सनातन धर्म में गणेश चतुर्थी का पर्व धूम-धाम से मनाया जाता है। इस दौरान भक्त पूरी श्रद्धा के साथ गणपति जी का अपने घर में स्वागत करते हैं। इस उत्सव को 10 दिनों तक मनाया जाता है। लोग अपनी श्रद्धा के अनुसार, डेढ़ दिन, 3 दिन, 5 दिन, 7 दिन या 10 दिनों के लिए गणेश जी की स्थापना करते हैं। अंत में विधि-विधान से उनका विजर्सन किया जाता है। गणेश विजर्सन अनंत चतुर्दशी के दिन किया जाता है। तो आइए इस आलेख में गणेश विसर्जन के कारण और पौराणिक कथा को विस्तार से जानते हैं।
हिंदू धर्म में गणपति जी को प्रथम पूज्य माना गया है। गणेश पूजन के बाद भगवान गणेश से प्रार्थना की जाती है। प्रार्थना में भक्त भगवान गणेश से अगले साल फिर से सुख-समृद्धि और खुशियों के साथ घर में पधारने की विनती करते हैं। इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी है।
अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान गणपति को जल में विसर्जित कर दिया जाता है। दरअसल, गणेश जी जल तत्व के अधिपति हैं। पुराणों के अनुसार, वेद व्यास जी भगवान गणेश को कथा सुनाते थे और बप्पा उसे लिखते थे। कथा सुनाते समय वेद व्यास जी ने अपने नेत्र बंद कर लिए। वो 10 दिन तक कथा सुनाते गए और बप्पा उसे लिखते गए। लेकिन, जब दस दिन बाद वेद व्यास जी ने अपने नेत्र खोले तो देखा कि गणपति जी के शरीर का तापमान बहुत ज्यादा बढ़ गया था। वेद व्यास जी ने उनका शरीर ठंडा करने के लिए ही उन्हें जल में डुबा दिया जिससे उनका शरीर पुनः ठंडा हो गया। कहा जाता है कि उसी समय से यह मान्यता चली आ रही है कि गणेश जी को शीतल करने के लिए ही गणेश जी को विसर्जित किया जाता है।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार भगवान गणेश जी की दक्षिण में अपने भाई कार्तिकेय के यहां कुछ दिनों के लिए रहने गए। गणेश जी ने वहां रहते हुए सबका मन मोह लिया। फिर 10 दिन बाद वह वहां से अपने धाम के लिए विदा हुए और इस दौरान भगवान कार्तिकेय समेत सभी लोग काफी भावुक हो गए। तब उन्होंने गणपति जी को अगले साल फिर से आने का न्योता दिया। धार्मिक मान्यता हैं कि तभी से गणेश चतुर्थी के 10वें दिन गणेश जी का विसर्जन का प्रत्येक साल मनाया जाता है।
सनातन धर्म में भगवान शिव को सुख-सौभाग्य, सत्य और आस्था का प्रतीक माना जाता है। इनकी पूजा करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के भय से मुक्ति मिल सकती है।
हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि मनाई जाती है, जिसे मासिक शिवरात्रि कहते हैं। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है, जिसका विशेष महत्व है। महाशिवरात्रि का पर्व शिव भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में क्षिप्रा नदी के तट पर भगवान शिव महाकाल के रूप में विराजमान हैं। बारह ज्योतिर्लिंगों में यह तीसरे स्थान पर आता है। उज्जैन में स्थित यह ज्योतिर्लिंग देश का एकमात्र शिवलिंग है जो दक्षिणमुखी है। मंदिर से कई प्राचीन परंपराएं जुड़ी हुई हैं।
महाशिवरात्रि, हिंदू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जो भगवान शिव और माता पार्वती के दिव्य विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस पावन अवसर पर, प्रत्येक हिंदू घर में उत्साह और श्रद्धा का वातावरण होता है। शिव भक्त इस दिन विशेष रूप से व्रत रखते हैं और चारों पहर में भगवान शिव की आराधना करते हैं।