है नया ओज है नया तेज,
आरंभ हुआ नव चिंतन
विराट भारत विशाल भारत,
कर रहा नवयुग का अभिनंदन
हर-हर में घर-घर में स्वर्ण स्वर भारत
हर-हर में घर-घर में स्वर्ण स्वर भारत
सतयुग त्रेता द्वापर के बाद,
प्रारंभ हुआ परिवर्तन
सतयुग त्रेता द्वापर के बाद,
प्रारंभ हुआ परिवर्तन
दिव्य अलौकिक अखंड भारत,
कर रहा नवयुग का अभिनंदन
दिव्य अलौकिक अखंड भारत,
कर रहा नवयुग का अभिनंदन
कण-कण में मन-मन में स्वर्ण स्वर भारत
कण-कण में मन-मन में स्वर्ण स्वर भारत
अंतरनाद बजा
जल थल नभ गूंज उठा
देवलोक में उत्सव से
ब्रम्हांड झूम उठा
कोश-कोश तृण-तृण हर जीवन
हो रहा नादब्रह्म से पावन
कोश-कोश तृण-तृण हर जीवन
हो रहा नादब्रह्म से पावन
दिव्य अलौकिक अखंड भारत,
कर रहा नवयुग का अभिनंदन
BhaktiBharat Lyrics
हृदय-हृदय उदय-उदय स्वर्ण स्वर भारत
हृदय-हृदय उदय-उदय स्वर्ण स्वर भारत
हृदय-हृदय उदय-उदय स्वर्ण स्वर भारत
हृदय-हृदय उदय-उदय स्वर्ण स्वर भारत
चिंतन में मंथन में स्वर्ण स्वर भारत
चिंतन में मंथन में स्वर्ण स्वर भारत
चिंतन में मंथन में स्वर्ण स्वर भारत
चिंतन में मंथन में स्वर्ण स्वर भारत
हरयुग में नवयुग में स्वर्ण स्वर भारत
हरयुग में नवयुग में स्वर्ण स्वर भारत
हरयुग में नवयुग में स्वर्ण स्वर भारत
हरयुग में नवयुग में स्वर्ण स्वर भारत
काशी के राजा भगवान विश्वनाथ और कोतवाल भगवान काल भैरव की जोड़ी हिंदू पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
शास्त्रों में भगवान काल भैरव को भगवान शिव का रौद्र रूप माना गया है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान कालभैरव की पूजा-अर्चना करने से बुरी शक्तियों से मुक्ति मिलती है।
प्रथम वंदनीय गणेशजी को समर्पित मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान गणेश की आराधना का विशेष महत्व है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले गणेश जी की पूजा का विधान है। इसी लिए विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता गणेश जी को समर्पित गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि का बनी रहती है।