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दक्षिण भारत की दीवाली

दक्षिण भारत की दीवाली

दक्षिण भारत में सीमित शोर में मानते हैं दिवाली, जानें इस दिन का विशेष महत्त्व  


दिवाली भारत का सबसे प्रमुख त्योहार है। लेकिन इसे देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग परंपराओं के साथ मनाया जाता है। उत्तर भारत में यह भगवान राम की अयोध्या वापसी की खुशी में मनाई जाती है। जबकि, दक्षिण भारत में नरकासुर राक्षस के वध का जश्न नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता हैं। दोनों क्षेत्रों में दिवाली का सांस्कृतिक महत्व समान है। लेकिन इसे मनाने का तरीका भिन्न है। उत्तर भारत में घरों की सजावट, पटाखे, और धनतेरस का महत्व है। जबकि, दक्षिण भारत में धार्मिक पूजा और आत्मशुद्धि पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है।


दक्षिण भारत में कैसे मनाते हैं दिवाली?


दक्षिण भारत में दिवाली की मान्यता और परंपराएं उत्तर भारत से अलग हैं। यहाँ नरक चतुर्दशी को प्रमुखता दी जाती है। जिसे दिवाली से ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन को नरकासुर वध के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान कृष्ण ने नरकासुर नामक असुर का वध कर धरती को उसके अत्याचारों से मुक्त किया था।


दक्षिण भारत में दिवाली की प्रमुख परंपराएं


नरक चतुर्दशी:- दिवाली से एक दिन पहले अमावस्या की तिथि को दक्षिण भारत के कई हिस्सों में नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। 


तेल स्नान की परंपरा:- इस दिन लोग सूर्योदय से पहले उठकर तेल स्नान करते हैं। जिसे पवित्र और शुभ माना जाता है। इस स्नान का उद्देश्य बुराइयों से मुक्ति और आत्मशुद्धि करना है। 


पूजा स्थल की सजावट:- दक्षिण भारत में लोग दिवाली के दिन मंदिरों में जाकर भगवान की पूजा करते हैं। कई लोग घर में भी पूजा-अर्चना करते हैं और दीप जलाते हैं। हालाँकि, उत्तर भारत की तुलना में यहाँ दीयों और पटाखों का चलन कम ही देखा जाता है।


मिठाई और उपहारों का आदान-प्रदान:- उत्तर भारत की तरह यहाँ भी मिठाई बांटने और शुभकामनाएं देने की परंपरा है। लोग रिश्तेदारों और मित्रों से मिलते हैं और एक-दूसरे को त्योहार की बधाई के रूप में कुछ उपहार देते हैं।


पटाखे जलाने की सीमित परंपरा:- दक्षिण भारत में पटाखे जलाने का चलन उत्तर भारत की तुलना में कम है। यहाँ लोग पर्यावरण और शांति का विशेष ध्यान रखते हैं। 


उत्तर भारत में दिवाली मनाने की परंपराएं


उत्तर भारत में दिवाली भगवान राम के अयोध्या लौटने की खुशी में मनाई जाती है। मान्यता है कि जब भगवान राम 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो अयोध्यावासियों ने पूरे शहर को दीयों से सजाकर उनका स्वागत किया था। तब से ही दीयों का त्योहार दिवाली मनाने की परंपरा चल रही है। अमावस्या की रात को दीप जलाकर और पटाखे फोड़कर मनाया जाता है।


उत्तर भारत में दिवाली से जुड़ी प्रमुख परंपराएं


लक्ष्मी-गणेश पूजा - इस दिन लोग धन की देवी लक्ष्मी और गणेश की पूजा करते हैं। 


धनतेरस का महत्व - दिवाली से दो दिन पहले धनतेरस मनाया जाता है, जिसे खरीदारी का शुभ दिन माना जाता है। इस दिन सोना, चांदी या धातु की वस्तुएं खरीदना शुभ होता है। 


 वित्तीय वर्ष की शुरुआत - उत्तर भारत में दिवाली के दिन नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत भी मानी जाती है। व्यापारी अपने खाता-बही बदलते हैं। 


रंगोली बनाने की परंपरा - उत्तर भारत में लोग अपने घरों को दीयों, लाइट्स, तोरण और रंगोली से सजाते हैं। ये सभी शुभता और सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती है।


फिल्मी स्क्रीनिंग और सेलिब्रेशन - कई स्थानों पर दिवाली का जश्न विशेष इवेंट्स, पार्टियों और फिल्मों की स्क्रीनिंग के माध्यम से भी मनाया जाता है।


उत्तर और दक्षिण में दिवाली के बीच अंतर


पौराणिक मान्यताओं का अंतर:- उत्तर भारत में दिवाली रामायण से जुड़ी हुई है। जहाँ भगवान राम की घर वापसी की खुशी में इसे मनाया जाता है। वहीं, दक्षिण भारत में यह महाभारत और कृष्ण से संबंधित है, जहाँ नरकासुर के वध का उत्सव मनाया जाता है।


तिथियों में भिन्नता:- दक्षिण भारत में दिवाली एक दिन पहले यानी नरक चतुर्दशी के दिन मनाई जाती है। जबकि, उत्तर भारत में इसे अमावस्या की रात को मनाया जाता है।


मनाने के अंदाज में अंतर:- उत्तर भारत में दिवाली का जश्न बड़े स्तर पर होता है। इसमें घरों की सजावट, पटाखे, पार्टियां और धनतेरस जैसी परंपराएँ शामिल हैं। जबकि, दक्षिण भारत में यह त्योहार अधिक धार्मिक और सीमित तरीके से मनाया जाता है। 


हालांकि, दिवाली चाहे उत्तर भारत में मनाई जाए या दक्षिण भारत में इसका मूल संदेश अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ना ही है। दोनों ही क्षेत्रों में दिवाली मनाने के तरीके और मान्यताएँ भले ही अलग हों लेकिन यह त्योहार भाईचारे, प्रेम और सकारात्मकता का प्रतीक है।


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कुंभ और अखाड़ों का क्या संबंध है?

कुंभ मेला भारत की प्राचीन धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है, जिसे विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक आयोजन माना जाता है। हर 12 साल में होने वाले इस आयोजन का मुख्य आकर्षण साधु संतों के अखाड़े होते हैं। अखाड़े हिंदू धर्म के प्रमुख संगठन , जो सनातन के प्रचार-प्रसार का काम करते है।

प्रयागराज के संगम तट पर स्नान के फायदे

प्रयागराज हिंदू धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में गिना जाता है। महादेव की इस पावन नगरी में 12 जनवरी से 26 फरवरी के बीच कुंभ मेले का आयोजन होने वाला है। देश-दुनिया से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां के संगम घाट पर स्नान करने पहुचेंगे। यह घाट करोड़ों श्रद्धालुओं को सबसे बड़ा आस्था का केंद्र है।

प्रयागराज के सुंदर घाट

प्रयागराज में अगले साल 13 जनवरी से 26 फरवरी से कुंभ मेला का आयोजन होने वाला है। इसके लिए तैयारियां जोरों- शोरों से चल रही है। हिंदू धर्म के मुताबिक कुंभ में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

हाथ में कलावा क्यों बांधते हैं?

कलावा, जिसे रक्षा सूत्र भी कहा जाता है, एक पवित्र धागा है जो विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग किया जाता है। इसे आमतौर पर सूती धागे से बनाया जाता है और इसे लाल, पीला या अन्य शुभ रंगों में रंगा जाता है।

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