हनुमत के गुण गाते चलो,
प्रेम की श्रद्धा बहाते चलो,
राह में आए जो कोई दुखी,
किरपा सभी पे बहाते चलो,
प्रेम की श्रद्धा बहाते चलो ॥
सारी दुनिया ने ठुकराया,
द्वार पे अर्जी लगाया,
चारों ओर अँधेरा छाया,
तब मैंने तुझको बुलाया,
आशा के दीप जलाते चलो,
किरपा सभी पे बहाते चलो,
प्रेम की श्रद्धा बहाते चलो ॥
भक्तों के हो तुम प्रतिपाला,
संकट मोचन बाला,
गल वैजन्ती माला सुन्दर,
लाल लंगोटे वाला,
सारे जग में है तेरा ही नाम,
किरपा सभी पे बहाते चलो,
प्रेम की श्रद्धा बहाते चलो ॥
चारों ओर है सिर्फ निराशा,
केवल तेरी ही आशा,
मैंने जब जब तुझको पुकारा,
तेरी शरण ही सहारा,
ध्यान लगा के रटते चलो,
किरपा सभी पे बहाते चलो,
प्रेम की श्रद्धा बहाते चलो ॥
हनुमत के गुण गाते चलो,
प्रेम की श्रद्धा बहाते चलो,
राह में आए जो कोई दुखी,
किरपा सभी पे बहाते चलो,
प्रेम की श्रद्धा बहाते चलो ॥
सनातन धर्म में फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर शबरी जयंती मनाई जाती है। इस दिन व्रत और पूजन का विधान है। इस दिन भगवान राम के साथ माता शबरी का पूजन किया जाता है।
माता शबरी रामायण की एक महत्वपूर्ण पात्र हैं, जिन्होंने भगवान राम की भक्ति में अपना जीवन समर्पित किया था। शबरी ने भगवान राम और माता सीता की प्रतीक्षा में वर्षों तक वन में निवास किया था।
शारदीय नवरात्र के बाद 10वें दिन दशहरे का त्योहार देश भर में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को माता दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था और भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था।
हर वर्ष आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विजयदशमी या दशहरा का पर्व मनाया जाता है जो कि अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक माना जाता है।