हिंदू धर्म के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन कहे जाने वाले महाकुंभ में अब एक महीने से भी कम का समय रह गया है। सभी 13 प्रमुख अखाड़े प्रयागराज पहुंच भी चुके हैं। और पहले शाही स्नान के लिए तैयार है। बता दें कि शाही स्नान की परंपरा सदियों से चली आ रही है। यह कुंभ मेले का पवित्र और महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जिसे महाकुंभ के शुरू होने का संकेत माना जाता है।
मान्यता है कि महाकुंभ में शाही स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस बार का पहला शाही स्नान पौष पूर्णिमा के दिन 13 जनवरी होने वाला है। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु प्रयाग के त्रिवेणी संगम पर पहुंचेंगे और डुबकी लगाएंगे। चलिए आपको पहले शाही स्नान और इस परंपरा का इतिहास के बारे में विस्तार से बताते हैं।
शाही स्नान" नाम परंपरा को शाही वैभव और दिव्यता से जोड़ता है। पुराने समय में राजा-महाराजाओं के साथ-साथ साधु-संतों का एक भव्य जुलूस स्नान के लिए जाता था। यह जुलूस एक शाही परेड जैसा होता था, जिसके कारण इसे "शाही स्नान" कहा जाने लगा।
पंचांग के मुताबिक पौष पूर्णिमा 13 जनवरी 2025 को सुबह 5 बजकर 3 मिनट पर शुरू होगी और 14 जनवरी 2025 को सुबह 3 बजकर 56 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में पहला शाही स्नान 13 जनवरी सोमवार को होगा। इस दौरान ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5 बजकर 27 मिनट से लेकर 6 बजकर 21 मिनट तक है।
शाही स्नान की प्रक्रिया भव्य होती है। अखाड़ों के संत और महात्मा अपने शिष्यों के साथ ढोल -नगाड़ों और पारंपरिक स्नान के लिए आते हैं। सबसे पहले साधु -संत शाही स्नान करते हैं और इसके बाद आम जनता स्नान करती हैं। इस तरह शाही स्नान कुंभ मेले का सबसे विशेष और महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जिसे हर भक्त एक बार अपने जीवन में करने की इच्छा रखता है।
महानिर्वाणी अखाड़े को अखाड़ों में सबसे पहले शाही स्नान करने का मौका मिलता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। ऐसे करके महानिर्वाणी अखाड़ा अन्य अखाड़ा और श्रद्धालुओं के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। इसलिए अखाड़े को अत्यधिक सम्मान जनक माना जाता है।
पहले शाही स्नान के अधिकार को लेकर साधुओं और अखाड़ों के बीच पुराने समय में संघर्ष और टकराव हो चुका है। 1760 में हरिद्वार महाकुंभ में जूना अखाड़ा और अन्य अखाड़ों के बीच टकराव की घटना सामने आई थी। यह विवाद शाही स्नान के क्रम को लेकर हुआ था। वहीं 18 शताब्दी में प्रयाग कुंभ के दौरान साधुओं के एक समूहों ने स्नान के दौरान दूसरे अखाड़े के साधु संतों पर हमला किया था। इसे कुंभ मेले के इतिहास का एक कठिन समय माना जाता है।
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आध्यात्म का लक्ष्य मोक्ष है, गुरु ग्रह आध्यात्मिक मार्ग है और केतु मोक्ष है केतु का प्रभाव व्यक्ति के आत्मिक और आध्यात्मिक विकास को बढ़ाता है। केतु को आध्यात्म, ज्योतिष, वैराग्य, मोक्ष, तंत्र , वायरस व अंतर्मुखी होने कारक माना जाता है। , Adhyaatm ka lakshy moksh hai, guru grah aadhyaatmik maarg hai aur ketu moksh hai ketu ka prabhaav vyakti ke aatmik aur aadhyaatmik vikaas ko badhaata hai. ketu ko aadhyaatm, jyotish, vairaagy, moksh, tantr , vaayaras va antarmukhee hone kaarak maana jaata hai.
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