गोबिंद चले चरावन गैया ।
दिनो है रिषि आजु भलौ दिन,
कह्यौ है जसोदा मैया ॥
उबटि न्हवाइ बसन भुषन,
सजि बिप्रनि देत बधैया ।
करि सिर तिलकु आरती बारति,
फ़ुनि-फ़ुनि लेति बलैया ॥
’चतुर्भुजदास’ छाक छीके सजि,
सखिन सहित बलभैया ।
गिरिधर गवनत देखि अंक भर,
मुख चूम्यो व्रजरैया ॥
सनातन धर्म में प्राचीन काल से ही विश्वेश्वर व्रत भगवान शिव को समर्पित एक अत्यंत पवित्र व्रत है। इस व्रत को शिव जी की कृपा प्राप्त करने के उद्देश्य से रखा जाता है।
चंदा सिर पर है जिनके,
कानो में कुण्डल चमके,
चन्दन चौक पुरावा,
मंगल कलश सजावा,
चंदन है इस देश की माटी,
तपोभूमि हर ग्राम है ।