गंगा दशहरा हिंदू धर्म का एक अत्यंत पुण्य और पावन पर्व है, जिसे ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। यह दिन देवी गंगा के स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण का प्रतीक है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन राजा भागीरथ की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा देवी स्वर्ग से धरती पर उतरी थीं। इसी कारण इस दिन को गंगा दशहरा कहा जाता है। इस वर्ष यह 5 जून को मनाया जाएगा।
गंगा दशहरा पर की जाने वाली 10 दिशाओं की पूजा वास्तव में दशमी तिथि के दस अंकों और दस पापों के प्रतीक से जुड़ी है। हिंदू धर्म में पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, उत्तर-पूर्व, उत्तर-पश्चिम, दक्षिण-पूर्व, दक्षिण-पश्चिम, आकाश और पाताल, इन दस दिशाओं को शामिल किया गया है। दशमी तिथि का संबंध भी अंक ‘10’ से है। इस दिन की गई दिशा पूजा से सभी दिशाओं से सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है, जो जीवन को शुद्ध और पवित्र बनाती है। यह पूजा संतुलन, शांति और मोक्ष प्राप्ति की दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
इन दसों पापों को समाप्त करने का सबसे शुभ अवसर है गंगा दशहरा, क्योंकि गंगा को पवित्रता और पाप-नाशिनी का स्वरूप माना गया है।
गंगा दशहरा पर गंगा में डुबकी लगाना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है। जो लोग गंगा तट पर नहीं जा सकते, वे घर पर ही गंगाजल डालकर स्नान करते हैं। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन गंगा स्नान करने से जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
गंगा दशहरा पर पितरों के लिए तर्पण करना भी विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। माना जाता है कि गंगाजल से किए गए तर्पण से पितरों को शांति मिलती है और उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है। यह दिन पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए अत्यंत अनुकूल होता है।
काहे इतनी देर लगाई,
आजा रे हनुमान आजा,
कर किरपा तेरे गुण गाँवा,
नानक नाम जपत सुख पाँवा,
काहे तेरी अखियों में पानी,
काहें तेरी अखियों में पानी,
कर प्रणाम तेरे चरणों में लगता हूं अब तेरे काज ।
पालन करने को आज्ञा तब मैं नियुक्त होता हूं आज ॥