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कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे (Kabhi Fursat Ho To Jagdambe)

कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे (Kabhi Fursat Ho To Jagdambe)

कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे,

निर्धन के घर भी आ जाना ।

जो रूखा सूखा दिया हमें,

कभी उस का भोग लगा जाना ॥


ना छत्र बना सका सोने का,

ना चुनरी घर मेरे टारों जड़ी ।

ना पेडे बर्फी मेवा है माँ,

बस श्रद्धा है नैन बिछाए खड़े ॥

इस श्रद्धा की रख लो लाज हे माँ,

इस विनती को ना ठुकरा जाना ।

जो रूखा सूखा दिया हमें,

कभी उस का भोग लगा जाना ॥


कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे,

निर्धन के घर भी आ जाना ।


जिस घर के दिए मे तेल नहीं,

वहां जोत जगाओं कैसे ।

मेरा खुद ही बिछौना डरती माँ,

तेरी चोंकी लगाऊं मै कैसे ॥

जहाँ मै बैठा वही बैठ के माँ,

बच्चों का दिल बहला जाना ।

जो रूखा सूखा दिया हमें,

कभी उस का भोग लगा जाना ॥


कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे,

निर्धन के घर भी आ जाना ।


तू भाग्य बनाने वाली है,

माँ मै तकदीर का मारा हूँ ।

हे दाती संभाल भिकारी को,

आखिर तेरी आँख का तारा हूँ ॥

मै दोषी तू निर्दोष है माँ,

मेरे दोषों को तूं भुला जाना ।

जो रूखा सूखा दिया हमें,

कभी उस का भोग लगा जाना ॥


कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे,

निर्धन के घर भी आ जाना ।

जो रूखा सूखा दिया हमें,

कभी उस का भोग लगा जाना ॥

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पितृ पक्ष की पौराणिक कथा

संतान के द्वारा श्राद्धकर्म और पिंडदान आदि करने पर पितरों को तृप्ति मिलती है, और वे अपनी संतानों को धन-धान्य और खुश रहने का आशीर्वाद देते हैं।

घर पर कैसे करें पितरों की पूजा

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में मनाए जाने वाले श्राद्ध को पितृ पक्ष कहते हैं। इस दौरान पूर्वजों का श्राद्ध उनकी तिथि के अनुसार श्रद्धा भाव से विधि-विधानपूर्वक किया जाता है।

शबरी जयंती पर इन चीजों का लगाएं भोग

सनातन धर्म में फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर शबरी जयंती मनाई जाती है। इस दिन व्रत और पूजन का विधान है। इस दिन भगवान राम के साथ माता शबरी का पूजन किया जाता है।

भगवान राम और माता शबरी की भेंट

माता शबरी रामायण की एक महत्वपूर्ण पात्र हैं, जिन्होंने भगवान राम की भक्ति में अपना जीवन समर्पित किया था। शबरी ने भगवान राम और माता सीता की प्रतीक्षा में वर्षों तक वन में निवास किया था।

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