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लाली लाली लाल चुनरियाँ (Laali Laali Laal Chunariya)

लाली लाली लाल चुनरियाँ (Laali Laali Laal Chunariya)

लाली लाली लाल चुनरियाँ,

कैसे ना माँ को भाए ॥


माई मेरी सूचियाँ जोतावाली माता

तेरी सदा ही जय,

माई मेरी उँचियाँ पहाड़ावाली माता,

तेरी सदा ही जय ॥


लाली लाली लाल चुनरियाँ,

कैसे ना माँ को भाए,

ये लाल चुनरियाँ नारी के,

तीनो ही रूप सजाए,

लाली लाली लाल चुनरियाँ,

कैसे ना माँ को भाए ॥


पावन होती है नारी की,

बाल अवस्था,

इसीलिए कन्या की हम,

करते है पूजा,

ये पूजा फल देती है,

सुखो के पल देती है,

हो सर पे देके लाल चुनर,

कंजक को पूजा जाए,

लाली लाली लाल चुनरियाँ,

कैसे ना माँ को भाए,

ये लाल चुनरियाँ नारी के,

तीनो ही रूप सजाए,

लाली लाली लाल चुनरिया,

कैसे ना माँ को भाए ॥


दूजे रूप में आके नारी,

बने सुहागन,

प्यार ही प्यार बना दे ये,

अपना घर आँगन,

मिले जो प्यार में भक्ति,

तो मन पा शक्ति,

हो लाल चुनरिया ओढ़ सुहागन,

रूपमति कहलाए,

लाली लाली लाल चुनरियाँ,

कैसे ना माँ को भाए,

ये लाल चुनरियाँ नारी के,

तीनो ही रूप सजाए,

लाली लाली लाल चुनरिया,

कैसे ना माँ को भाए ॥


तीजा रूप है माँ का जो,

ममता ही बांटे,

पलकों से चुन ले सबकी,

राहो के कांटे,

ये आँचल की छाया दे,

तो जीवन को महका दे,

हाँ लाल चुनरिया ओढ़ के माँ,

फूली नहीं समाए,

लाली लाली लाल चुनरियाँ,

कैसे ना माँ को भाए,

ये लाल चुनरियाँ नारी के,

तीनो ही रूप सजाए,

लाली लाली लाल चुनरिया,

कैसे ना माँ को भाए ॥

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अमृत स्नान पर अद्भुत संयोग

पंचांग के अनुसार, इस साल मौनी अमावस्या बुधवार, 29 जनवरी 2025 को है। बता दें कि माघ माह की अमावस्या को ही मौनी अमावस्या भी कहा जाता है। हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व होता है। इसे माघी अमावस्या भी कहा जाता है।

सिंहस्थ कुंभ कहां लगेगा

फिलहाल, जोर-शोर से महाकुंभ चल रहा है। इसमें नागा साधु के अलावा विभिन्न प्रकार के साधु-संन्यासी लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। देश के कोने-कोने से यहां साधु-संत पहुंचे हैं।

नागा साधु क्यों नहीं नहाते

नागा साधु एक विशेष प्रकार के संन्यासी होते हैं, जो अपनी साधना और तपस्या के लिए कठोर जीवनशैली अपनाते हैं। जबकि वे कुंभ मेले जैसे विशेष अवसरों पर पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, सामान्य साधु की तरह वे रोज नहाने पर विश्वास नहीं करते।

संन्यास और वैराग्य में क्या अंतर है

संन्यास और वैराग्य, दोनों ही आध्यात्मिक साधना के प्रमुख मार्ग हैं। परंतु, जब भी लोग किसी संन्यासी को देखते हैं तो अक्सर उन्हें वैरागी समझ लिया जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि दोनों ही उच्च आध्यात्मिक साधना और ईश्वर की भक्ति से जुड़े होते हैं।

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