अखाड़े महाकुंभ की शान होते हैं। इन्हें देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु कुंभ मेले में पहुंचते हैं। अखाड़ा परिषद ने कुल 13 अखाड़ों को मान्यता दे रखी है। यह अखाड़े बड़े लोकप्रिय और प्रसिद्ध है। इनमें आम तौर पर महिला संत और पुरुष संत होते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि किन्नरों का एक अपना अखाड़ा भी है, जिसे किन्नर अखाड़ा के नाम से जाना जाता है। जी हां किन्नर अखाड़ा देश का 13वां सबसे बड़ा अखाड़ा है। जिसमें 3000 से ज्यादा किन्नर है।
2018 में इसकी स्थापना हुई थी। वहीं 2019 के नासिक कुंभ से यह अस्तित्व में आया और कुछ ही समय में प्रसिद्ध हो गया। बता दें कि इस अखाड़े में शामिल होने के भी अपने नियम और इसकी अपनी पूजा पद्धति है । चलिए आपको इस अखाड़े के बारे में और विस्तार से बताते हैं।
किन्नर अखाड़े की स्थापना 2018 में हुई थी। इसका उद्देश्य किन्नरों की छवि को बदलना और उन्हें उनकी पहचान दिलाना था। 2019 के प्रयागराज कुंभ में यह पहली बार दिखाई दिया था। इस दौरान अखाड़े को सनातन धर्म की मुख्यधारा में शामिल होने का मौका मिला। अखाड़े के अनुयायियों ने समाज के अन्य वर्गों को संदेश दिया कि धर्म और आध्यात्मिकता पर किसी एक वर्ग का अधिकार नहीं है।
किन्नर अखाड़ा श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा के अधीन आता है। इसके भी बाकि अखाड़ों की तरह देश के 10 स्थानों पर मठ है। । देश भर में इसी अखाड़े के ही 13 उप अखाड़े है। इसमें शैव संप्रदाय को मानने वाले किन्नर, भगवान विष्णु को मानने वाले किन्नर, और गुरु नानक देव जी को मानने वाले किन्नर शामिल है। इसके अलावा गुजरात के अहमदाबाद में बहुचरा माता का मंदिर है, जिसे मुर्गी वाली माता का मंदिर कहा जाता है। कहा जाता है कि किन्नरों की यह माता देवी और सबसे पहला किन्नर अखाड़े में इन्हीं की पूजा होती हैं।
किन्नर अखाड़ा न केवल धार्मिक क्षेत्र में, बल्कि सामाजिक सुधार के क्षेत्र में भी सक्रिय रूप से काम रहा है। यह संगठन किन्नरों की शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए काम करता है। इसके जरिए अखाड़ा समाज में किन्नरों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण को बदलने की कोशिश कर रहा है।इसी कारण से अखाड़े में शामिल होने के लिए किन्नर को अपने पुराने जीवन का सबकुछ छोड़ना पड़ता है।
अखाड़ा सिर्फ इसलिए नहीं बनाया गया है कि हम धर्म के क्षेत्र में कोई दखल हो। दरअसल इस अखाड़े की कोशिश है किन्नरों की छवि को बदलना था। इसी कारण से किन्नर अखाड़ा न केवल धार्मिक क्षेत्र में, बल्कि सामाजिक सुधार के क्षेत्र में भी सक्रिय है। यह संगठन किन्नरों की शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए काम करता है। इसके माध्यम से समाज में किन्नरों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण को बदलने की कोशिश की जा रही है।
हिंदू धर्म की समृद्ध परंपरा में "सोलह संस्कार" का महत्वपूर्ण स्थान है, जो जीवन के हर महत्वपूर्ण पड़ाव को दिशा देते हैं। इन संस्कारों में से एक है अन्नप्राशन, जब बच्चा पहली बार ठोस आहार का स्वाद लेता है।
हिंदू धर्म में 16 संस्कारों का विशेष महत्व है और उनमें नौवां संस्कार है कर्णवेध। यह संस्कार बच्चे के कान छिदवाने का समय होता है जो सामान्यतः 1 से 5 वर्ष की उम्र में किया जाता है।
उपनयन संस्कार, जिसे जनेऊ संस्कार के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में 16 संस्कारों में से 10वां संस्कार है। यह संस्कार पुरुषों में जनेऊ धारण करने की पारंपरिक प्रथा को दर्शाता है, जो सदियों से चली आ रही है। उपनयन शब्द का अर्थ है "अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ना"।
बच्चे के जन्म के बाद हिंदू परंपरा में एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान किया जाता है जिसे मुंडन संस्कार कहा जाता है। यह अनुष्ठान न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि यह व्यक्ति की आत्मा की शुद्धि और नई शुरुआत का प्रतीक भी है।