हिंदू धर्म में यमदेवता को मृत्यु के देवता के रूप में पूजा जाता है। यमराज या यमदेवता को संसार में मृत्यु के बाद आत्माओं का न्याय करने वाला देवता माना जाता है। वे पाताल लोक (नरक) के शासक हैं और मृत आत्माओं का मार्गदर्शन करते हैं। यमराज को यम, यमधर्मराज, और धर्मराज के नामों से भी जाना जाता है। वे ऋषि मरीचि के पुत्र और सूर्य देवता के भाई हैं। यमराज देवता का वाहन बैल है।
यमराज के साथ उनकी बहन यमुनाजी भी जुड़ी होती हैं, जो मृत्यु के बाद आत्माओं को शांति और मोक्ष दिलाने के लिए प्रकट होती हैं। हिंदू धर्म में यमराज का कार्य आत्माओं के कर्मों के आधार पर न्याय करना है, ताकि वे सुखी या दुखी जीवन के बाद अगले जन्म में नए शरीर में जन्म लें।
पौराणिक कथा के अनुसार, सावित्री ने अपने पति सत्यवान की मृत्यु के समय यमराज से उनके प्राण वापस लेने के लिए संघर्ष किया और यमराज को विजय प्राप्त की। आइए भक्त वत्सल के इस लेख में यम देवता की पूजा करने के बारे में विस्तार से जानते हैं।
यमदेवता की पूजा करने के लिए सामग्री के बारे में विस्तार से जान लें।
यमराज या यमदेवता मृत्यु के देवता माने जाते हैं, और उनका संबंध जीवन के अंत, मृत्यु, और पापों के परिणामों से है। यमदेवता की पूजा करने से विशेष रूप से मृत्यु के बाद की अवस्था में सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यमराज की पूजा से मृत्यु के समय के बारे में भय कम हो सकता है। यह विश्वास होता है कि यदि व्यक्ति नियमित रूप से यमराज की पूजा करता है, तो उसे मृत्यु के समय यमराज के दंड से बचाया जा सकता है। यमराज पापों और कर्मों के आधार पर मृत्यु के बाद न्याय करते हैं। यमदेवता की पूजा से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि यह पूजा आत्मा को शुद्ध करती है और अगले जन्म में अच्छे कर्मों का फल मिलता है। इतना ही नहीं, यमराज की पूजा से कुलदेवता की कृपा भी प्राप्त होती है, जिससे परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। इससे वंशवृद्धि और परिवार के लोगों की लंबी आयु का भी वरदान मिलता है। यमदेवता की पूजा करने के बाद दान करने से पुण्य फलों की प्राप्ति हो सकती है।
पंचांग के अनुसार फाल्गुना माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि है। वहीं आज सोमवार का दिन है। इस तिथि पर चित्रा नक्षत्र और शूल योग का संयोग बन रहा है।
चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि के दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है। इसी दिन माता अंजनी और वानरराज केसरी के घर बजरंगबली का जन्म हुआ था। प्रत्येक वर्ष यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।
श्री राम का जन्म चैत्र नवरात्रि नवमी तिथि के दिन अभिजित नक्षत्र में दोपहर बारह बजे के बाद हुआ था। इस दिन विधिपूर्वक भगवान राम की पूजा की जाती है। इसलिए, रामनवमी का दिन भगवान राम की पूजा के लिए समर्पित होता है।
हिंदू धर्म में रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम और स्नेह का प्रतीक है। बहनें इस पर्व का सालभर बेसब्री से इंतजार करती हैं। इस दिन वे अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उनकी लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं, जबकि भाई जीवनभर बहन की रक्षा करने का वचन देते हैं।