Shukrawar Puja Vidhi: सनातन धर्म में किसी भी दिन उपवास या व्रत की परंपरा बहुत पुरानी और महत्वपूर्ण मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि यह धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। साथ ही मानसिक और शारीरिक शुद्धि के लिए बहुत ही अधिक फायदेमंद होता है। वहीं, ऐसी मान्यता भी है कि सप्ताह के प्रत्येक दिन का अपना एक विशेष महत्व होता है, और उस दिन विशेष देवी-देवता की पूजा-अर्चना की जाती है और व्रत रखा जाता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार शुक्रवार का दिन विशेष रूप से माता संतोषी और देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए शुभ माना जाता है। कहते हैं कि इस दिन अगर कोई भी भक्त विधि-विधान के साथ व्रत करता है तो उसके जीवन में सुख और समृद्धि आती है। साथ ही उसके सभी कष्ट भी दूर हो जाते हैं। ऐसे में इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि शुक्रवार के दिन किस विधि से माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए और किन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए।
अगर आप भी शुक्रवार का व्रत शुरू करना चाह रहे हैं तो कुछ महीनों को छोड़कर शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से इस व्रत की शुरुआत करें क्योंकि इसे बहुत शुभ माना जाता है। साथ ही ज्योतिष के अनुसार माघ महीने में इस व्रत की शुरुआत बहुत ही अधिक लाभकारी साबित होती है।
भक्त जिस दिन से शुक्रवार का व्रत शुरू करना चाह रहे हैं उस दिन सूर्योदय से पहले यानी ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद साफ वस्त्र धारण करना चाहिए। वस्त्र धारण करने के बाद माता संतोषी या माता लक्ष्मी के सामने शुक्रवार के व्रत का संकल्प लें। व्रत का संकल्प लेने के बाद पूजा घर में माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें और पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ माता की पूजा-अर्चना करें। साथ ही घी का दीपक जलाएं और माता को गुड़ एवं चने का भोग अर्पित करें। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि माता लक्ष्मी को ये दोनों भोग अत्यंत प्रिय है। इसके बाद मां लक्ष्मी व्रत चाली और व्रत कथा पढ़ें। तत्पश्चात माता लक्ष्मी की आरती करें।
शुक्रवार व्रत के दौरान भक्त को खटाई यानी खट्टे पदार्थों, जैसे नींबू, इमली, दही आदि का सेवन करने से बचना चाहिए। साथ ही इस दिन भूलकर भी नमक का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से व्रत का संकल्प टूट सकता है। इसके अलावा आप अगर माता संतोषी और देवी लक्ष्मी की कृपा पाना चाहते हैं तो ध्यान से शुक्रवार के दिन लाल रंग के वस्त्र धारण करें क्योंकि यह बहुत ही शुभ माना जाता है।
कुंभ मेले का आयोजन हर 12 साल में होता है। जनवरी 2025 से संगम नगरी प्रयागराज में मेले की शुरुआत होने जा रही है। इस दौरान वहां ऐसे अद्वितीय नजारे देखने को मिलेंगे, जो आम लोग अपनी जिंदगी में बहुत कम ही देखते हैं।
हिंदू धर्म में साधु-संतों का बहुत महत्व होता है। यह आम लोगों को आध्यात्मिक पथ पर चलने के लिए मार्गदर्शन देते हैं। साधु -संत भी कई प्रकार के होते हैं। अघोरी और नाग साधु उन्हीं का एक प्रकार है।
कुंभ मेले की शुरुआत अगले साल 13 जनवरी से प्रयागराज में हो रही है। इसके लिए तैयारियां जोरों शोरों से चल रही है। यह हिंदू धर्म का सबसे बड़ा समागम है, जो पूरी दुनिया का ध्यान भारत की ओर खींचता है।
महाभारत के भीषण युद्ध में कई महान योद्धाओं ने अपने प्राण गवाए, लेकिन एक ऐसा योद्धा था जिसे आज भी जीवित माना जाता है। वह गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शंकर के आशीर्वाद से अश्वत्थामा को अमरता का वरदान प्राप्त था।