तेरे बरसाने में है,
बेसहारों को सहारा,
तेरे बरसाने में है।
लाडली अद्भुत नजारा,
तेरे बरसाने में है ॥
झांकीया तेरे महल की,
कर रहे सब देवगण,
आ गया बैकुंठ सारा,
तेरे बरसाने में है,
आ गया बैकुंठ सारा,
तेरे बरसाने में है ॥
बेसहारों को सहारा,
तेरे बरसाने में है।
लाडली अद्भुत नजारा,
तेरे बरसाने में है ॥
हर लता हर डाल पर,
तेरी दया की है नजर,
हर घड़ी यशोमत दुलारा,
तेरे बरसाना में है,
हर घड़ी यशोमत दुलारा,
तेरे बरसाना में है,
लाडली अद्भुत नजारा,
तेरे बरसाने में है ॥
बेसहारों को सहारा,
तेरे बरसाने में है।
लाडली अद्भुत नजारा,
तेरे बरसाने में है ॥
भानु की है लाड़ली तू,
श्याम की है प्राणेश्वरी,
प्रेम का अद्भुत नजारा,
तेरे बरसाने में है,
प्रेम का अद्भुत नजारा,
तेरे बरसाने में है,
लाडली अद्भुत नजारा,
तेरे बरसाने में है ॥
बेसहारों को सहारा,
तेरे बरसाने में है।
लाडली अद्भुत नजारा,
तेरे बरसाने में है ॥
तू ही ममता की है सरिता,
तू ही है करुणामयी,
तेरी कृपा की शीतल छाया,
तेरे बरसाने में है,
तेरी कृपा की शीतल छाया,
तेरे बरसाने में है,
लाडली अद्भुत नजारा,
तेरे बरसाने में है ॥
बेसहारों को सहारा,
तेरे बरसाने में है।
लाडली अद्भुत नजारा,
तेरे बरसाने में है ॥
अब कहाँ जाऊं किशोरी,
तेरे दर को छोड़ कर,
मेरे जीवन का सहारा,
तेरे बरसाने में है,
मेरे जीवन का सहारा,
तेरे बरसाने में है,
लाडली अद्भुत नजारा,
तेरे बरसाने में है ॥
बेसहारों को सहारा,
तेरे बरसाने में है।
लाडली अद्भुत नजारा,
तेरे बरसाने में है ॥
लाड़ली अद्भुत नजारा,
तेरे बरसाने में है,
बेसहारों को सहारा,
तेरे बरसाने में है,
लाडली अद्भुत नजारा,
तेरे बरसाने में है ॥
बेसहारों को सहारा,
तेरे बरसाने में है।
लाडली अद्भुत नजारा,
तेरे बरसाने में है ॥
महाकाल की नगरी उज्जैन में स्थित बाबा काल भैरव मंदिर अपने अनोखे चमत्कार के लिए प्रसिद्ध है। यहां शिवजी के पांचवें अवतार कहे जाने वाले काल भैरव की लगभग 6 हजार साल पुरानी मूर्ति स्थापित है।
सनातन धर्म में नदियों, पहाड़ों और पेड़ पौधों तक को देवताओं के समान पूजने की परंपरा है। यह हमारी धार्मिक मान्यताओं का हिस्सा है, जिसका संबंध प्रकृति प्रेम, पर्यावरण की रक्षा और ईश्वर की दी गई हर चीज के प्रति सम्मान की भावना और विज्ञान की अवधारणाओं से जुड़ा हुआ है।
धार्मिक कार्यक्रमों और आयोजनों के दौरान हिंदू धर्म में शंख बजाना एक परंपरा है जो युगों-युगों से चली आ रही है। शंख हमारे लिए सिर्फ एक वाद्ययंत्र नहीं हमारी धार्मिक संस्कृति और प्रथाओं का हिस्सा है। यह हमारे लिए आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक भी है।
कुंभ मेला भारतीय संस्कृति की अदम्य शक्ति और आध्यात्मिक धरोहर का प्रतीक है। यह महोत्सव ना सिर्फ एक धार्मिक आयोजन है। बल्कि, यह आत्मा की शुद्धि और सामाजिक समरसता का प्रतीक भी है।