कुंभ मेला भारत का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और विश्व प्रसिद्ध धार्मिक आयोजन है। यह मेला हर 12 साल में चार विशेष स्थानों पर आयोजित किया जाता है: प्रयागराज (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। इन जगहों को कुंभ से जुड़ा हुआ पवित्र स्थल माना जाता है। कुंभ मेला में लाखों श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं और इसे भारतीय संस्कृति, धर्म और आस्था का प्रतीक माना जाता है। यह मेला भारतीय समाज में एकता, धार्मिक आस्था और समर्पण का प्रतीक है।
कुंभ मेला का आयोजन पौराणिक मान्यताओं पर आधारित है। हिन्दू धर्म में मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान देवता और राक्षसों के बीच अमृत कलश के लिए युद्ध हुआ था। इस युद्ध में भगवान विष्णु ने अमृत कलश को अपने वाहन गरुड़ के माध्यम से देवताओं के पास सुरक्षित रखा। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें प्रयागराज (इलाहाबाद), हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में गिरीं थीं। इसलिए, तभी से इन स्थानों पर हर 12 साल में महाकुंभ मेला आयोजित किया जाता है।
कुंभ मेला ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर हर 12 साल के अंतराल पर आयोजित किया जाता है। जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं। तब इन विशिष्ट स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। प्रत्येक स्थान पर कुंभ का आयोजन अलग-अलग समय पर होता है, लेकिन हर स्थान का महत्व समान है।
कुंभ मेला हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण आयोजन माना जाता है। इसलिए, हर कुंभ में श्रद्धालु आते हैं और पवित्र नदियों में स्नान करने से उन्हें पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कुंभ मेला एक अवसर होता है जब दुनियाभर से लोग एकत्रित होते हैं और समाज के विभिन्न वर्गों के लोग एक दूसरे से मिलते हैं। इस मेले में लाखों साधु-संत और नागा साधु भी शामिल होते हैं जो अपने विशेष ध्यान और साधना में लीन रहते हैं और श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बने रहते हैं।
सनातन धर्म में मौनी अमावस्या बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। हिंदू धर्म शास्त्रों में इस दिन स्नान और दान की पंरपरा सदियों से चली आ रही है। मौनी अमावस्या के दिन पितृ धरती पर आते हैं।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, माघ का महीना 11वां होता है। इस माह में पड़ने वाले व्रत का विशेष महत्व होता है। इनमें मौनी अमावस्या भी शामिल है। माघ माघ की अमावस्या को मौनी अमावस्या भी कहा जाता है।
हिंदू धर्म में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव को समर्पित किया गया है। इस दिन को हर महीने मासिक शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। भक्तगण इस दिन व्रत रखते हैं और भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करते हैं।
मौनी अमावस्या पर मौन रहने का नियम है। सनातन धर्म शास्त्रों में इस दिन स्नान और दान की पंरपरा सदियों से चली आ रही है। यह केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का एक महत्वपूर्ण साधन भी है।