Logo

अघोरी और नागा साधु में क्या अंतर है?

अघोरी और नागा साधु में क्या अंतर है?

MahaKumbh 2025-  कुंभ में चर्चा का विषय होते हैं अघोरी और नागा साधु, जानें दोनों साधु समुदायों के बीच का अंतर


हिंदू धर्म में साधु-संतों का बहुत महत्व होता है। यह आम लोगों को आध्यात्मिक पथ पर चलने के लिए मार्गदर्शन देते हैं। साधु -संत भी कई प्रकार के होते हैं। अघोरी और नाग साधु उन्हीं का एक प्रकार है। अघोरी और नागा साधु दो ऐसे साधु संप्रदाय हैं, जो अपनी विशिष्ट जीवन शैली और साधना पद्धतियों के कारण हमेशा से चर्चा का विषय रहते हैं। देखने में दोनों साधु समुदाय एक जैसे लगते भी हैं। लेकिन नागा  साधु और अघोरी साधु एक दूसरे से बेहद अलग होते हैं।पहनावे से लेकर इनके तप करने के तरीके, रहन-सहन, साधना, तपस्या और साधु बनने की प्रक्रिया में बहुत अंतर होता है। दोनों के आध्यात्मिक मार्ग और उद्देश्य भी अलग होते हैं। चलिए आपको दोनों साधु समुदायों के बीच का अंतर बताते है।



नागा साधु और अघोरी साधु में अंतर 


1. उद्देश्य 


नागा साधुओं का मुख्य उद्देश्य धर्म की रक्षा, आध्यात्मिक उन्नति और सांसारिक इच्छाओं से मुक्ति पाना होता है। इसी के कारण वे तपस्वी जीवन जीते हुए अस्त्र रखते है और निर्वस्त्र रहते है , जिससे वे सांसारिक मोह से अपनी स्वतंत्रता का प्रदर्शन कर सके। वहीं अघोरी तंत्र मार्ग पर चलने वाले साधु होते है। जिनका उद्देश्य आत्मा को परमात्मा से मिलाने और संसार के भय और मृत्यु को समझना है।


2. उपासना का तरीका 


नागा साधु ब्रह्मचर्य, संयम और कठोर तपस्या का पालन करते हैं। एक नागा साधु बनने के लिए ही 12 साल का कठिन तप करना होता है। ताकि वे सांसारिक जीवन से मुक्ति पा सके। वहीं अघोरी साधुओं की साधना तंत्र और तांत्रिक विधियों पर आधारित होती है। वे श्मशान में तप करते हैं और समाज के मानदंडों को तोड़ते हैं। उनकी साधना में ध्यान, तांत्रिक अनुष्ठान और चरम साधनाएं शामिल होती हैं। 


3.पहनावा और जीवनशैली 


नागा साधु अपने नाम की तरह निर्वस्त्र रहते है। वे अपना शरीर भभूत से ढकते हैं। उनके पास केवल लंगोट, त्रिशूल और अन्य धार्मिक वस्तुएं होती हैं। वहीं  अघोरी जानवरों की खाल पहनते हैं या कभी-कभी नग्न रहते हैं। वे श्मशान की राख से अपने शरीर को ढकते हैं और मानव खोपड़ी का उपयोग पात्र के रूप में करते हैं।


4.धार्मिक मान्यताएं


नागा साधु सनातन परंपरा से जुड़े होते है। उनका जुड़ाव अखाड़ों से होता है। एक नागा साधु बनने के लिए गुरु दीक्षा लेनी पड़ती है। इस पड़ाव के बाद ही कोई नागा साधु बन सकता है। दूसरी तरफ अघोरी बनने के लिए कोई गुरू का निर्धारण नहीं करना पड़ता है। अघोरियों के गुरु स्वयं भगवान शिव होते हैं। उन्हें भगवान शिव का अवतार माना जाता है।


हालांकि ऐसा कहा जाता है कि नागा साधु के दर्शन के बाद अघोरी बाबा के दर्शन करना भगवान शिव के दर्शन करना बराबर है।


........................................................................................................
प्रभुजी मोरे अवगुण चित ना धरो (Prabhuji More Avgun Chit Naa Dharo)

प्रभुजी मोरे/मेरे अवगुण चित ना धरो,
समदर्शी प्रभु नाम तिहारो,

प्रभु जी तुम चंदन हम पानी (Prabhuji Tum Chandan Hum Pani)

प्रभु जी तुम चंदन हम पानी,
जाकी अंग-अंग बास समानी,

प्राणो से भी प्यारा, दादी धाम तुम्हारा (Prano Se Bhi Pyara Dadi Dham Tumhara)

प्राणो से भी प्यारा,
दादी धाम तुम्हारा,

खरमास माह में तुलसी पूजा का महत्व

सनातन धर्म में तुलसी का खास महत्व है। तुलसी को लक्ष्मी का ही रूप माना जाता है। इसलिए, बिना तुलसी के श्रीहरि की पूजा पूरी नहीं मानी जाती। सभी घरों में सुबह-शाम तुलसी पूजा की जाती है।

यह भी जाने

संबंधित लेख

HomeAartiAartiTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang