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श्राद्ध करने के बाद जरूर करें ये काम, वर्ना नहीं मिलेगा श्राद्ध का पूरा फल, जानिए क्या है नियम

श्राद्ध करने के बाद जरूर करें ये काम, वर्ना नहीं मिलेगा श्राद्ध का पूरा फल, जानिए क्या है नियम

भगवान विष्णु द्वारा गयासुर को दिए गए वरदान के बाद से ही पितरों को मोक्ष के लिए गया धाम में पिंडदान की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि जो पुत्र अपने पितरों को तर्पण और पिंडदान करने के लिए गया श्राद्ध करते हैं, उनके पितरों की आत्मा पूर्ण रूप से तृप्त हो जाती है और उन्हें आशीर्वाद देते हैं. यही कारण है कि सभी सनातनी अपने पितरों को तृप्त करने के लिए गया में श्राद्ध करना जरूरी मानते हैं और इसी के चलते गया में साल भर पिंडदान का कर्म जारी रहता है. खासकर पितृपक्ष के दौरान यहां देश-विदेश के लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ देखने को मिलती है.


श्राद्ध के बाद श्रद्धालु यहां जरूर दर्शन करें 


गया के स्थानीय पंडितो का मानना है कि श्राद्ध पक्ष में पितरों के लिए किए जाने वाले तर्पण एवं पूजन करने से पितृ ऋण समाप्त हो जाता है साथ ही उनकी आत्माओं को मोक्ष की प्राप्ति होती है। गया में पूर्वजों का श्राद्ध करने के बाद अन्य कहीं कोई श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं रहती है, लेकिन कुछ विद्वान आचार्य का मानना है कि गया श्राद्ध के बाद भी श्राद्ध किया जा सकता है। साथ ही गया जी में श्राद्ध की विधियां पूर्ण करने के बाद श्रद्धालु जब अपने घर लौटते हैं तो मार्ग में पड़ने वाले विभिन्न मंदिर और तीर्थ स्थल का दर्शन उन्हें अवश्य करना चाहिए। 


करवा सकते हैं घर में सत्यनारायण पूजा 


वहीं, घर पहुंचने के बाद अपने सभी सगे संबंधी को बुलाकर सत्यनारायण पूजा करवाना चाहिए और अपने परिजनों को गया तीर्थ का वृतांत सुनाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि अगर आपके बातों से वे प्रभावित होकर गया जी पहुंचते हैं तो उनकी यात्रा का भी फल आपको मिलता है। इसके अलावा पंडितों और जरुरतमंद लोगो को अपने घर में बुलाकर अन्नदान और भोजन भी करवाना चाहिए। साथ ही जब पितरों की तिथि आए उस दिन उन्हें पिंड जरूर प्रदान करना चाहिए और जब तक जिंदा हैं तब तक अपने पितरों का पिंडदान करते रहना चाहिए।


एक पितृपक्ष में 10 लाख लोगों ने किया पिंडदान


पिछले साल के आंकड़ों की माने तो पितृपक्ष महासंगम के दौरान गया मे लगभग 10 लाख तीर्थ यात्री पिंडदान कर चुके हैं. वहीं इस बार भी काफी संख्या में लोग पिंडदान के लिए गया पहुंच रहे हैं। 02 अक्टूबर तक और अधिक श्रद्धालुओं के आने की संभावना भी है। बता दें कि पितृ अमावस्या के बाद पितृपक्ष समाप्त हो जाएगा। हालांकि, गया श्राद्ध करने के बाद लोगों का मानना होता है कि अब हमारे पितर तृप्त हो गये हैं, इसलिए अब पिंडदान करने की कोई जरुरत नहीं है. जबकि यह बात सही नहीं है इसलिए लोगों को हमेशा अपने पितरों को याद करते रहना चाहिए और पिंडदान भी करते रहना चाहिए।


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कब और क्यों मनाई जाती है मौनी अमावस्या?

मौनी अमावस्या हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है जो माघ माह की अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन पिंडदान, तर्पण, अन्न और धन का दान, पवित्र नदी में स्नान और मौन व्रत किया जाता है।

मौनी अमावस्या पर ये जरूर करें

साल 2025 में 29 जनवरी दिन बुधवार को मौनी अमावस्या मनाई जाएगी। इस बार मौनी अमावस्या के दिन महाकुंभ का दूसरा अमृत स्नान किया जाएगा और इस दिन कुछ दुर्लभ संयोग भी बन रहे हैं।

मौनी अमावस्या के दिन तुलसी को क्या चढ़ाएं

मौनी अमावस्या का दिन पूजा-पाठ, अनुष्ठान और दान-पुण्य के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। कहते हैं कि मौनी अमावस्या पर किए गए उपायों से 100 वर्षों के दान के बराबर पुण्य मिलता है।

मासिक शिवरात्रि कब है?

हिंदू धर्म में चतुर्दशी तिथि का विशेष महत्व है। मासिक शिवरात्रि का व्रत भगवान शिव के प्रति भक्ति और आस्था का प्रतीक है। इस दिन विधिपूर्वक पूजा और व्रत करने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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