हर वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भारत के दूसरे राष्ट्रपति और महान दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के उपलक्ष्य में समर्पित है। भारतीय संस्कृति में गुरु को परम पूज्य स्थान प्राप्त है। ग्रंथों में कहा गया है— “गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः”, अर्थात गुरु ही सृष्टि के रचयिता, पालनकर्ता और संहारक के रूप में पूजनीय हैं।
गुरु पूजन केवल सम्मान का माध्यम नहीं, अपितु आभार, श्रद्धा और आत्मिक समर्पण की अभिव्यक्ति भी है। शिक्षा देने वाले शिक्षक हों, मार्गदर्शन देने वाले माता-पिता हों या जीवन के पथ प्रदर्शक आध्यात्मिक गुरु सभी को नमन करने की परंपरा गुरु पूजन के माध्यम से निभाई जाती है।
पूजन स्थल के लिए स्वच्छ और शांत स्थान का चयन करें। एक चौकी पर पीले या सफेद रंग का वस्त्र बिछाकर उस पर गुरु की तस्वीर या ज्ञान की प्रतीक पुस्तक जैसे गीता, वेद या उपनिषद स्थापित करें। पूजा थाली में रोली, अक्षत, पुष्प, गंगाजल, दीपक, धूपबत्ती, तुलसी पत्ते, फल और मिठाई रखें।
संकल्प लेकर पूजा प्रारंभ करें — “गुरु की कृपा और ज्ञान की प्राप्ति हेतु यह पूजन कर रहा/रही हूं।” दीप प्रज्वलित करें और गुरु का तिलक करें। पुष्प अर्पण करें और भोग स्वरूप फल या मिठाई समर्पित करें। फिर गुरु स्तुति मंत्र का जाप करें:
"गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥"
इसके बाद गुरु को नमन कर उनके आशीर्वाद की कामना करें कि जीवन पथ पर वे सदैव मार्गदर्शन करते रहें। पूजा के पश्चात प्रसाद को सबमें वितरित करें।
यदि जीवन में कोई विशेष शिक्षक, गुरु या मार्गदर्शक हैं, तो उन्हें पुष्प, पुस्तक या स्मृति चिह्न भेंट कर आशीर्वाद प्राप्त करें। चरण स्पर्श कर कृतज्ञता व्यक्त करना भारतीय परंपरा का अभिन्न अंग है।
गुरु पूजन व्यक्ति के भीतर कृतज्ञता, अनुशासन और विनम्रता जैसे गुणों का विकास करता है। यह केवल एक धार्मिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक आंतरिक साधना है जो आत्मा को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करती है।
गुरु के प्रति श्रद्धा और समर्पण, मनुष्य को न केवल जीवन में सफल बनाते हैं, बल्कि आत्मिक उन्नति की ओर भी ले जाते हैं। गुरु पूजन के माध्यम से भारतीय संस्कृति की उस परंपरा को जीवंत रखा जाता है जिसमें गुरु को ईश्वर से भी ऊपर स्थान दिया गया है।
मेरी रसना से प्रभु तेरा नाम निकले,
हर घड़ी हर पल राम राम निकले ॥
कभी जल्दी जल्दी,
कभी धीरे धीरे,
म्हाने प्राणा सु भी प्यारी,
माता रानी लागे,
म्हारा खाटू वाला श्याम,
ओ म्हारा लीले वाला श्याम,