हिन्दू धर्म का रामायण और रामचरितमानस दो प्रमुख ग्रंथ है। आपको बता दें कि आदिकवि वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना की है तो वहीं तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना की है। इन दोनों ही ग्रंथों में भगवान श्रीराम का वर्णन किया गया है। आज इस आर्टिकल में हम आपको बताते हैं कि राम नवमी की कथा। साथ ही हम आपको यह भी बताएंगे कि आखिर यह पर्व क्यों मनाया जाता है?
“भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी। हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी”
क्या आप जानते हैं इस श्लोक का अर्थ क्या है और आखिर यह श्लोक आया कहाँ से? नहीं जानते, हम बताते हैं, तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में इस श्लोक का वर्णन बाल कांड में किया है। दरअसल, इस श्लोक की स्तुति सर्वप्रथम माता कौशल्या ने प्रभु श्रीराम के अवतरित होने पर की थी। इस श्लोक के माध्यम से तुलसीदास जी कहते हैं कि दीनों पर दया करने वाले, माता कौशल्या के हितकारी प्रकट हुए हैं। मुनियों के मन को हरने वाले भगवान के अदभुत रूप का विचार कर माता कौशल्या हर्ष से भर गई।
अब आपको बताते हैं कि आखिर भगवान श्रीराम का जन्म कैसे हुआ था यानी राम नवमी की कथा। ऐसा माना जाता है कि राम नवमी के दिन इस कथा का श्रवण करने से हमारे सारे दुख समाप्त हो जाते हैं और साथ ही हमारी सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण हो जाती हैं। कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि एक समय में राजा दशरथ अत्यधिक परेशान रहते थे इसका कारण यह था कि उनको संतान की प्राप्ति नहीं हो रही थी।
कहा जाता है कि कुछ समय बाद राजा दशरथ ने संतान प्राप्ति के लिए एक यज्ञ शुरू करने की ठानी। आपको बता दें कि महाराज दशरथ ने इस यज्ञ का आयोजन गुरु महर्षि वशिष्ठ के आदेशों का पालन करते हुए किया था। राजा दशरथ ने इस महायज्ञ में सभी श्रेष्ठ ऋषि-मुनियों को आने का आमंत्रण भेजा था। इसके साथ ही महाराज ने समस्त वेदविज्ञ प्रकाण्ड विद्वानों को भी यज्ञ को सम्पन्न कराने के लिए बुलावा भेजा। इसके बाद सभी तय समय पर यज्ञ सम्पन्न कराने पहुँचे।
इसके बाद निश्चित समय पर महाराज दशरथ गुरु वशिष्ठ और अपने मित्र एवं अंग प्रदेश के अधिपति ऋंग ऋषि तथा अन्य गणमान्य आगंतुकों के साथ यज्ञ मंडप पर पधारे। तत्पश्चात प्रकाण्ड विद्वानों ने सफलतापूर्वक महायज्ञ सम्पन्न करवाया। यज्ञ सम्पन्न होने के बाद राजा दशरथ ने समस्त ऋषियों और पंडितों को दक्षिणा स्वरुप धन-धान्य का दान दिया और उन्हें आदरपूर्वक विदा किया।
समस्त ऋषियों, पंडितों और यज्ञ के लिए आए आगंतुकों को विदा करने के बाद यज्ञ से जो प्रसाद मिला, उसे लेकर राजा दशरथ पुनः अपने महल में लौट आए। महल में आने के बाद महाराज ने अपनी तीनों रानियों के बीच यज्ञ का प्रसाद वितरित किया। यज्ञ का प्रसाद ग्रहण करने के बाद उस यज्ञ के पुण्य फल से तीनों रानियों ने गर्भ धारण किया।
ऐसी मान्यता है कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में माता कौशल्या ने अपने कोख से भगवान प्रभु श्रीराम को जन्म दिया। इसके बाद माता कैकयी ने भरत को जन्म दिया। साथ ही माता सुमित्रा ने लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया।
बहरहाल, इसी कारण चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को राम नवमी मनाया जाता है और पूरे विधि-विधान के साथ श्रद्धालु भगवान राम की पूजा-अर्चना करते हैं।
जानिए कौन हैं मां लक्ष्मी के भाई? इनके बिना अधूरी रहती हैं प्रत्येक पूजा?
दीपावली, जिसे दिवाली भी कहा जाता है, हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है। इसे अंधकार पर प्रकाश की, बुराई पर अच्छाई की और अज्ञानता पर ज्ञान की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसके पीछे विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार देवताओं और दानवों ने मिलकर क्षीरसागर में समुद्र मंथन किया था । इस समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्न सहित अमृत और विष की प्राप्ति हुई।
पौराणिक कथाओं में जहां भी मां लक्ष्मी का वर्णन है वहां श्री हरि विष्णु जी का जिक्र अवश्य होता है। ये दोनों हमेशा एक दूसरे के साथ ही पूजे जाते हैं।