महाभारत कालीन नगर हस्तिनापुर का कुरु वंश से संबंध होने के कारण इसका पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व है। इसके साथ ही ये स्थान जैन तीर्थ क्षेत्र के रूप मे पूरे विश्व में अपनी अमिट पहचान बना चुकी है। यहां स्थित सुंदर व आकर्षक जैन मंदिरों की बड़ी श्रृंखला स्वत: ही पर्यटकों को अपनी आकर्षित करती हैं और प्रतिदिन यहां इन मंदिरों की अनूठी कला कृतियों को देखने के लिए हजारों लोग पहुंचते हैं। तो आइए, इस आर्टिकल में उत्तर प्रदेश के मेरठ में स्थित श्री दिगम्बर जैन मंदिर के इतिहास, महत्व और विशेषता के बारे में विस्तार पूर्वक जानते हैं।
धार्मिक मान्यता है कि इस मंदिर में स्थापित शांतिनाथ भगवान की प्रतिमा को रावण की पत्नी मंदोदरी द्वारा पूजा जाता था। यहां के जैन समाज के अध्यक्ष सुरेश जैन ऋतुराज ने बताया कि मंदिर में आयोजित विशेष आयोजनों में वेदी शुद्धि महोत्सव, जिनबिंब स्थापना और श्री कल्याण मंदिर विधान प्रमुख हैं।
मेरठ में स्थित श्री दिगंबर जैन बड़ा मंदिर अपने भव्य स्थापत्य और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर 31 फीट ऊंचा मान स्तंभ श्रद्धालुओं का स्वागत करता है। इसके चारों ओर छोटे-छोटे जिन मंदिर स्थित हैं, जबकि मुख्य मंदिर बीच में स्थित है। इस मंदिर में केवल एक ही वेदी है, जिसमें तीन दरवाजे हैं। मंदिर के भीतर श्वेत पाषाण से निर्मित भगवान शांतिनाथ की पद्मासन मुद्रा में प्रतिमा विराजमान है। इसके दाईं ओर भगवान अरहनाथ और बाईं ओर भगवान कुंथुनाथ की प्रतिमाएं स्थित हैं। बता दें कि इस परिसर में कई और महत्वपूर्ण मंदिर भी हैं, जिनमें पार्श्वनाथ मंदिर, नंदीश्वर द्वीप, अरहनाथ जैन मंदिर, नेमिनाथ मंदिर, आदिनाथ जिनालय, तीन मूर्ति मंदिर और समवशरण मंदिर शामिल हैं।
शांतिनाथ दिगंबर जैन पंचायती मंदिर पुराने शहर के बीचों-बीच स्थित शांतिनाथ दिगंबर जैन पंचायती मंदिर मेरठ का सबसे प्राचीन और भव्य जैन मंदिर है। यह मंदिर 300 वर्षों से भी अधिक पुराना है और हजारों वर्ग गज क्षेत्र में फैला हुआ है।
मंदिर में कुल 89 प्रतिमाएं हैं, जिनमें से कुछ धातु की और कुछ पाषाण से निर्मित हैं। मुख्य शिखर की ऊंचाई 125 फीट है और इस पर 13 फीट ऊंचा सोने का कलश सुशोभित है। इसके साथ ही मूलनायक भगवान शांतिनाथ की सफेद संगमरमर से बनी प्रतिमा यहां का प्रमुख आकर्षण है। इतना ही नहीं मूलनायक भगवान शांतिनाथ की वेदी के चारों ओर दीवारों पर सोने और कुंदन की नक्काशी है, जो मुगलकालीन कला और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतिनिधित्व करती है। इस प्रतिमा को भूगर्भ से प्राप्त बताया जाता है।
वहीं, मंदिर में भगवान पार्श्वनाथ की एक विशेष प्रतिमा भी है, जिसका वजन साढ़े तीन कुंतल है। यह प्रतिमा वियतनाम के पत्थर से निर्मित है और इसे सोने के कार्य से सुसज्जित वेदी पर स्थापित किया गया है। इस भव्य आयोजन ने श्रद्धालुओं को बेहद आकर्षित किया।
इस मंदिर में हर साल दशलक्षण पर्व के अंतिम दिन यानी अनंत चतुर्दशी को, एक भव्य वार्षिक रथयात्रा का आयोजन किया जाता है। इस रथयात्रा में हजारों की संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं और इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आते हैं।
प्रत्येक महीने दो पक्ष होते हैं शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है, जबकि कृष्ण पक्ष की चतुर्थी संकष्टी चतुर्थी कहलाती है। मार्गशीर्ष महीने में मनाई जाने वाली विनायक चतुर्थी भगवान गणेश की कृपा पाने का उत्तम समय है।
जय जय माँ, जय जय माँ ।
जय जय माँ, जय जय माँ ।
शुक्ल पक्ष की अष्टमी का दिन मां दुर्गा को समर्पित होता है। इस दिन विधिवत मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है। हिंदू पंचांग के मुताबिक, प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी मां दुर्गा की आराधना के लिए समर्पित होती है। इस विधि-विधान से व्रत और पूजा करके मां दुर्गा की स्तुति की जाती है।
मेरे मन मंदिर में तुम भगवान रहे,
मेरे दुःख से तुम कैसे अनजान रहे