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कैसे हुई थी भगवान राम की मृत्यु?

कैसे हुई थी भगवान राम की मृत्यु?

माता सीता के वियोग में भगवान राम ने सरयू में ली थी जल समा


त्रेता युग में भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में अवतार लिया। रामावतार श्री हरि विष्णु के परमावतारों में से एक है। श्री राम अवतार में भगवान ने मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में सांसारिक लीलाएं की और रावण का वध कर संसार को पापों से मुक्ति दिलाई और धर्म की स्थापना की। रामावतार में अपने निर्धारित कार्यों को संपन्न करने के बाद भगवान पुनः अपने धाम को लौट गए।


लेकिन भगवान राम के देवलोकगमन या मृत्यु के बारे में कई तरह कहानियां प्रचलित हैं। इसे लेकर कई भ्रांतियां भी है। वैसे शास्त्रों में वर्णित है कि भगवान की कभी मृत्यु नहीं होती है वो अवतार लेते हैं और अवतार का उद्देश्य पूरा हो जाने पर शरीर त्याग देते हैं और परमधाम पहुंच जाते हैं। तो चलिए भक्त वत्सल के इस लेख में हम आपको बताते हैं कि भगवान राम से जुड़े इस सवाल का सही जवाब क्या है?


धरती में समां गयीं थी माता-सीता 


महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण और गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस के अनुसार भगवान राम ने माता सीता को पवित्रता सिद्ध करने की बात कही थी और उनका त्याग कर दिया था। इसके बाद माता सीता ने अपने दोनों बच्चों लव और कुश को भगवान राम को सौंप कर धरती में समा गईं। इस तरह उन्होंने इस मानव देह को त्याग दिया।

इसके बाद राम सीता माता के वियोग में दुःखी होकर सब कुछ त्यागने का निश्चय करके सरयू नदी के किनारे पहुंचे। 


पहले लक्ष्मण फिर राम ने ली जल समाधि 


उन्होंने सरयू नदी में जल समाधि लेने का प्रण ले लिया लेकिन तभी उन्होंने समाधि लेने से ठीक पहले लक्ष्मण जी को राज्य निकाला दे दिया था। ऐसे में लक्ष्मण ने अपने भाई के वचन की रक्षा की लेकिन उनसे दूर न जाने के संकल्प के कारण उन्होंने भी सरयू नदी में जल समाधि ले ली। इस घटनाक्रम के पश्चात भगवान राम ने सरयू नदी में जाकर अपना मानव स्वरूप त्याग दिया और अपने वैकुंठ धाम चले गए जहां लक्ष्मी स्वरूपा माता सीता भी मौजूद थीं।


अलग-अलग भाषाओं में लिखित रामायण के विभिन्न संस्करणों के अनुसार राम जी के साथ सभी अयोध्या वासी भी एक एक करके सरयू नदी में समाधि लेने लगें और वो भी स्वर्ग पहुंच गए। कहा जाता है कि अयोध्या में निवास करने वाले लोग साधारण नहीं थे। वे सभी किसी न किसी देवी देवता का अंशावतार थें जो अपने पुण्यों के उदय स्वरूप या किसी वरदान के फलस्वरूप रामावतार में भगवान के साथ अवतरित हुए थे और रामावतार और राम राज्य के साक्षी बने थे। 

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