मकर संक्रांति का त्योहार आगामी 14 जनवरी को है। देश के कई हिस्सों में इसे खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है। खिचड़ी के चावल से चंद्रमा और शुक्र की शांति संबंधित है। वहीं, काली दाल से शनि, राहू और केतु का संबंध है। जबकि, हल्दी से बृहस्पति और हरी सब्जियों से बुध का संबंध है। वहीं, जब खिचड़ी पकती है तो उसकी गर्माहट का संबंध मंगल और सूर्यदेव से है। तो आइए, इस आर्टिकल में और विस्तार से जानते हैं कि इस दिन खिचड़ी क्यों खाई जाती है।
खिचड़ी कई तरह के पदार्थों का मिश्रण होता है। इसलिए, लगभग सभी ग्रहों का संबंध खिचड़ी से है। यही कारण है कि मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने और दान करने का काफी महत्व है।
वहीं, मकर संक्रांति इसलिए भी खास है क्योंकि, महाभारत के समय भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही अपने प्राणों का त्याग किया था। और उसी दिन उनका श्राद्ध और तर्पण कर्म किया गया था। इसलिए भी इस दिन विशेषकर खिचड़ी खाने और दान करने का विशेष महत्व माना गया है।
खिचड़ी से जुड़ी बाबा गोरखनाथ की एक पौराणिक कथा है। दरअसल, खिलजी के आक्रमण के दौरान बाबा गोरखनाथ के शिष्य खाना नहीं बना पाते थे और भूखे रहने की वजह से हर दिन के साथ कमजोर होते जा रहे थे। योगियों की बिगड़ती हालत को देखते हुए बाबा ने अपने योगियों को चावल, दाल और सब्जियों को मिलाकर पकाने की सलाह दी। यह भोजन कम समय में तैयार हो जाता था। साथ ही इससे योगियों को काफी ऊर्जा भी मिलती थी। बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी से बने भोजन को खिचड़ी का नाम दिया। यही कारण है कि आज भी मकर संक्रांति के पर्व पर गोरखपुर में स्थित बाबा गोरखनाथ के मंदिर के पास खिचड़ी मेला आयोजित किया जाता है। इस दौरान बाबा गोरखनाथ जी को विशेषकर खिचड़ी को भोग लगाया जाता है।
किन देवताओं को लगता है खिचड़ी का भोग? भगवान सूर्य को ग्रहों का राजा माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान सूर्य को आत्मा का कारक भी बताया गया है। धर्म ग्रंथो के अनुसार, जो भी मकर संक्रांति पर भगवान सूर्य को खिचड़ी का भोग लगाता है उसे उनकी कृपा प्राप्त होती है। इसके साथ ही जातक की सेहत भी बढ़िया रहती है। वहीं, हिंदू धर्म ग्रंथों में शनि देव को न्याय का देवता कहा गया है। उन्हें भी मकर संक्रांति पर खिचड़ी का भोग लगाने की प्रथा है। बता दें कि शनि देव को काली उड़द की दाल की खिचड़ी में काला तिल डालकर भोग लगाया जाता है।
मकर संक्राति के पर्व पर किया गया दान अक्षय फलदायी होता है। कहीं-कहीं इस त्योहार को उत्तरायण भी कहा जाता है। इस दिन गंगा स्नान, व्रत, कथा, दान और भगवान सूर्यदेव की उपासना करने का विशेष महत्त्व है। पंजाब, यूपी, बिहार और तमिलनाडु में ये नई फसल काटने का समय होता है। इसलिए, किसान इस दिन को भगवान के प्रति अपना आभार प्रकट करने के दिन के रूप में मनाते हैं। इस दिन तिल और गुड़ की बनी मिठाई बांटी जाती है। इसके अलावा मकर संक्रांति पर कई स्थानों पर खिचड़ी भी बांटी जाती है।
देवी अवतार के दस महाविद्याओं का संबंध भगवान विष्णु के दस अवतारों से है। इन्हीं में वैभव और ऐश्वर्य की देवी शताक्षी और शाकम्भरी नाम से प्रसिद्ध भुवनेश्वरी देवी भी है।
दस महाविद्याओं में भैरवी की उपासना का बड़ा महत्व है। भैरवी की पूजा अर्चना करने से बंधनों से मुक्ति के साथ व्यापार में बढ़ोतरी और धन सम्पदा में लाभ होता है।
समृद्धि, धन, नारी, पुत्र की प्राप्ति के लिए दस महाविद्याओं में मां कमला की साधना की जाती है।
नवरात्रि के अंतिम दिन पुण्य लाभ अर्जित करने हेतु कन्या पूजन का विशेष महत्व बताया गया है। नौ दिनों तक व्रत रखने वाले सभी भक्त कन्याओं को भोजन कराने के बाद ही अपना व्रत खोलते हैं।