गुणवान मेरे गणपति बुद्धि के है दाता
है मेरे दाता सबके दाता भाग्यविधाता ।
मेरे दाता,मेरे दाता, मेरे दाता, मेरे दाता
है मेरे दाता सबके दाता भाग्यविधाता ॥
बैठे है ऊँचे आसन डाले तन दुशाला है
वो ही सुनने वाला है वो ही सूंड वाला है ।
गजमुखधर विशाला है गजवदन निराला है
तीनो लोक में देखो जपते जिनकी माला है ।
माता है सती पार्वती पिता भोलाभाला है
वो ही सुनने वाला है पुत्र सूंड वाला है ॥
बिगड़ी बनाने वाला बिगड़ी को बनाता,
आई हर मुसीबत को पल में मिटाता,
है मेरे दाता सबके दाता भाग्य विधाता ॥
करले भक्ति तू मनवा काम तेरे आएगी
फूटी हुई किस्मत भी तेरी बदल जाएगी ।
हर कारज में आते है पहले मेरे गणराजा
देवो के देव महादेवा मेरे गणराजा ।
आवाज में है गणराजा साज में गणराजा
राज में है गणराजा ताज में है गणराजा ॥
लाज में है गणराजा लाज बचाता
भक्तो को थाम लेता दुष्टो को गिराता
है मेरे दाता सबके दाता भाग्य विधाता ॥
मेरे दाता,मेरे दाता, मेरे दाता, मेरे दाता
है मेरे दाता सबके दाता भाग्यविधाता
गुणवान मेरे गणपति बुद्धि के है दाता
है मेरे दाता सबके दाता भाग्यविधाता ।
मेरे दाता,मेरे दाता, मेरे दाता, मेरे दाता
है मेरे दाता सबके दाता भाग्यविधाता ॥
प्रथम वंदनीय गणेशजी को समर्पित मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान गणेश की आराधना का विशेष महत्व है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले गणेश जी की पूजा का विधान है। इसी लिए विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता गणेश जी को समर्पित गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि का बनी रहती है।
हिंदू धर्म में मानव जीवन में कुल 16 संस्कारों का बहुत अधिक महत्व है इन संस्कारों में नौवां संस्कार कर्णवेध या कान छेदने का संस्कार।
हिन्दू धर्म में मुहुर्त का कितना महत्व है इस बात को समझने के लिए इतना ही काफी है कि हम मुहुर्त न होने पर शादी विवाह जैसी रस्मों को भी कई कई महिनों तक रोक लेते हैं।