गंगा दशहरा हिंदू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और श्रद्धा से जुड़ा पर्व है, जिसे ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से मां गंगा के धरती पर अवतरण की स्मृति में मनाया जाता है और धार्मिक शास्त्रों में इस दिन को गंगा स्नान, दान और पुण्य के लिए सबसे श्रेष्ठ बताया गया है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गंगा दशहरा से जुड़ी कथा की शुरुआत राजा भगीरथ से होती है। ऐसा कहते हैं कि राजा भगीरथ के पूर्वजों को श्रापवश मोक्ष नहीं मिल पाया था। उन्हें मुक्ति दिलाने के लिए भगीरथ ने कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा।
राजा भगीरथ ने प्रार्थना की कि मां गंगा को धरती पर अवतरित किया जाए ताकि उनके पितरों का मुक्ति मिल सके। लेकिन समस्या यह थी कि गंगा की धारा इतनी तीव्र थी कि धरती उनका भार नहीं सह सकती थी। तब भगवान ब्रह्मा ने उन्हें सलाह दी कि पहले भगवान शिव को प्रसन्न करें, क्योंकि केवल वही गंगा के तीव्र धारा को नियंत्रित कर सकते हैं।
राजा भगीरथ ने फिर भगवान शिव की तपस्या की और शिव जी प्रसन्न हुए। जब मां गंगा धरती पर अवतरित हुईं, तब शिव जी ने अपनी जटाओं में उन्हें धारण किया और फिर धीरे-धीरे उन्हें धरती पर प्रवाहित किया। यह दिन ही गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है।
गंगा दशहरा के दिन गंगा नदी में स्नान करने से व्यक्ति के दस प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। इन दस पापों में शरीर, मन, वाणी, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, निंदा, हिंसा, छल और चोरी जैसे दोष शामिल हैं। इस दिन दान-पुण्य, व्रत और जप-तप करने से कई गुना पुण्य की प्राप्ति भी होती है।
बीच भंवर में फसी मेरी नैया,
तुम्ही हो खिवैया माँ,
बेगा सा पधारो जी,
सभा में म्हारे आओ गणराज,
मैं नही जानू पूजा तेरी,
पर तू ना करना मैया देरी,
भज गोविन्दम् भज गोविन्दम्,
गोविन्दं भज मूढ़मते।