लाल लाल चुनरी की अजब कहानी ॥
दोहा – लाली मेरी मात की,
जित देखूं तित लाल,
लाली देखन मैं गया,
मैं भी हो गया लाल ॥
लाल लाल चुनरी की अजब कहानी,
ओढ़ के आई मेरी अंबे भवानी,
अंबे भवानी जगदंबे भवानी,
अंबे भवानी जगदंबे भवानी ॥
ब्रह्मा जी ने इसको बनाया,
विष्णु ने डारी जरतारी,
चम चम चम चम चमके चुनरिया,
भोले ने है रंग डारी,
भक्ति भाव से भगत चढ़ाते,
भक्ति भाव से भगत चढ़ाते,
जो है प्रीत की निशानी,
लाल लाल चुनरीं की अजब कहानी,
ओढ़ के आई मेरी अंबे भवानी ॥
मैया के भावे मोरी लाल चुनरिया,
जी भर देखूं पर हटे ना नजरिया,
मैया के भावे मोरी लाल चुनरिया,
जी भर देखूं पर हटे ना नजरिया,
तोहे ध्याऊ में सांझ सवेरे,
तोहे ध्याऊ में सांझ सवेरे,
तु जगत की मां वरदानी,
लाल लाल चुनरीं की अजब कहानी,
ओढ़ के आई मेरी अंबे भवानी ॥
प्रीत का बंधन कभी ना टूटे,
मैया मोरी तू ना रूठे,
दम जो निकले तेरे चरणों में,
‘साहिल’ का ये दर न छूटे,
माफ हमे मां कर देना गर,
माफ हमें मां कर देना गर,
हो जाए जो नादानी,
लाल लाल चुनरीं की अजब कहानी,
ओढ़ के आई मेरी अंबे भवानी ॥
लाल लाल चुनरीं की अजब कहानी,
ओढ़ के आई मेरी अंबे भवानी,
अंबे भवानी जगदंबे भवानी,
अंबे भवानी जगदंबे भवानी ॥
मासिक दुर्गा अष्टमी का व्रत हर माह शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। सनातन धर्म में मासिक दुर्गाष्टमी का एक विशेष महत्व है, यह दिन मां दुर्गा की पूजा-अर्चना का होता है।
सनातन धर्म में हरिहर में हरि से आश्य है भगवान विष्णु और हर यानी कि भगवान शिव। दोनों एक दूसरे के आराध्य हैं। इनकी पूजा करने से व्यक्ति का भाग्योदय होता है और जातकों को उत्तम परिणाम मिलते हैं।
वैकुंठ एकादशी को सनातन धर्म में बेहद शुभ माना गया है। इसे मुक्कोटी एकादशी, पुत्रदा एकादशी और स्वर्ग वथिल एकादशी भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि यह एकादशी व्रत करने से वैकुंठ के द्वार खुलते हैं।
भगवान चक्रधर 12वीं शताब्दी के एक महान तत्त्वज्ञ, समाज सुधारक और महानुभाव पंथ के संस्थापक थे। महानुभाव धर्मानुयायी उन्हें ईश्वर का अवतार मानते हैं। उनका जन्म बारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में, गुजरात के भड़ोच में हुआ था। उनका जन्म नाम हरीपालदेव था।