Logo

कुबेर की पूजा कैसे करें?

कुबेर की पूजा कैसे करें?

कुबेर देवता की  पूजा इस विधि से करें, धन-धान्य में हो सकती है वृद्धि


हिंदू धर्म में कुबेर को धन के देवता के रूप में पूजा जाता है। उन्हें यक्षों का राजा भी कहा जाता है और वे समृद्धि का प्रतीक माने जाते हैं। जिन भक्तों पर कुबेर की कृपा होती है, उनके घर में कभी धन की कमी नहीं होती। कुबेर भगवान शिव के परम भक्त हैं और नौ निधियों के अधिपति हैं। कुबेर की पूजा करने से न केवल आर्थिक समृद्धि प्राप्त होती है, बल्कि जीवन में वैभव और सुख भी आता है। अब ऐसे में अगर आप कुबेर देवता की पूजा कर रहे हैं, तो उनकी पूजा किस विधि से करने से उत्तम परिणाम मिल सकते हैं। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य त्रिपाठी जी से विस्तार से जानते हैं। 

कुबेर देवता कौन हैं? 


पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुबेर रावण के सौतेले भाई थे। रावण लंका का राजा था। कुबेर के पिता महर्षि विश्रवा और माता देववर्णिणी थीं। कुबेर को उत्तर दिशा का राजा और देवताओं के खजाने का रखवाला माना जाता है। उन्हें इस दुनिया की रक्षा करने वाला भी कहा जाता है।


कुबेर देवता की पूजा के लिए सामग्री क्या है? 


अगर आप कुबेर देवता की पूजा कर रहे हैं, तो पूजा के लिए सामग्री के बारे में पढ़ें। 

  • कुबेर देवता की मूर्ति या तस्वीर
  • धूप
  • दीपक
  • कपूर
  • रोली
  • चंदन
  • अक्षत
  • फूल
  • माला
  • नारियल
  • फल
  • मिठाई
  • पान
  • सुपारी
  • हल्दी
  • धनिया
  • कमलगट्टा
  • दूर्वा
  • कुबेर यंत्र


कुबेर देवता की पूजा किस विधि से करें? 


कुबेर देवता को धन का देवता माना जाता है। इनकी पूजा करने से धन-धान्य में वृद्धि होती है और घर में सुख-समृद्धि आती है। कुबेर देवता की पूजा करने के लिए विधि के बारे में जानें। 

  • पूजा स्थल तैयार करें- किसी साफ-सुथरे स्थान पर कुबेर देवता की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  • गणेश जी की पूजा - सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें।
  • कुबेर देवता का आह्वान - कुबेर देवता का ध्यान करते हुए उनका आह्वान करें।
  • दीपक जलाएं - दीपक जलाकर कुबेर देवता के पास रखें।
  • अर्ध्य दें - जल से भरे हुए कलश से कुबेर देवता को अर्ध्य दें।
  • चढ़ावा - फूल, फल, मिठाई, पान, सुपारी आदि चढ़ाएं।
  • अक्षत और रोली -  कुबेर देवता को अक्षत और रोली से तिलक लगाएं।
  • मंत्र जाप - कुबेर देवता के मंत्रों का जाप करें।
ऊं यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥
ऊं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः॥
ऊं ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी1 मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥ 
  • आरती  - आखिर में कुबेर देवता की आरती करें। 


कुबेर देवता की पूजा किस दिन करना चाहिए? 


 गुरुवार को कुबेर देवता का दिन माना जाता है। इस दिन कुबेर देवता की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होता है। इससे उत्तम परिणाम मिल सकते हैं। 


कुबेर देवता की पूजा करने के नियम 


  • सूर्योदय से पहले कुबेर देवता की पूजा करना उत्तम माना जाता है।
  • शाम को सूर्यास्त के समय भी कुबेर देवता की पूजा की जा सकती है।
  • कुबेर देवता की मूर्ति के साथ-साथ अपनी तिजोरी की भी पूजा करें।
  • हल्दी और धनिया को एक कपड़े में बांधकर तिजोरी में रखें।
  • पूजा के बाद जरूरतमंदों को दान करें।
  • तिजोरी में कमलगट्टा जरूर रखें।


कुबेर देवता की पूजा करने से मिलते हैं ये लाभ 


कुबेर देवता की पूजा करने से धन में वृद्धि होती है। व्यापार में लाभ होता है और आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। कुबेर देवता की कृपा से घर में सुख-समृद्धि आती है। जीवन में समृद्धि और खुशहाली आती है। कुबेर देवता की पूजा करने से ऋण से मुक्ति मिलती है। व्यापारियों के लिए कुबेर देवता की पूजा बहुत फायदेमंद होती है। इससे व्यापार में सफलता मिलती है और धन लाभ होता है। कुबेर देवता की पूजा करने से जीवन के कष्ट दूर होते हैं और व्यक्ति को सुख मिलता है।

........................................................................................................
श्री नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्रम्

नरसिंह द्वादशी के दिन भगवान विष्णु के सिंह अवतार की पूजा की जाती है। पौराणिक कथा और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी तिथि पर भगवान विष्णु ने भक्त प्रहलाद की रक्षा करने के लिए नरसिंह रूप में अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया था।

होली से पहले आने वाला होलाष्टक क्या है

एक पौराणिक कथा है जिसके अनुसार जब प्रह्लाद भगवान विष्णु की स्तुति गाने के लिए अपने पिता हिरण्यकश्यप के सामने अड़ गए, तो हिरण्यकश्यप ने भगवान हरि के भक्त प्रह्लाद को आठ दिनों तक यातनाएं दीं।

होलाष्टक से जुड़े पौराणिक कथा

होलाष्टक का सबसे महत्वपूर्ण कारण हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कथा से जुड़ा है। खुद को भगवान मानने वाला हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रह्लाद की भक्ति से नाराज था।

होलाष्टक के यम-नियम क्या हैं

हिंदू पंचांग के अनुसार होलाष्टक होली से पहले आठ दिनों की एक विशेष अवधि है, जो फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से होलिका दहन तक चलती है। इस अवधि के दौरान कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित होता है।

यह भी जाने
HomeAartiAartiTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang