फिलहाल, जोर-शोर से महाकुंभ चल रहा है। इसमें नागा साधु के अलावा विभिन्न प्रकार के साधु-संन्यासी लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। देश के कोने-कोने से यहां साधु-संत पहुंचे हैं। इसके अलावा श्रद्धालु भी दूर-दूर से आस्था की डुबकी लगाने यहां लगातार पहुंच रहे हैं। इस महाकुंभ का पहला अमृत स्नान मकर संक्रांति पर हो चुका है। इस महाकुंभ के साथ-साथ महाकाल की नगरी उज्जैन में लगने वाले सिंहस्थ कुंभ की चर्चाएं भी शुरु हो गई हैं। तो आइए, इस आर्टिकल में विस्तार से जानते हैं कि सिंहस्थ कुंभ का आयोजन कब और कहां पर किया जाता है।
उज्जैन में प्रत्येक 12 वर्षों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। उज्जैन में पिछला कुंभ 2016 में लगा था, और अब अगला कुंभ मेला 2028 में आयोजित होगा। बता दें कि साल 2028 में 27 मार्च से 27 मई तक उज्जैन में सिंहस्थ महापर्व होगा। इस दौरान 9 अप्रैल से 8 मई के बीच 03 शाही स्नान और 07 पर्व स्नान प्रस्तावित हैं। सरकार ने अनुमान लगाया है कि इस महाकुंभ में करीब 14 करोड़ श्रद्धालु बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन पहुंचेंगे।
उज्जैन में लगने वाले कुंभ मेले को सिंहस्थ मेला भी कहा जाता है, क्योंकि इसका नाम बृहस्पति ग्रह (ब्रहस्पति) के सिंह राशि में प्रवेश करने के उत्सव के अवसर पर पड़ा है। बता दें कि महाकुंभ का आयोजन सिर्फ तीर्थ नगरी प्रयागराज में होता है, लेकिन कुंभ मेला चार स्थानों पर आयोजित किया जाता है—हरिद्वार, नासिक, प्रयागराज और उज्जैन में। सिंहस्थ कुंभ नासिक या उज्जैन में जहां भी लगता है, वहां भारी संख्या में श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी सिंहस्थ कुंभ में शामिल होते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और उन्हें अक्षय फल की प्राप्ति हो जाती है।
सनातन हिंदू धर्म में कुंभ स्नान का विशेष महत्व है। इन दिनों प्रयागराज में महाकुंभ मेला का आयोजन चल रहा है। कुंभ मेले का आयोजन हर 12 साल पर होता है। कुंभ मेला भारत के चार प्रमुख शहर—हरिद्वार, नासिक, प्रयागराज और उज्जैन में होता है। इस समय, मध्य प्रदेश की राज्य सरकार उज्जैन में लगने वाले सिंहस्थ महाकुंभ की तैयारी में अभी से जुट गई है। वहीं, प्रयागराज में चलने वाला महाकुंभ आगामी 26 फरवरी तक चलेगा। महाकुंभ में मकर संक्रांति के बाद अब मौनी अमावस्या का अमृत स्नान 29 जनवरी को किया जाएगा, फिर 3 फरवरी को बसंत पंचमी का अमृत स्नान होगा। इसके बाद 12 फरवरी को माघी पूर्णिमा का अमृत स्नान किया जाएगा। अंतिम अमृत स्नान 26 फरवरी को महाशिवरात्रि पर होगा। इस स्नान के साथ ही महाकुंभ का समापन हो जाएगा।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश निकला, जिसे लेकर देवताओं और राक्षसों के बीच विवाद हुआ। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरी थीं। इसी कारण ये स्थान अति पवित्र हो गए। अमृत कलश से गिरी अमृत की बूंदों के कारण ही ये चारों स्थान पवित्र माने जाते हैं। इसलिए हर 12 वर्ष के अंतराल पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि कुंभ के दौरान स्नान, दान, जप, तप, पूजा-पाठ मोक्ष का द्वार खोलते हैं।
सनातन धर्म में हरिहर में हरि से आश्य है भगवान विष्णु और हर यानी कि भगवान शिव। दोनों एक दूसरे के आराध्य हैं। इनकी पूजा करने से व्यक्ति का भाग्योदय होता है और जातकों को उत्तम परिणाम मिलते हैं।
वैकुंठ एकादशी को सनातन धर्म में बेहद शुभ माना गया है। इसे मुक्कोटी एकादशी, पुत्रदा एकादशी और स्वर्ग वथिल एकादशी भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि यह एकादशी व्रत करने से वैकुंठ के द्वार खुलते हैं।
भगवान चक्रधर 12वीं शताब्दी के एक महान तत्त्वज्ञ, समाज सुधारक और महानुभाव पंथ के संस्थापक थे। महानुभाव धर्मानुयायी उन्हें ईश्वर का अवतार मानते हैं। उनका जन्म बारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में, गुजरात के भड़ोच में हुआ था। उनका जन्म नाम हरीपालदेव था।
मां भगवती के 51 शक्तिपीठों में से एक, ज्वालामुखी मंदिर, अपनी अनूठी विशेषता के लिए प्रसिद्ध है। इसे 'जोता वाली मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता सती के शरीर के टुकड़े जहां-जहां गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ स्थापित हुए।