हर साल माघ माह के दौरान कल्पवास के लिए प्रयागराज में भक्तों का जमावड़ा होता है, लेकिन इस बार का महाकुंभ माघ माह में होने के कारण इस संख्या में दोगुना इजाफा होने की उम्मीद है। कल्पवास की परंपरा सदियों पुरानी है, जिसे मानसिक और आध्यात्मिक शांति की प्राप्ति का मार्ग माना जाता है। यह परंपरा न केवल साधु-संतों, बल्कि महान राजाओं द्वारा भी निभाई गई है, और इसे मोक्ष प्राप्ति के रास्ते के रूप में देखा जाता है। हालांकि इस व्रत के दौरान कई सख्त नियमों का पालन करना होता है। जिसमें खानपान के नियम भी होते हैं। चलिए इन नियमों के बारे में आपको विस्तार से बताते हैं।
कल्पवास का महत्व हिंदू धर्म में गहरे आस्था और मोक्ष की ओर अग्रसर होने के रूप में माना जाता है। यह विशेष रूप से माघ महीने में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर संयमित जीवन जीने की परंपरा है, जो वर्षों से चली आ रही है। इस प्रक्रिया में पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए महत्वपूर्ण स्थान है। विश्वास है कि जो व्यक्ति कल्पवास के कड़े नियमों का पालन करता है, वह अपने सभी पापों से मुक्ति प्राप्त करता है और आत्मिक शांति की प्राप्ति होती है।
1.सात्विक भोजन
कल्पवास के दौरान सात्विक भोजन करना चाहिए। ताजे फल, सब्जियां रोटी खानी चाहिए।
2. तामसिक चीजों से बनाए दूरी
प्याज, लहसुन, अंडा जैसी चीजों से कल्पवास के दौरान दूरी बनाए। तेल, घी और मसालों का भी कम उपयोग करें और सादगी भरा भोजन खाए।
3. अल्प आहार खाए
कल्पवास के दौरान स्वयं भोजन बनाए और धारण और सीमित मात्रा में भोजन करें। यह तपस्या का ही एक हिस्सा है।
4.खाने से पहले प्रार्थना करें
भोजन एक निश्चित समय पर करें। साथ ही भोजन करने से पहले स्नान और भगवान का स्मरण जरूर करें।
5.दान और अन्न क्षेत्र में सेवा
कल्पवास के दौरान दान देना और अन्न क्षेत्र में जरूरतमंदों के लिए भोजन सेवा करना पुण्य का कार्य माना जाता है।
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