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कन्हैया ने जब पहली बार बजाई मुरली, सारी सृष्टि में आनंद की लहर दौड़ी

कन्हैया ने जब पहली बार बजाई मुरली, सारी सृष्टि में आनंद की लहर दौड़ी

मुरलीधर, मुरली बजैया, बंसीधर, बंसी बजैया, बंसीवाला भगवान श्रीकृष्ण को इन नामों से भी जाना जाता है। इन नामों के होने की वजह है कि भगवान को बंसी यानी मुरली बहुत प्रिय है। श्रीकृष्ण मुरली बजाते भी उतना ही शानदार हैं। उनके जैसा बंसी वादक दूसरा कोई नहीं हुआ। तभी तो जहां एक ओर गोपियां कान्हा की मुरली पर सुध-बुध खो देती थी। वहीं दूसरी ओर उसी मुरली से जलती भी खूब थी कि एक बांस की मुरली की भी क्या तकदीर है जो हमेशा कान्हा के होंठो से चिपकी रहती है। कान्हा की मुरली से सारा ब्रजमंडल मंत्रमुग्ध हो जाता था।


भक्त वत्सल की जन्माष्टमी स्पेशल सीरीज ‘श्रीकृष्ण लीला’ के छठे एपिसोड में आज हम आपको उस कथा के बारे में बताएंगे जब कन्हैया ने पहली बार मुरली बजाई थी…


श्रीकृष्ण जब से अपने पैरों पर चलने लगे तो वे गोकुल की गलियों में दिनभर मस्ती किया करते थे। एक दिन वे सुबह-सुबह यमुना किनारे पहुंच गए। वहां उन्होंने देखा की ब्रज में बांसुरी बेचने वाला धनुआ नाम का बंसी वाला बड़ी सुन्दर और मधुर बंसी बजा रहा है। कृष्ण उसके पास जाकर बैठ गए और वो आंखे मीचकर बंसी बजाता रहा। जब उसने आंखे खोली तो सामने कान्हा को बैठा पाया। सुबह-सुबह कान्हा के दर्शन करके वो खुद को धन्य महसूस कर रहा था। तभी कान्हा ने कहा कि क्या आप मुझे भी अपने जैसी सुन्दर और मधुर मुरली बजाना सिखाओगे?


मा शारदा कान्हा की मुरली में विराजमान हो गई


कृष्ण की बात सुनकर धनुआ बड़ा खुश हुआ और उसने अपने थेले में से एक छोटी सी बंसी कृष्ण को दे दी। तब कृष्ण ने पूछा इसे कैसे बजाते हैं? तो धनुआ ने कहा कि सबसे पहले स्वर की देवी सरस्वती माता का ध्यान करो और उनसे  प्रार्थना करो कि वे तुम्हें अपने स्वरों का ज्ञान दें। इसके बाद धनुआ ने कहा कि फिर इस मुरली को होठों पर धरों। कान्हा ने ऐसा ही किया। कृष्ण ने जैसे ही कहा है शारदे मां! तो देव लोक में बैठी माता सरस्वती ने स्वयं जवाब दिया कि आज्ञा प्रभु। माता कि बात सुनकर भगवान ने कहा, आप मेरी मुरली में संगीत के सातों स्वर भर दो तो माता ने कहा जो आज्ञा प्रभु। इसके बाद माता शारदा खुद कान्हा की मुरली पर आकर विराजमान हो गई। 


सारे ब्रह्माण्ड में सुनाई देती कान्हा के मुरली की धुन 


कान्हा ने जैसे ही अपने होठों पर मुरली को रखा और स्वर छेड़ा तो सारे ब्रह्माण्ड में उनकी मुरली सुनाई देने लगी। उसकी मधुरता से सारी सृष्टि में आनंद की लहर फैल गई। जो जहा था, वहीं रुक गया। देवताओं ने कान्हा पर पुष्प वर्षा करना शुरू कर दी। ब्रजमंडल में लता, पता, पेड़, पौधे, गय्या, गोप, ग्वाल सभी स्तब्ध होकर कान्हा की मुरली सुनने लगे। मानो मोहन की मुरली में एक सम्मोहन हो जिसने सबको बांध लिया हो। खुद धनुआ जो कान्हा को मुरली सिखाने वाला था, कन्हैया के आगे नतमस्तक हो गया। उसके बाद तो मुरलीधर कान्हा जब भी अपनी मुरली की तान छेड़ते संसार रुक सा जाता और मोहन के मुरली के माधुर्य में खो सा जाता।


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भोले बाबा का ये दर (Bhole Baba Ka Ye Dar)

भोले बाबा का ये दर,
भक्तों का बन गया है घर,

भोले बाबा की निकली बारात है (Bhole Baba Ki Nikli Baraat Hai)

भोले बाबा का ये दर,
भक्तों का बन गया है घर,

भोले बाबा ने पकड़ा हाथ (Bhole Baba Ne Pakda Hath)

भोले बाबा ने पकड़ा हाथ,
की रहता हर पल मेरे साथ,

भोले बाबा ने यूँ ही बजाया डमरू (Bhole Baba Ne Yuhi Bajaya Damru)

भोले बाबा ने यूँ ही बजाया डमरू,
सारा कैलाश पर्वत मगन हो गया ॥

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