भारतीय समाज में विवाह के 8 प्रकारों का उल्लेख मनुस्मृति और अन्य प्राचीन ग्रंथों में है। उन्हीं से एक है राक्षस विवाह जिसे क्रूर, अमानवीय और अस्वीकार्य विवाह पद्धतियों में ही गिना जाता है। इस प्रथा में पुरुष किसी स्त्री का बलपूर्वक अपहरण कर उससे विवाह करता था। स्त्री की सहमति का कोई महत्व नहीं होता था और यह विवाह पुरुष के बल और अधिकार प्रदर्शन माना जाता था। आइए इस लेख में राक्षस विवाह पद्धति के बारे में रोचक चीजें जानते हैं।
राक्षस विवाह की यह परंपरा मुख्य रूप से युद्ध और संघर्ष के समय प्रचलित थी। विजेता योद्धा पराजित पक्ष की स्त्रियों को जबरन अपने साथ ले जाते और उन्हें अपनी पत्नी बनाते। यह प्रथा स्त्री के सम्मान और स्वतंत्रता को पूरी तरह नकारती थी और समाज की नैतिकता पर गंभीर प्रश्न खड़े करती थी।
मनुस्मृति के अनुसार राक्षस विवाह वह प्रथा है, जिसमें किसी स्त्री का बलपूर्वक अपहरण कर उसके परिवार को हराकर, और कभी-कभी उनके जीवन को समाप्त करके भी उससे विवाह किया जाता है।
इसमें स्त्री के परिवार को समाप्त करना आवश्यक माना जाता था।
राक्षस विवाह का उल्लेख महाकाव्यों और पौराणिक कथाओं में कई स्थानों पर मिलता है। महाभारत में भीष्म ने काशी के राजा की तीन पुत्रियों अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का अपहरण कर उन्हें हस्तिनापुर लाया था। वहीं, रामायण में रावण द्वारा सीता का अपहरण भी इस प्रथा का एक उदाहरण माना जा सकता है। हालांकि, रावण ने विवाह का प्रयास किया परंतु इसमें सफल नहीं हुआ।
राक्षस विवाह मुख्य रूप से उन समाजों में प्रचलित था जहां शक्ति और सत्ता का बोलबाला था। यह प्रथा स्त्री को मात्र एक वस्तु मानती थी। जिसे बलपूर्वक अधिग्रहित किया जा सकता था। समाज के प्रभावशाली वर्गों, जैसे योद्धाओं और राजा-महाराजाओं में यह प्रथा अधिक प्रचलित थी।
उस समय के समाज में राक्षस विवाह शक्ति और पराक्रम का प्रतीक था। विजेता योद्धाओं के लिए यह उनकी श्रेष्ठता का प्रदर्शन था। स्त्रियों के लिए, यह विवाह उन्हें दासी बनने से बेहतर विकल्प माना जाता था। यह प्रथा मानवाधिकारों और नैतिकता के विरुद्ध थी। इसमें स्त्री की स्वतंत्रता, सहमति, और गरिमा का पूर्ण रूप से हनन होता था। आधुनिक दृष्टिकोण से, इसे अमानवीय और अन्यायपूर्ण माना गया है।
राक्षस विवाह को अन्य प्रकार के विवाहों की तुलना में सबसे निचले स्तर पर रखा गया है। ब्रह्म विवाह में परिवार और समाज की स्वीकृति के साथ विवाह होता है। वहीं, गंधर्व विवाह में प्रेम और सहमति के आधार पर होता है। जबकि, राक्षस विवाह को ना सहमति मिलती है ना ही सामाजिक स्वीकृति मिलती है।
समाज में नैतिकता और मानवाधिकारों के विकास ने ऐसी प्रथाओं को समाप्त कर दिया है।
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भारत में पूर्णिमा का बहुत महत्व है और देश के प्रमुख क्षेत्रों में इसे पूर्णिमा कहा जाता है। पूर्णिमा का दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि अधिकांश प्रमुख त्यौहार या वर्षगांठ इसी दिन पड़ती हैं।
वसंत पूर्णिमा की विशेष पूजा से लेकर अन्य धार्मिक गतिविधियों तक, इस पूर्णिमा को वर्षभर में विशेष महत्व दिया जाता है।
डोल पूर्णिमा का त्यौहार मुख्य रूप से बंगाल, असम, त्रिपुरा, गुजरात, बिहार, राजस्थान और ओडिशा में मनाया जाता है। इस दिन राधा-कृष्ण की मूर्ति को पालकी पर बिठाया जाता है और भजन गाते हुए जुलूस निकाला जाता है।