एक वर्ष से सौ वर्ष तक पितृलोक में रहती हैं। पितृलोक के श्रेष्ठ पितरों को न्यायदात्री समिति का सदस्य माना जाता है। ये किसी पूर्वज के अच्छे और बुरे कर्मों का निर्णय भी करते हैं। अन्न और अग्नि से शरीर और मन की तृप्ति होती है। गरुड़ पुराण के अनुसार जिस प्रकार धरती पर किसी विभाग को चलाने की व्यवस्था है, उसी तरह पितृलोक को भी चलाने की एक व्यवस्था बनाई गई है। मनुष्यों के पूर्वज यहीं पर निवास करते हैं।
जय धन्वन्तरि देवा, जय धन्वन्तरि जी देवा।
जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा॥
प्रभु श्री विश्वकर्मा घर, आवो प्रभु विश्वकर्मा।
सुदामा की विनय सुनी और कंचन महल बनाये।
पितु मातु सहायक स्वामी सखा, तुम ही एक नाथ हमारे हो।
जिनके कुछ और आधार नहीं, तिनके तुम ही रखवारे हो।
ॐ जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
सुर नर मुनिजन सेवत, श्रीपति अवतारी॥