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अंग्रजों-मुगलों के खिलाफ लड़ चुका है ये अखाड़ा

अंग्रजों-मुगलों के खिलाफ लड़ चुका है ये अखाड़ा

MahaKumbh 2025:  राम मंदिर आंदोलन में अहम भूमिका, अंग्रेजों-मुगलों का किया सामना, जानें निर्मोही अखाड़े का वैभवशाली इतिहास 


निर्मोही अखाड़ा वैष्णव संप्रदाय का एक प्रमुख अखाड़ा है।इसकी स्थापना 14वीं शताब्दी में वैष्णव संत और कवि रामानंद ने की थी।  यहां के साधु-संत भगवान राम की पूजा करते हैं और अपना जीवन उन्हीं को समर्पित करते हैं। अखाड़े का केंद्र भी अयोध्या में ही स्थित है। निर्मोही अखाड़ा भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए जाना जाता है। इसके साधु संत शस्त्र और शास्त्र दोनों विद्याओं में निपुण होते हैं। इनका उद्देश्य सनातन धर्म की रक्षा करना और उसका प्रचार प्रसार करना है। इस समय 12 हजार से ज्यादा साधु संत  निर्मोही अखाड़े का हिस्सा है। वहीं देश के कई पवित्र स्थानों पर अखाड़े के मठ और संस्थान मौजूद हैं। 



ऐसे बने निर्मोही अखाड़े के साधु 


1. पहला चरण 

सबसे पहले व्यक्ति को अखाड़े के पास जाकर साधु बनने की इच्छा जतानी होती है। इसके बाद उसकी शारीरिक और मानसिक क्षमताओं का परीक्षण किया जाता है। अगर व्यक्ति इसमें सफल हो जाता है तो उसे अखाड़े में शामिल किया जाता है और उसे एक गुरु नियुक्त किए जाते हैं।


2. दूसरा चरण 

इस चरण में व्यक्ति को गुरु के सानिध्य में वेद, उपनिषद, और अन्य धर्म ग्रंथों का अध्ययन करना होता है। इसके साथ ही योग और ध्यान भी करना होता है, जिससे वो अपने मन को नियंत्रित कर सके। इसके अलावा साधुओं की सेवा भी करना होती है।


3. दीक्षा चरण 

आखिरी चरण दीक्षा का होता है। प्रशिक्षण खत्म होने के बाद व्यक्ति को  संन्यास की दीक्षा दी जाती है। उन्हें नया नाम दिया जाता है और इसके बाद वो पूर्ण जीवन का त्याग कर देता हैं।



राम जन्मभूमि आंदोलन में अहम भूमिका


निर्मोही अखाड़ा ने राम जन्मभूमि आंदोलन में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अखाड़े ने सबसे पहले राम जन्मभूमि की जमीन पर स्वामित्व के लिए दावा ठोका था। वहीं अखाड़े ने लगभग 100 सालों तक कानूनी लड़ाई लड़ी। इसके साथ ही राम जन्मभूमि आंदोलन में अखाड़े के साधु संत बड़ी संख्या में शामिल हुए। उन्होंने कई प्रदर्शनों में भाग लिया और राम मंदिर के लिए जागरूकता फैलाई। इसी का फल है कि आज अयोध्या में भव्य राम मंदिर है।



आजादी के कई नायकों का अखाड़े से जुड़ा नाम 


निर्मोही अखाड़े के साधु- संत शस्त्र विद्या में निपुण थे। उन्होंने आजादी की कई लड़ाईयों में हिस्सा भी लिया। इसी कारण से कई नायकों जैसे शिवाजी, बंदा बैरागी और रानी लक्ष्मीबाई का नाम उनसे जुड़ा। हालांकि इसे लेकर कोई खास तथ्य मौजूद नहीं है। ये बातें सिर्फ कहानियों के लिए कहीं जाती है।


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कांची देवगर्भा कंकाली ताला मंदिर, बीरभूम, पश्चिम बंगाल (Kanchi Devgarbha Kankali Tala Temple, Birbhum, West Bengal)

पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में शांति निकेतन के पास बोलपुर में कोपई नदी के किनारे माता का कांची देवगर्भा कंकाली ताला मंदिर स्थित है।

किरीटेश्वरी मंदिर, मुर्शिदाबाद, पश्चिम बंगाल (Kiriteshwari Temple, Murshidabad, West Bengal)

किरीटेश्वरी शक्तिपीठ मुर्शिदाबाद जिले के लालबाग के पास किरीट कोना गांव में स्थित है।

कुमारी/रत्नावली शक्तिपीठ, हुगली, पश्चिम बंगाल (Kumari/Ratnavali Shaktipeeth, Hooghly, West Bengal)

कुमारी या रत्नावली शक्तिपीठ, माना जाता है यहां माता सती का दाहिना कंधा गिरा जिसके चलते इस स्थान पर शक्तिपीठ का निर्माण हुआ।

भ्रामरी देवी/ त्रिस्त्रोता शक्तिपीठ, जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल (Bhramari Devi / Tristrota Shaktipeeth, Jalpaiguri, West Bengal)

माता सती का बायां पैर त्रिस्त्रोता नाम की जगह पर गिरा। यह जगह पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी के बोडा मंडल के सालबाढ़ी ग्राम में स्थित है।

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