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राक्षस विवाह क्या है?

राक्षस विवाह क्या है?

राक्षस विवाह में नहीं ली जाती स्त्री की सहमति, अमानवीय और क्रूर पद्धति मानी जाती है


भारतीय समाज में विवाह के 8 प्रकारों का उल्लेख मनुस्मृति और अन्य प्राचीन ग्रंथों में है। उन्हीं से एक है राक्षस विवाह जिसे क्रूर, अमानवीय और अस्वीकार्य विवाह पद्धतियों में ही गिना जाता है। इस प्रथा में पुरुष किसी स्त्री का बलपूर्वक अपहरण कर उससे विवाह करता था। स्त्री की सहमति का कोई महत्व नहीं होता था और यह विवाह पुरुष के बल और अधिकार प्रदर्शन माना जाता था। आइए इस लेख में राक्षस विवाह पद्धति के बारे में  रोचक चीजें जानते हैं। 


युद्ध में प्रचलित थी ये विवाह पद्धति


राक्षस विवाह की यह परंपरा मुख्य रूप से युद्ध और संघर्ष के समय प्रचलित थी। विजेता योद्धा पराजित पक्ष की स्त्रियों को जबरन अपने साथ ले जाते और उन्हें अपनी पत्नी बनाते। यह प्रथा स्त्री के सम्मान और स्वतंत्रता को पूरी तरह नकारती थी और समाज की नैतिकता पर गंभीर प्रश्न खड़े करती थी।


राक्षस विवाह का मूल अर्थ? 


मनुस्मृति के अनुसार राक्षस विवाह वह प्रथा है, जिसमें किसी स्त्री का बलपूर्वक अपहरण कर उसके परिवार को हराकर, और कभी-कभी उनके जीवन को समाप्त करके भी उससे विवाह किया जाता है।


मुख्य विशेषताएँ


  1. ल और अधिकार का प्रदर्शन: इस विवाह में पुरुष अपनी शारीरिक शक्ति और सामाजिक अधिकार का प्रदर्शन करता था।
  2. स्त्री की सहमति का अभाव: राक्षस विवाह में स्त्री की सहमति को पूरी तरह अनदेखा किया जाता था।
  3. युद्ध और संघर्ष का संबंध: यह प्रथा युद्ध के दौरान विजेता योद्धाओं द्वारा अपनाई जाती थी, जहां पराजित पक्ष की महिलाओं का अपहरण किया जाता था।

इसमें स्त्री के परिवार को समाप्त करना आवश्यक माना जाता था।


राक्षस विवाह का सामाजिक परिप्रेक्ष्य


राक्षस विवाह का उल्लेख महाकाव्यों और पौराणिक कथाओं में कई स्थानों पर मिलता है। महाभारत में भीष्म ने काशी के राजा की तीन पुत्रियों अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का अपहरण कर उन्हें हस्तिनापुर लाया था। वहीं, रामायण में रावण द्वारा सीता का अपहरण भी इस प्रथा का एक उदाहरण माना जा सकता है। हालांकि, रावण ने विवाह का प्रयास किया परंतु इसमें सफल नहीं हुआ।


क्या है सामाजिक दृष्टिकोण? 


राक्षस विवाह मुख्य रूप से उन समाजों में प्रचलित था जहां शक्ति और सत्ता का बोलबाला था। यह प्रथा स्त्री को मात्र एक वस्तु मानती थी। जिसे बलपूर्वक अधिग्रहित किया जा सकता था। समाज के प्रभावशाली वर्गों, जैसे योद्धाओं और राजा-महाराजाओं में यह प्रथा अधिक प्रचलित थी। 


शक्ति का प्रतीक था राक्षस विवाह 


उस समय के समाज में राक्षस विवाह शक्ति और पराक्रम का प्रतीक था। विजेता योद्धाओं के लिए यह उनकी श्रेष्ठता का प्रदर्शन था। स्त्रियों के लिए, यह विवाह उन्हें दासी बनने से बेहतर विकल्प माना जाता था। यह प्रथा मानवाधिकारों और नैतिकता के विरुद्ध थी। इसमें स्त्री की स्वतंत्रता, सहमति, और गरिमा का पूर्ण रूप से हनन होता था। आधुनिक दृष्टिकोण से, इसे अमानवीय और अन्यायपूर्ण माना गया है।


राक्षस और अन्य विवाह में अंतर


राक्षस विवाह को अन्य प्रकार के विवाहों की तुलना में सबसे निचले स्तर पर रखा गया है। ब्रह्म विवाह में परिवार और समाज की स्वीकृति के साथ विवाह होता है। वहीं, गंधर्व विवाह में प्रेम और सहमति के आधार पर होता है। जबकि, राक्षस विवाह को ना सहमति मिलती है ना ही सामाजिक स्वीकृति मिलती है। 


आज के समय में राक्षस विवाह


समाज में नैतिकता और मानवाधिकारों के विकास ने ऐसी प्रथाओं को समाप्त कर दिया है।

  • कानूनी अपराध: वर्तमान में बलपूर्वक किसी स्त्री से विवाह करना या उसका अपहरण करना अपराध माना जाता है।
  • महिलाओं के अधिकार: आधुनिक समाज में महिलाओं को स्वतंत्रता और समानता का अधिकार प्राप्त है। इस तरह की प्रथाओं को पूरी तरह अस्वीकार कर दिया गया है।
  • सामाजिक चेतना: राक्षस विवाह जैसी प्रथाओं को समाप्त करने के लिए शिक्षा, जागरूकता और सशक्तिकरण पर जोर दिया गया है। आधुनिक समाज ने इस प्रथा को अस्वीकार कर दिया है।  वर्तमान समय में मानवता और नैतिकता के विकास के लिए ऐसी प्रथाओं को त्यागना आवश्यक है।


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