Logo

आज जगन्नाथ पुरी में स्नान पूर्णिमा

आज जगन्नाथ पुरी में स्नान पूर्णिमा

Jagannath Snana Yatra: देवस्नान पूर्णिमा पर भगवान जगन्नाथ का होता है राजसी स्नान, 108 सोने के घड़ों से होगा देव स्नान, जानें पूरी परंपरा

ओडिशा के पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर में हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन ‘देवस्नान पूर्णिमा’ का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, बल्कि भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा की शुरुआत का भी प्रतीक माना जाता है। 2025 में यह शुभ तिथि 11 जून को पड़ रही है।

गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी, नर्मदा, सिंधु और कावेरी के जल से होता स्नान

स्नान पूर्णिमा, ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को मंदिर के गर्भगृह से बाहर लाया जाता है और सिंहासन पर विराजमान किया जाता है। इसके बाद पूरे विधि-विधान से तीनों को 108 सोने के कलशों (घड़ों) में लाए गए पवित्र जल से स्नान कराया जाता है।

इन कलशों में गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी, नर्मदा, सिंधु, कावेरी सहित विभिन्न पवित्र नदियों का जल लाया जाता है और उसमें चंदन, केसर, हल्दी, फूल और औषधीय तत्व मिलाए जाते हैं। 

108 कलशों से किया जाता है जलाभिषेक 

स्नान पूर्णिमा के दिन मंदिर के पुजारी विशेष वस्त्रों और नियमों का पालन करते हुए भगवानों को स्नान कराते हैं। इस अनुष्ठान को ‘जलाभिषेक’ कहा जाता है, जो कि लगभग 108 कलशों से किया जाता है। इस दौरान वेद पाठ, शंख ध्वनि और मृदंग की ध्वनि से वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है।

स्नान के बाद अनासार काल की होती है शुरुआत

स्नान के बाद भगवानों को ‘हाथी वेश’ में सजाया जाता है, जिसमें उन्हें गजरूप में दर्शाया जाता है। इसके बाद भगवान जगन्नाथ बीमार होने का अभिनय करते हैं, जिसे ‘अनासार’ या ‘अनवसर’ काल कहा जाता है। यह अवधि लगभग 14 दिनों की होती है। इस दौरान भगवान भक्तों को दर्शन नहीं देते। ऐसी मान्यता है कि इस समय वे विश्राम करते हैं और उनकी सेवा ‘राजवैद्य’ द्वारा की जाती है।

स्नान पूर्णिमा का धार्मिक महत्व

स्नान पूर्णिमा न केवल एक पवित्र स्नान अनुष्ठान है, बल्कि यह रथ यात्रा की तैयारी का पहला चरण भी है। भगवान जगन्नाथ की यह लीला दर्शाती है कि वह भी सामान्य भक्तों की तरह बीमार पड़ सकते हैं और इलाज की आवश्यकता पड़ सकती है। यह उनकी मानवता का प्रतीक है, जो उन्हें और अधिक प्रिय बनाता है।

........................................................................................................
अक्षय तृतीया मूलांक ज्योतिष

हिंदू पंचांग के अनुसार, अक्षय तृतीया का पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह दिन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत शुभ माना जाता हैI

अक्षय तृतीया पर इन पांच स्थानों पर जलाएं दीपक

अक्षय तृतीया वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। यह तिथि स्वयं में ही अबूझ मानी जाती है, अर्थात् इस दिन किसी भी शुभ कार्य को बिना मुहूर्त के किया जा सकता है।

अक्षय तृतीया 2025 कब है

भारत में मनाए जाने वाले त्योहार जीवन को अध्यात्म, आस्था और संस्कारों से जोड़ते हैं। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण पर्व है अक्षय तृतीया, जिसे ‘आखा तीज’ भी कहा जाता है।

अक्षय तृतीया के उपाय

अक्षय तृतीया को ‘अखा तीज’ भी कहा जाता है, जो वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि इस दिन किए गए शुभ कार्यों का फल कभी भी समाप्त नहीं होता है। इस साल अक्षय तृतीया 30 अप्रैल, बुधवार को मनाई जाएगी।

यह भी जाने
HomeAartiAartiTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang