अक्षय तृतीया वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। यह तिथि स्वयं में ही अबूझ मानी जाती है, अर्थात् इस दिन किसी भी शुभ कार्य को बिना मुहूर्त के किया जा सकता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है, और दीपक जलाने की परंपरा का भी विशेष महत्व होता है।
घर के मुख्य द्वार को माता लक्ष्मी का प्रवेश द्वार माना जाता है। इस स्थान पर दीपक जलाने से न केवल देवी लक्ष्मी का घर में आगमन होता है, बल्कि इसे धन की वृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। इससे घर में सकारात्मकता का संचार होता है।
उत्तर दिशा को कुबेर की दिशा कहा गया है, जो धन के देवता माने जाते हैं। साथ ही, यह दिशा मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए भी महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि यदि उत्तर दिशा में दीपक जलाया जाए, तो घर में समृद्धि और आर्थिक स्थिरता बनी रहती है।
रसोईघर को अन्न की देवी, मां अन्नपूर्णा का स्थान माना जाता है। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन इस स्थान पर दीपक जलाने से घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती। साथ ही, इसे भंडार की पूर्ति का प्रतीक माना जाता है।
अगर आपके घर के पास कुआं, तालाब या नदी मौजूद है, तो वहां दीपक जलाना भी शुभ माना जाता है। क्योंकि जल को जीवन का आधार कहा गया है, इसलिए ऐसे स्थानों पर दीपदान करने से जीवन में सफलता और शुद्धता का प्रवाह बना रहता है।
पूजा स्थल को घर का सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। यहां दीपक जलाने से घर में शांति, सकारात्मक ऊर्जा और मानसिक शुद्धता का संचार होता है।
सनातन धर्म में श्रीरामचरितमानस का पाठ अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। इसमें भी जब रामायण का पाठ बिना रुके, लगातार 24 घंटे किया जाए, तो उसे अखंड रामायण पाठ कहा जाता है।
हिंदू धर्म में भगवान हनुमान को संकटमोचन, बल-बुद्धि-विधाता और रामभक्ति के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि जिनके जीवन में दुःख, भय या बाधाएं लगातार बनी रहती हैं, उनके लिए हनुमानजी की शरण सबसे बड़ा सहारा है।
शांति केवल बाहर के वातावरण में नहीं, हमारे भीतर भी जरूरी है। जब मन अशांत हो, जीवन में बाधाएँ बार-बार आएं या मानसिक बेचैनी बनी रहे। तब शास्त्र हमें एक उपाय बताते हैं: शांति पूजा।
हिंदू धर्म में गीता को केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला माना गया है। यह महाभारत का ही एक हिस्सा है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अर्जुन को धर्म, कर्म, नीति और जीवन के रहस्यों का उपदेश दिया।