प्रयागराज में हनुमान जी का एक ऐसा मंदिर, जिसकी मान्यता पूरे देश में है। देश के पांच प्रमुख हनुमान मंदिरों में से एक है संगम किनारे बड़े हनुमान का मंदिर। इस अनोखे मंदिर में प्रतिमा खड़ी नहीं बल्कि लेटी अवस्था में विराजमान है। यहां दर्शन किये बिना संगम स्नान अधूरा माना जाता है। इसलिए यहां पर अपार भीड़ लगती है।
माना जाता है कि हनुमान जी की विचित्र प्रतिमा दक्षिणाभिमुखी और 20 फीट लंबी है। यह धरातल से कम से कम 6 से 7 फीट नीचे हैं। संगम नगरी में इन्हें बड़े हनुमान जी, किले वाले हनुमान जी, लेटे हनुमान जी और बांध वाले हनुमान जी के नाम से जाना जाता है। इस प्रतिमा के बारे में ऐसा माना जाता है कि इनके बाएं पैर के नीचे कामदा देवी और दाएं पैर की नीचे अहिरावण दबा है। उनके दाएं हाथ में राम-लक्ष्मण और बाएं हाथ में गदा शोभित है। बजरंगबली यहां आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। यहां के बारे में कहा जाता है कि, लंका पर जीत हासिल करने के बाद जब हनुमान जी लौट रहे थे तो रास्ते में उन्हें थकान महसूस होने लगी। तो सीता माता के कहने पर वह यहां संगम के तट पर लेट गए। इसी को ध्यान में रखते हुए यहां लेटे हुए हनुमान जी का मंदिर बन गया।
मंदिर 600 से 700 साल पुराना माना जाता है। बताते हैं कि कन्नौज के राजा के कोई संतान नहीं थी। उनके गुरु ने उपाय के रुप में बताया कि हनुमान जी की ऐसी प्रतिमा का निर्माण करवाएं जो राम लक्ष्मण को नागपाश से छुड़ाने के लिए पाताल में गए थे। हनुमान जी का यह विग्रह विंध्याचल पर्वत से बनवाकर लाया जाना चाहिए। जब कन्नौज के राजा ने ऐसा ही किया और वह विंध्याचल से हनुमान जी की प्रतिमा नाव से लेकर आए।
तभी अचानक से नाव टूट गई और ये प्रतिमा जलमग्न हो गई। राजा को ये देखकर बहुत दुख हुआ और वो अपने राज्य वापस लौट गए। इस घटना के कई सालों बाद जब गंगा का जलस्तर घटा तो वहां धूनी जमाने का प्रयास कर रहे राम भक्त बाबा बालगिरी को ये प्रतिमा मिली। फिर उसके बाद वहां राजा ने मंदिर बनवाया।
1582 में अकबर अपने साम्राज्य को विस्तार देने में जब व्यस्त था तो वो इधर भी आया था। मगध, अवध, बंगाल सहित पूर्वी भारत में चलने वाले विद्रोह को शांत करने के लिए अकबर ने यहां एक किले का निर्माण कराया, जहां पर अकबर हनुमान जी को ले जाना चाहता था। उसने मूर्ति को हटाने का बहुत कोशिश की लेकिन मूर्ति टस से मस न हुई। वे जैसे-जैसे प्रतिमा को उठाने का प्रयास करते वह प्रतिमा वैसे-वैसे और ज्यादा धरती में बैठी जा रही थी। कहते हैं कि उसी समय हनुमान जी ने अकबर को सपना दिया। इसके बाद अकबर ने इस काम को रोक दिया और हनुमान जी से अपनी हार मान ली।
हर साल गंगा अपने जल से हनुमान जी का स्पर्श करती है और उसके बाद गंगा का पानी उतर जाता है। गंगा और यमुना में पानी बढ़ने पर लोग दूर-दूर से यहां का नजारा देखने आते है। मान्यता अनुसार हनुमान जी का गंगा में स्नान भारत भूमि के लिए सौभाग्य का सूचक माना जाता है। मंदिर में गंगा का प्रवेश प्रयागराज और संपूर्ण विश्व के लिए कल्याणकारी का सूचक माना जाता है।
हवाई मार्ग - मंदिर पहुंचने के लिए आपको प्रयागराज का बमरौली एयरपोर्ट सबसे नजदीक पड़ेगा। एयरपोर्ट से आप टैक्सी या ऑटो-रिक्शा लेकर सीधे मंदिर जा सकते हैं।
रेल मार्ग - अगर आप ट्रेन से सफर कर रहे है तो प्रयागराज जंक्शन पर उतरें। वहां से रिक्शा, टैक्सी या बस लेकर मंदिर पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग - प्रयागराज सभी जगह से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आप कार या बाइक से ट्रेवल कर रहे है तो प्रयागराज में राष्ट्रीय राजमार्ग 19 का उपयोग करें। ये मंदिर प्रयागराज के मुख्य स्थलों में से एक है, इसलिए आपको मार्ग में की संकेत भी मिलेंगे।
महाकुंभ मेला सनातन धर्म में एक अत्यधिक महत्वपूर्ण पर्व है, जो हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है। यह मेला चार प्रमुख स्थानों—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित किया जाता है।
हर साल माघ माह के दौरान कल्पवास के लिए प्रयागराज में भक्तों का जमावड़ा होता है, लेकिन इस बार का महाकुंभ माघ माह में होने के कारण इस संख्या में दोगुना इजाफा होने की उम्मीद है।
कुंभ की शुरुआत में अब 15 दिन से कम का समय रह गया है। 13 जनवरी से प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत होने वाली है। इस दौरान देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु और साधु-संत पवित्र नदियों में डुबकी लगाकर अपनी आस्था प्रकट करेंगे।
हिंदू धर्म में यमदेवता को मृत्यु के देवता के रूप में पूजा जाता है। यमराज या यमदेवता को संसार में मृत्यु के बाद आत्माओं का न्याय करने वाला देवता माना जाता है। वे पाताल लोक (नरक) के शासक हैं और मृत आत्माओं का मार्गदर्शन करते हैं।