मेरे शंकर भोले भाले,
बेड़ा पार लगाते है,
हर दुःख संकट में,
शिव भोले ही काम आते है ॥
सागर से निकला हलाहल,
देवों में मच गई हलचल,
सब देवता मिल के शिव के,
गुण गाने लगे वो हरपल,
शिव पीकर विष देवों के,
संकट को मिटाते है,
हर दुःख संकट में,
शिव भोले ही काम आते है ॥
जब भक्त भगीरथ गंगा,
को धरती पर ले आए,
गंगा का वेग भयंकर,
इस धरती पर ना समाए,
गंगा को शिवजी अपनी,
जटाओं में समाते है,
हर दुःख संकट में,
शिव भोले ही काम आते है ॥
ऋषियों ने गो हत्या का,
गौतम पे दोष लगाया,
जप तप कर ऋषि गौतम ने,
शिव जी को खूब मनाया,
गंगाजल से गौतम का,
शिव दोष मिटाते है,
हर दुःख संकट में,
शिव भोले ही काम आते है ॥
देवों के संग दानव ने,
जब जब भी युद्ध मचाया,
सब देव जनो ने मिलकर,
शिव जी का ध्यान लगाया,
भोले भंडारी से सब,
वरदान पाते है,
हर दुःख संकट में,
शिव भोले ही काम आते है ॥
मेरे शंकर भोले भाले,
बेड़ा पार लगाते है,
हर दुःख संकट में,
शिव भोले ही काम आते है ॥
पंचाग्नि अखाड़ा शैव संप्रदाय के सबसे प्राचीन अखाड़ों में से एक है। इसकी स्थापना 1136 ईस्वी में हुई थी। वर्तमान में इसका मुख्य केंद्र वाराणसी में स्थित है।
महानिर्वाणी अखाड़ा भारत के प्राचीन और प्रतिष्ठित अखाड़ों में से एक है, जिसका संबंध शैव संप्रदाय से है। अखाड़े का मुख्य केंद्र उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में है। वहीं इसके आश्रम ओंकारेश्वर, काशी, त्र्यंबकेश्वर, कुरुक्षेत्र, उज्जैन व उदयपुर में मौजूद है।
महाकुंभ की शुरुआत में अब 1 महीने का समय बचा है। लगभग सभी अखाड़े प्रयागराज भी पहुंच चुके हैं। लेकिन इन दिनों शैव संप्रदाय का एक अखाड़ा चर्चा में बना हुआ है।
हवन की परंपरा सदियों से चली आ रही है, जिसका उल्लेख रामायण और महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। अग्नि को देवताओं का प्रतीक मानते हुए, हवन या यज्ञ के माध्यम से ईश्वर की उपासना की जाती है।