चन्दन चौक पुरावा,
मंगल कलश सजावा,
आओ आओ ना बाबा जी,
म्हारे आंगणे,
आओ आओ ना बाबा जी,
म्हारे आंगणे,
चंदन चौक पुरावा ॥
थारे मंदरिये में नित आवा,
आकर थारी म्हे ज्योत जगावा,
कंचन थाल सजावा,
चूरमो भोग लगावा,
आओ आओ ना बाबा जी,
म्हारे आंगणे,
आओ आओ ना बाबा जी,
म्हारे आंगणे,
चंदन चौक पुरावा ॥
बाबा थारे तो दरश म्हे प्यासा,
पूरी कर द्यो ना थे मन री आशा,
आज थाने रिझावा,
थाने भजन सुनावा,
आओ आओ ना बाबा जी,
म्हारे आंगणे,
आओ आओ ना बाबा जी,
म्हारे आंगणे,
चंदन चौक पुरावा ॥
बाबा लिले पे चढ़ के थे आओ,
म्हारे मनडे में भक्ति जगाओ,
थारे चरणा में आवा,
आके धोक लगावा,
आओ आओ ना बाबा जी,
म्हारे आंगणे,
आओ आओ ना बाबा जी,
म्हारे आंगणे,
चंदन चौक पुरावा ॥
बाबा मैं भी तो टाबर हूँ थारो,
म्हारा अटक्योड़ा कारज सारो,
ग्यारस रात जगावा,
हिल मिल थाने ही ध्यावा,
आओ आओ ना बाबा जी,
म्हारे आंगणे,
आओ आओ ना बाबा जी,
म्हारे आंगणे,
चंदन चौक पुरावा ॥
चन्दन चौक पुरावा,
मंगल कलश सजावा,
आओ आओ ना बाबा जी,
म्हारे आंगणे,
आओ आओ ना बाबा जी,
म्हारे आंगणे,
चंदन चौक पुरावा ॥
शास्त्रों के अनुसार देव उठनी एकादशी भगवान् श्री विष्णु जी की पूजा अर्चना के लिए श्रेष्ट दिन है। हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की तिथि को देव उठनी एकादशी मनाई जाती है।
पौराणिक मान्यता है कि देव उठनी एकादशी पर भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा से जाग कर एक बार पुनः संसार के संचालन की कमान अपने हाथों में ले लेते हैं।
सनातन धर्म में सभी तिथि किसी ना किसी देवी-देवता को ही समर्पित है। इसी प्रकार से हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित होती है।
“बोर भाजी आंवला, उठो देव सांवला।” ये कहावत तो हर किसी ने अपने घर में सुनी होगी। दरअसल, ये वही कहावत है जिसके द्वारा हर किसी के घर में देव उठनी ग्यारस के दिन भगवान का आह्वान होता है।